दिनांक 30 जनवरी ‘ 1948 के दिन नाथूराम गोडसे ने सरे आम गॉधीजी के सीने पर तीन गोलियॉ दाग कर उनकी हत्या की थी और उपस्थित भीड ने उसे वही दबोच लिया था ।
आर.के जैन
कायदे से उसपर मुक़दमा चलाने की भी ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उसने गॉधीजी की हत्या करना सबके सामने व अदालत के सामने भी क़बूल कर लिया था पर फिर भी एक नया लोकतांत्रिक देश होने के कारण उसे बचाव का पूरा अवसर दिया गया और सरकारी खर्चे पर वकील भी उपलब्ध कराया गया था। अदालत ने पूरी जॉच व सबूतों के बाद ही उसे व नारायण आपटे को फॉसी की सजा सुनाई थी । गोडसे ने यद्यपि अपने बचाव में कुछ नहीं कहा था पर फिर भी अदालत ने उसे अपना बयान पढ़ने की अनुमति दी थी ।
गोडसे का वह बयान 97 पन्नों का था जिसकी रिकार्डिंग 9 घंटे में पूरी हुई थी । उस बयान में गोडसे ने गॉधीजी की हत्या करने का औचित्य अदालत के सामने रखा था ताकि लोग उसे एक शहीद समझे । नियमानुसार अदालत में मुलज़िम को अपने बचाव में बयान देने का प्रावधान है न कि अपने अपराध को महिमा मंडन करने का पर फिर भी तीन जजों की बेंच के दो जज उसका बयान मन्त्र मुग्ध होकर सुनते रहे जबकि एक जज उसके इस बयान को दर्ज करने के पक्ष में नहीं थे। उस वक़्त यह भी चर्चा थी कि नाथूराम का वह चर्चित बयान उसने खुद नहीं बल्कि सावरकर साहब ने लिखा था क्योंकि नाथूराम इतना पढ़ा लिखा नहीं था।
दरअसल उस वक़्त नाथूराम से बहुत से दक्षिण पंथी लोग सहानुभूति रखने लगे थे जिसमें हम न्यायाधीशों को भी रख सकते हैं । विभाजन की त्रासदी, साम्प्रदायिक दंगों में हज़ारों लोगों की मौतो ने बहुतों की सोच बदल डाली थी।कांग्रेस के कुछ दक्षिण पंथी नेताओं ने यह भी तर्क दिया था कि गॉधीजी सजायें मौत के विरुद्ध थे तो नाथूराम को फॉसी नहीं दी जानी चाहिए । डा. अम्बेडकर भी नाथूराम को फाँसी की सजा दिये जाने के पक्ष में नहीं थे। तत्कालीन गवर्नर जनरल श्री राजागोपालाचारी साहब भी उसकी फॉसी की सजा उम्र क़ैद में बदलना चाहते थे।
प्रधानमंत्री नेहरूजी व गृह मन्त्री सरदार पटेल साहब नाथूराम गोडसे के साथ किसी रियायत के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। कांग्रेस के जो नेता फाँसी की सजा के पक्ष में नहीं थे उन्हें सरदार पटेल ने जमकर फटकार लगाई थी । गवर्नर जनरल साहब को तो बाक़ायदा पत्र भी लिखा था जिस व्यक्ति को अपने गुनाहों पर पश्चाताप तक न हो और अपने जघन्य अपराध पर शर्मिंदा तक न हो उसके साथ कैसे नरमी दिखाई जा सकती हैं । सरदार पटेल साहब ने यह भी लिखा था कि यह हत्या निश्चित रूप से हमारे समय की सबसे शर्मनाक और विश्वास घाती घटना है और पूरी दुनिया इससे गहरे सदमे मे है और इसलिए इस मामले में सिवा इसके और कोई बात नहीं हो सकती कि क़ानून को अपना काम करने दिया जाये।
इसके बाद नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे को दिनांक 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में फॉसी की सजा दे दी गई थी ।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं)