अब्दुल हन्नान
हाल ही में अभी बागपत के एक दरोगा इंतेसार अली का दाढ़ी वाला प्रकरण सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया में खूब चर्चा में बना हुआ है. दरोगा इंतेसार अली पर आरोप था कि उन्होंने बिना अनुमति पुलिस मैनुअल के विपरीत जाकर दाढ़ी रखने के जुर्म में बागपत के एसपी अभिषेक सिंह ने निलंबित कर दिया था और आज जब दरोगा एसपी के सामने दाढ़ी मुंडवा कर हाजिर हुआ तो उसकी ड्यूटी पुन: एसपी के द्वारा बहाल की गई जबकि दरोगा इंतेसार अली का कहना है कि उनके द्वारा दाढ़ी रखने की अनुमति लिखित में मांगी गई लेकिन किसी प्रकार की सुनवाई नहीं हुई. जानकारी के लिये बता देना चाहता हूँ कि पुलिस मैनुअल के अनुसार सिख समुदाय को छोड़ किसी अन्य धर्म वाले को दाढ़ी रखने के लिये अनुमति लेनी होती.
क्या कहता है क़ानून
उत्तर प्रदेश पुलिस नियमावली में 10 अक्टूबर 1985 को एक सर्कुलर जोड़ा गया, जिसके अनुसार मुस्लिम कर्मचारी एसपी से इजाजत लेकर दाढ़ी रख सकते हैं, हालांकि यूपी पुलिस के 1987 के सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि पुलिस वालों के लिए धार्मिक पहचान रखने की मनाही है. उपरोक्त बात जो भी सही हैं, लेकिन सवाल पुलिस व्यवस्था को लेकर यह है कि जब पुलिस विभाग के अधिकारियों एंव कर्मचारियों को 1987 के सर्कुलर के अनुसार अपनी धार्मिक पहचान रखने की मनाही है तो किस आधार पर थाना परिसर में ही सिर्फ मंदिरों का निर्माण करवाया जाता है मस्जिदों का क्यों नहीं , क्यों ऑन ड्यूटी हाथों में कलावा पहना जाता है , क्यों ऑन ड्यूटी माथे पर तिलक लगवा लिया जाता है , क्यों ऑन ड्यूटी थाना परिसर में वर्दी में ही मंदिर पर माथा टेका जाता है , क्यों थानों में मंदिर पर हुई पूजा का प्रसाद वितरण किया जाता , क्यों थानों पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है ?
क्या इन सब चीज़ों से किसी एक धर्म विशेष की पहचान नहीं होती है? धर्मो रक्षति रक्षत: बड़ा बड़ा किस धर्म की रक्षा हेतु पुलिस विभाग की दीवारों एंव दरवाजो पर लिखा रहता है। माना जाता रहा है कि पुलिस का एक ही धर्म होता है वो है अपने प्रदेश के प्रत्येक नागरिक की रक्षा करना फिर वो चाहे वो किसी भी धर्म , समाज , जात का नागरिक हो, सभी की रक्षा करना पुलिस का धर्म है. यदि धार्मिक पहचान की ही बात है पुलिस मैनुअल में तो सभी धर्मों के मानने वाले पुलिसकर्मियों पर बराबर से लागू होनी चाहिये किसी एक भी धर्म विशेष के मानने वाले को छूट क्यों दी जाये.
पुलिस मैनुअल के नियम कानून का केवल एक ही धर्म विशेष से संबंध रखने वाला पुलिसकर्मी ही क्यों अपनी आस्था का बलिदान करे, बलिदान करना है आस्था का तो सभी धर्म के पुलिसकर्मियों को करना चाहिये और धर्मनिरपेक्ष पुलिसकर्मी होने का जयकारा लगाना चाहिये, लेकिन एक धर्म विशेष के दाढ़ी रखने वाले पुलिसकर्मी से आप आस्था का बलिदान मांगों और अपनी आस्था को त्यागना भी पसंद ना करो तो यह किसी भी सूरत में न्यायोचित नहीं है.
यदि कानून है और 1987 के सर्कुलर के अनुसार पुलिसकर्मियों को धार्मिक पहचान रखने की मनाही है तो यह नियम सभी धर्म से संबंधित पुलिसकर्मियों पर बराबर से लागू होना चाहिये , यह नहीं होना चाहिये कि आप दूसरे धर्म से संबंधित पुलिसकर्मी से उसकी आस्था का बलिदान मांग लो और अपनी आस्था को अपनी वर्दी से चिपकाये रखो जोकि अन्याय की श्रेणी में आता है और किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं है.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहाँ जब एक सूबे का मुख्यमंत्री ही जब धर्मनिरपेक्षता की धज्जियाँ उड़ाता हो, केसरिया वस्त्र धारण कर केवल एक धर्म विशेष के लिये ही खुद का समर्पण दर्शाता हो तो पुलिस विभाग तो मुझे उसके सामने बौना नज़र आता है बाकी वास्तव में यदि मैं सत्य कहूँ तो देश में नियम कानून हैं तो बहुत कहने को लेकिन सभी के लिये बराबर नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एंव सोशल एक्टिविस्ट हैं, ये उनके निजी विचार हैं)