गिरीश मालवीय
कल सरकार ने राज्यसभा में कहा कि पिछले पांच साल के दौरान हाथ से मैला साफ़ करने वाले किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई। यह बहुत बड़ा बयान था मैं देखना चाहता था कि इस विषय को हमारा मीडिया कितना महत्व देता है , लेकिन इस विषय पर किसी ने एक शब्द तक नही कहा! सरकार का यह बयान सोशल मीडिया पर भी उपेक्षित ही रहा, सोशल मीडिया के बड़े बड़े दिग्गज जो दलित ओर पिछड़ी जातियों से जुड़े उठाने में विशेषज्ञ माने जाते हैं वे भी इस मुद्दे पर चुप ही रहे!
मुझे आर्टिकल 15 फ़िल्म का वह दृश्य याद है जिसमे गटर का मेन होल जो गंदे पानी से लबालब है, सफाई कर्मी उसमे पूरा डूब कर उसे साफ करता है, वह सीन हमे अंदर तक हिला देता है। दरअसल राज्यसभा के एक सवाल के जवाब में कल केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि हाथ से मैला उठाने वाले 66,692 लोगों की पहचान हुई है। यह प्रश्न किए जाने पर कि हाथ से मैला ढोने वाले ऐसे कितने लोगों की मौत हुई है,पर उन्होंने कहा, ‘‘हाथ से सफाई के कारण किसी के मौत होने की सूचना नहीं है।’’
इस बयान पर सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है, सीताराम येचुरी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि भारत ने कभी ऐसी केंद्र सरकार नहीं देखी जो बेशर्मी से संसद के सामने झूठ बोलती हो। फरवरी के बजट सत्र में केंद्रीय मंत्री ने लोकसभा को सूचित किया था कि पिछले पांच वर्षों के दौरान इस प्रतिबंधित कुप्रथा के कारण 340 मौतें हुई हैं।
दरअसल एक आंकड़े के मुताबिक भारत में सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हर पांच दिन में औसतन एक आदमी की मौत होती है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर नालों की हाथ से सफाई के दौरान लोगों की मृत्यु होने पर कहा था कि दुनिया में कहीं भी लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में नहीं भेजा जाता। इस वजह से हर महीने चार-पांच व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। पीठ ने कहा कि संविधान में प्रावधान है कि सभी मनुष्य समान हैं, लेकिन प्राधिकारी उन्हें समान सुविधाएं मुहैया नहीं कराते। उसने इस स्थिति को ‘अमानवीय’ करार देते हुए कहा कि इन लोगों को सुरक्षा के लिए कोई भी सुविधा नहीं दी जाती और वे सीवर व मैनहोल की सफाई के दौरान अपनी जान गंवाते हैं।
पीठ ने कहा था कि संविधान में देश में अस्पृश्यता समाप्त करने के बावजूद मैं आप लोगों से पूछ रहा हूं क्या आप उनके साथ हाथ मिलाते हैं? इसका जवाब नकारात्मक है। हम इसी तरह का आचरण कर रहे हैं। इस हालात में बदलाव होना चाहिए।’ किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के हाथों से मानवीय अपशिष्टों (Human Excreta) की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) कहते हैं।
यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है महात्मा गाँधी और डॉ। अंबेडकर, दोनों ने ही हाथ से मैला ढोने की प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। आज़ादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है, सीवर की सफाई एक ऐसा काम है जिसको करने के लिए मशीनों की मदद ली जा सकती है लेकिन 21वीं सदी के भारत में आज भी सीवर को साफ करने के लिए इंसान उतर रहे हैं ओर मर रहे हैं लेकिन सरकार उनकी मौत का संज्ञान तक नहीं ले रही है। जिन लोगों की मौत हुई है उनकी गरिमा मरने के बाद भी छीनी जा रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)