नई दिल्लीः आज़ाद समाज पार्टी के सुप्रीमो और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने आरक्षण को लेकर सरकार को नसीहत दी है। अपने ख़त में उन्होंने लिखा है कि आरक्षण कोई दान, अनुदान अथवा खैरात नहीं है बल्कि राष्ट्रनिर्माण का सबसे मजबूत एवं आवश्यक जरिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने नाम लिखे गए पत्र में आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार द्वारा गठित बीपी शर्मा समिति की सरकार को अनुशंसा है कि ओबीसी समुदाय के आरक्षण हेतु क्रीमी लेयर के लिए वार्षिक आय के दायरे में ‘सैलरी’ और ‘एग्रीकल्चर इनकम’ को भी शामिल किया जाए, जो कि संविधान के अनुच्छेद 15(4) व (16)(4) का उल्लंघन है। अगर सरकार बीपी शर्मा की अनुशंसा पर अमल करती है तो यह ओबीसी आरक्षण पर हमला होगा। इससे बड़ी संख्या में ओबीसी समुदाय आरक्षण से वंचित हो जाएंगे। पहली बात कि ओबीसी क्रीमी लेयर सीमा की समीक्षा के लिए बनी कमेटी का अध्यक्ष सवर्ण क्यों? और दूसरी यह कि क्रीमी लेयर की समीक्षा के लिए समिति का गठन किए जाने की जिम्मेदारी संसदीय समिति एवं पिछड़ा वर्ग आयोग को ही होना चाहिए। अतः बीपी शर्मा समिति का गठन ही सवालों के घेरे में है। बीपी शर्मा की सिफारिशों को पूर्णतः ख़ारिज किया जाए वर्ना हम सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे।
उन्होंने कहा कि मौजूदा नियमों के तहत 08 लाख रुपए या उससे अधिक की वार्षिक आय वाले ओबीसी परिवार को सरकारी नौकरियों एवं सरकार द्वारा वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए प्रतिबंधित किया गया है। संसद की अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंधी समिति ने क्रीमी लेयर के दायरे को बढ़ाकर 16 लाख करने की सिफारिश की है। सरकार समिति के सिफारिश पर विचार करने के बजाए क्रीमी लेयर सीमा 12 लाख करने की पहल कर रही है। हम इसका कड़ा विरोध करते हैं। सच तो यह है कि 1993 से आय सीमा की निष्पक्ष समीक्षा कभी हुई ही नहीं। अगर निष्पक्ष समीक्षा हो तो आज ओबीसी क्रीमी लेयर का दायरा 20 लाख से ऊपर होता। अतः ओबीसी आरक्षण हेतु क्रीमी लेयर सीमा 08 लाख से बढ़ाकर 16 लाख सुनिश्चित किया जाए।
गौरतलब है कि 50% आरक्षण की सीमा एवं क्रीमी लेयर की अवधारणा संविधानिक नहीं है। यह संकल्पना सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आई हुई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ओबीसी समुदाय कि आरक्षण सीमा 27% है। किंतु अभी तक किसी भी संस्था निकाय अथवा प्राधिकरण में 27% कोटा पूर्ण नहीं है। यहां ओबीसी भागेदारी 10% से कम ही है। ऐसे में ओबीसी भागेदारी को सुनिश्चित करने एवं आरक्षण के दायरे को बढ़ाने के बजाए केंद्र एवं राज्य सरकाररों द्वारा संविदा भर्ती, लैटरल इंट्री, आउटसोर्सिंग आदि तरह तरह के हथकंडे अपनाकर आरक्षण पर हमला किया जाना निंदनीय है। सरकार को समझना होगा कि हाशिए के समाज की भागेदारी को नकारकर समावेशी विकास एवं राष्ट्र निर्माण की पहल विषमतावादी एवं शोषणकारी है।
चंद्रशेखर ने कहा कि अभी तक मंडल कमीशन के केवल कुछ ही सिफारिशों को अमल में लाया गया है। मंडल कमीशन के विरोध में जिस तरह से निजीकरण को बढ़ावा दिया गया, यह ओबीसी आरक्षण के खिलाफ स्पष्ट रूप से एक साजिश थी। निजीकरण का दंश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लोग तो झेल ही रहे थे कि ऊपर से वर्तमान सरकार विकास का झूठा झंडा बुलंद करते हुए बहुत ही तेजी से सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर रही है। इससे सबसे बड़ा हमला आरक्षण पर हुआ है। इस हकमारी को तत्काल रोका जाना चाहिए। अतः सरकार निजी क्षेत्र के स्कूलों एवं निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी आरक्षण के नियम को लागू करे।
पीएम मोदी को संबोधित करते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि आरक्षण कोई दान, अनुदान अथवा खैरात नहीं है बल्कि राष्ट्रनिर्माण का सबसे मजबूत एवं आवश्यक जरिया है। आरक्षण केवल नौकरी पाने का मसला नहीं बल्कि भागीदारी सुनिश्चित करने का मामला है। आरक्षण से गैर बराबरी दूर होती है। हमारा मानना है कि देश के समस्त संसाधन, शिक्षण संस्थानों और नौकरियों पर हर समुदाय का हक़ है। अतः उपरोक्त मांगो को सुनिश्चित करने हेतु हम पुरजोर तरीके से यह मांग करते हैं कि सरकार सबसे पहले जातिगत जनगणना कराए ताकि भागेदारी का सही आकलन सुनिश्चित हो सके। अगर सरकार हमारी मांगो पर अमल नहीं करती है तो आजाद समाज पार्टी इसके लिए देशव्यापी आंदोलन करेगी।