नई दिल्लीः हाथरस की घटना पर आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने देश के राष्ट्रपति डॉक्टर रामनाथ कोविंद के नाम एक पत्र लिखा है। इस पत्र में चंद्रशेखर ने कहा है कि ‘बेटी के मरने के बाद जो हुआ, उसने तो राष्ट्र की सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। पोस्टमार्टम के बाद बेटी का शव परिवारवालों को सौंपने की जगह पुलिसवाले बिना परिवार को बताए शव को खुद हाथरस उनके गांव ले गए और तेल छिड़ककर जबर्दस्ती जला दिया’। चंद्रशेखर ने अपने पत्र मे क्या लिखा है, उसे नीचे प्रकाशित किया जा रहा है।
मैं बेहद व्यथित मन से ये पत्र आपको लिख रहा हूं जैसा कि आपके संज्ञान में होगा कि दिल्ली से बमुश्किल डेढ़ सौ किलोमीटर दूर हाथरस जिले में वाल्मीकि परिवार की एक बेटी के साथ अपराधियों ने सामूहिक बलात्कार किया और इस क्रम में उसके साथ हिंसा और अमानवीय बर्ताव किया गया।
मैंने निजी तौर पर इस मामले को पहले दिन से ही उठाया और प्रशासन से अच्छी चिकित्सा व्यवस्था कराने और दोषियों को तत्काल गिरफ़्तार करने का अनुरोध किया लेकिन इस मामले में प्रशासनिक ढील बरती गई और लगभग एक पखवाड़े बीतने के बाद बेटी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया। अगर शुरुआत से अच्छी चिकित्सा उपलब्ध कराई गई होती तो वह बेटी आज शायद जिंदा होती पर प्रशासन की लापरवाही से उचित चिक्तिसा न मिलने के कारण उस बेटी की 29 सितंबर को मृत्यु हो गई। उसे उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने में किया गया विलंब प्रशासनिक असंवेदनशीलता का उदाहरण है,यह आपराधिक कृत्य भी है।
लेकिन बेटी के मरने के बाद जो हुआ, उसने तो राष्ट्र की सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। पोस्टमार्टम के बाद बेटी का शव परिवारवालों को सौंपने की जगह पुलिसवाले बिना परिवार को बताए शव को खुद हाथरस उनके गांव ले गए और तेल छिड़ककर जबर्दस्ती जला दिया,अंतिम संस्कार का परिवार का नैतिक,धार्मिक और कानूनी हक भी उस परिवार से छीन लिया गया,यहां तक कि शव को न तो उसके घर ले जाने दिया गया और न ही परिवार का कोई सदस्य उसके चेहरे को देख पाया। अपराधियों के शव के साथ भी दुनिया में ऐसा शायद ही कहीं होता होगा।
आनन-फानन में शव को जलाने का काम भी रात दो बजे हुआ, जो इस इलाके में प्रचलित धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है। इस मामले में प्रशासन के किसी भी अधिकारी पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जो भी मामूली कार्रवाई निलंबन की शक्ल में की गई है, वह भी सिर्फ पुलिसवालों के साथ हुई है।
बात यहीं खत्म नहीं होती,इसके बाद परिवार को प्रशासन द्वारा लगातार दबाव में रखा जाता है और उसे धमकाया जाता है, उनसे सादे कागज पर दस्तखत करा लिए जाते हैं। अब यूपी सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट होगा,जबकि ये टेस्ट हमेशा अभियुक्तों का होता है यानी प्रशासन की नजर में जो पीड़ित है वही अपराधी भी है। प्रशासन के रवैए की वजह से परिवार को किसी भी सरकारी जांच एजेंसी पर विश्वास नहीं रह गया है और वे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में जांच की मांग कर रहे हैं।
महोदय, बेहद चिंता की बात ये भी है कि गांव में धारा-144 लागू होने और कोविड कटेंनमेंट जोन होने के बावजूद प्रभावशाली जातियों के लोग अभियुक्तों के पक्ष में खुलेआम पंचायतें कर रहे हैं जिससे पीड़ित परिवार में दहशत है, पीड़ित परिवार वहां खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है।
महोदय आप महान भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति हैं, जिस पद को कभी महान मानवतावादी के.आर. नारायणन ने सुशोभित किया था। मेरा निवेदन है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए आप संविधान के अनुच्छेद 78 के तहत प्राप्त अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री से इस बारे में रिपोर्ट मांगें।
साथ ही सरकार को निर्देश दें कि पीड़ित परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएं और उन्हें वाई प्लस कटेगरी की सुरक्षा प्रदान की जाए। महोदय संसद में सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और साथ ही एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में दलित उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। यह भारतीय गणराज्य के लिए बेहद शर्मनाक स्थिति है। गणराज्य के अभिभावक होने के नाते आपसे निवेदन है कि इस संदर्भ में सरकार को कदम उठाने के लिए निर्देशित करें।