देश में कोयला की कमी के पीछे अडानी का हाथ है क्या?

केंद्र और राज्य के अंतर्गत आने वाले अधिकतर बिजली बनाने वाले कुल 135 प्लांट मेँ से 70% कोयले से चलते हैँ। इसकी आपूर्ति Coal India (केंद्रीय संस्था) एक एग्रीमेंट के तहत करती है जिसका राज्य सरकारें भुगतान करती हैँ। अलग -2 देशों मेँ अलग प्रोसीजर होने की वजह से कॉल इंडिया व राज्य सरकारें भी खुद कोयला नहीं मंगाती बल्कि प्राइवेट CHAs (Custom House Agents) और एजेंट्स को ये काम दे देतीं हैँ.. जिसके लिए उन्हें 7 पैसा प्रति किलो का कमीशन देतीं हैँ। ये सारा कोयला अधिकतर अडानी के मुंद्रा पोर्ट से होकर आता है… मुंबई वाले नवा-सेवा (JNPT) पोर्ट से कंटेनर और खुला माल जैसे अनाज, दालें, कोयला इत्यादि मुंद्रा से आता है।

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कोयला मेँ चोरी होना, ढुलाई, लोडिंग -अनलोडिंग में थोड़ा बहुत 1-1.5% ख़राब या बर्बाद भी हो जाता है इसलिए अधिकतम 4% की Pilferage (बर्बादी या चोरी) अलाउड है। ध्यान रहें ये अधिकतम है असलियत मेँ 1-1.5% से ऊपर बर्बादी नहीं होतीं।

जब ये बात अडानी को पता चली तो उसने मुंद्रा पोर्ट पर West Basin Coal Terminal,नाम से दुनियां का सबसे बड़ा कोयला इम्पोर्ट टर्मिनल बना दिया और 4% कोयला फ्री में निकालने लगा और भारत के ही प्लांट्स को एजेंट्स से सस्ते रेट मेँ बेचने लगा। ध्यान रहें अडानी पोर्ट के चार्ज तो ले ही रहा था कोयला तो फ्री का था इस लिए सस्ता बेच ही सकता है। एजेंट्स का धंधा ख़राब होने लगा और धीरे -2 उनका काम अडानी की तरफ शिफ्ट होने लगा।

राज्य सरकारों के प्लांट 7 पैसा किलो देते तो हैँ लेकिन अफसर-शाही की वजह से इसका बिल 1-2 महीने मेँ क्लियर करते हैँ। कभी -2 एजेंट्स कोयला का शिपमेंट रोक लेते हैँ की पहले पुराना पैसा क्लियर करो फिर नया शिपमेंट देंगे। अडानी के सर पे मोदी कृपा से बैंक के सस्ती दरों वाले लोन का हाथ है। इस लिए अडानी ने प्लांट्स को शुरुआत मेँ 6 महीने का समय (क्रेडिट) दिया। प्लांट्स ने अडानी को हाथों हाथ लिया।

जब सारे एजेंट्स धंधा छोड़ गए तब अडानी ने कमीशन को 7 पैसा प्रति किलो से बड़ा कर 15 पैसा और अंत मेँ 23 पैसा प्रति किलो कर दिया। ध्यान रहें, ये कमीशन बिजली बनाने की लागत मेँ जुड़ता है और इसका भुगतान पहले राज्य सरकार करती है और अंत मेँ उपभोगता से वसूलती है।

वर्तमान मेँ कोयले का संकट अडानी ने हाई-लाइट कराया है ताकि कोल इंडिया पर सवाल उठे और उसे बीच से हटा दिया जाये। राज्य सरकारें बस कोयला चाहती हैँ, अब केंद्र सरकार कोयला आपूर्ति का एक टेंडर निकाल दे जिसके लिए सिर्फ अडानी ही उपर्युक्त होगा क्योंकि उसके पास भारत का इकलौता कोयला टार्मिनल (पोर्ट) है, औद्योगिक रेल (CONCOR) और सामान्य रेल वो ख़रीद ही रहा है। जैसे किसान बिल पास होने से पहले ही अडानी Warehouse बना चुका है। वैसे ही इस संकट से पहले कोयले का टार्मिनल तैयार है।

क्या है समाधान?

कोई इसका समाधान पूछे तो बता देना की एजेंट्स के बिल क्लियर करने की एक निश्चित अवधि मात्र तय करने से सारा संकट ख़त्म हो सकता है उसके लिए सरकारी संपत्ति और जनता का पैसा अडानी को देने की जरुरत नहीं है। यदि कोइ एजेंट सारे पेपर और कोयला प्लांट पहुंचा दे तो उसे 10 दिन के अंदर पेमेंट मिल जाये या 10% का ब्याज मिले, बस इतना नियम बना के समस्या सुलझाई जा सकती है।

मैं गारंटी देता हूँ, हर PSU को एक-दो छोटे कदम उठा के बेचने से बचाया जा सकता है, लेकिन सरकार की मंशा तो देश को अम्बानी-अडानी का गुलाम बनाने की है। बस उन्हें चुनावी चंदा मिलता रहें.