Category: चर्चा में

मुस्लिम बच्चे मदरसे की दीवार लांघ कर ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज में पढ़ने के ख़्वाब पूरे कर रहे हैं।

अभी एक साहब ने कहा कि मुसलमानों में अशिक्षा और मानसिक पिछड़ापन बहुत है। ऐसी बात सुनकर आपको भी हंसी आती है न? मुझे तो बहुत आती है। ये लोग….

शाकाहार और मांसाहार: जैसा खाये अन्न, वैसा होवे मन: यथार्थ या विभ्रम?

“जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन” बहुत पुरानी उक्ति है। मेरे जैन मित्र इस उक्ति का सबसे ज़्यादा उपयोग करते हैं और इसके ज़रिये शाकाहार को जस्टिफाई करते हैं। वो….

संवाद का संकट: जिस अर्थव्यवस्था ने समाज को ज़हरआलूदा किया है उसके खात्मे के अलावा…

क्या कभी ऐसा हुआ कि आप परिवार के सदस्यों के साथ किसी मुद्दे पर बात कर रहे हैं और अचानक अपने महसूस किया इस बातचीत को यहीं रोक देना चाहिए….

उर्दू के दो सौ‌ साल और गिरते आंकड़ों के असली ज़िम्मेदार

क़मर क्रांति 1991 जनगणना के अनुसार भारत के 5.18 फीसदी यानी 43406932 ( चार करोड़ चौतीस लाख छह हज़ार नौ सौ बत्तीस ) लोगों की नेटिव भाषा यानी प्रथम भाषा….

मायावती की सियासत का किस्सा हुआ तमाम? इतिहास बन गई बसपा!

मायावती बेमन से खेल रही हैं। ऐसा लगता है कि वे क्रीज पर जाना नहीं चाहतीं, मगर मजबूरी में जाना पड़ता है। वह मजबूरी क्या है? मजबूरी यह है कि….

दास-प्रथा तो गयी, जाति-प्रथा कब जायेगी?

भारतीय समाज, राजनीति, धर्म और दर्शन में समानता और स्वतंत्रता के भाव बेहद कमज़ोर हैं। समाज की तो पूरी आधारशिला ही असमानता और अन्याय पर आधारित जाति व्यवस्था पर सदियों….

किस चिड़िया का नाम है भारतीय संस्कृति?

क्या आप जानते हैं कि भारतीय संस्कृति किस चिड़िया का नाम है? अमूमन खानपान, रहन-सहन, तीज त्योहार, शादी-व्याह के तौर तरीकों और धर्म और धार्मिक कर्मकांड के सम्मिलित रूप को….

जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम से आखिर क्यों घबराता है आरएसएस?

कल खबर आई कि इंदौर में सरकारी आदेश का हवाला देते हुए मशहूर लेखक शम्सुल इस्लाम के आज होने वाले कार्यक्रम के लिए ऑडिटोरियम की बुकिंग रद्द कर दी गई,….

पिछड़े, दलित-जाटव और अब पसमांदा मुस्लिम समाज  से फासले मिटाना भाजपा का सफल फार्मूला

नवजीवन अखबार में एक गणेश जी हुआ करते थे पत्रकारिता,साहित्य उनकी रूह थी, धोती-कुर्ता, चंदन का तिलक और मुंह मे पान की गिलौरी उनका हुस्न था। उनको लेख देने जाता….

रवीश का लेख: 15 करोड़ ग़रीबों का मज़ाक़ न उड़ाए बल्कि वैकल्पिक आर्थिक नीति की बात करें

पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, बढ़ते ही रहेंगे, पहले भी सस्ते नहीं थे, अब हम 70 रुपये प्रति लीटर से बहुत दूर चले आए हैं। वहाँ लौटना नहीं हो….