नई दिल्ली। भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन ‘मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया’ यानी ‘एमएसओ’ ने क़ुद्स दिवस 22 मई को ऑनलाइन जनजागरुकता कार्यक्रम किए और फिलस्तीन की स्वतंत्रता के प्रति अपनी सदेच्छा का प्रदर्शन किया। आपको बता दें कि हर रमज़ान के आख़री शुक्रवार को ‘क़ुद्स डे’ यानी. यरूशलम दिवस मनाया जाता है। ‘मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया’ यानी ‘एमएसओ’ के अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने क़ुद्स दिवस का महत्व बताते हुए कहाकि पिछले 41 वर्षों से यह परम्परा है कि फ़िलस्तीन की राजधानी यरूशलम के नाम पर क़ुद्स डे मनाया जाता है।
यह परम्परा 1979 से चली आ रही है। इस वर्ष उनके संगठन ने कोरोना संकट की वजह से यह कार्यक्रम मस्जिदों के बाहर और सभागारों में सम्मेलन के माध्यम से करने की बजाय ऑनलाइन स्वरूप में किया। इसके लिए संगठन ने इसके एक दिन पूर्व संगठन के सभी केन्द्रीय समिति के पदाधिकारियो को साथ लेकर एक ऑनलाइन बैठक की।
इसमें उन्होंने संगठन के सभी जिम्मेदारों से यह आह्वान किया कि वह क़ुद्स दिवस के मौक़े पर वॉट्सअप ग्रुप और सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक जानकारी का प्रसार करें। क़ादरी ने कहाकि फ़िलस्तीन की आज़ादी पूरी मानवता की आवश्यकता है। उन्होंने याद दिलाया कि राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की भी मंशा थी कि फिलस्तीन की स्वतंत्रता अक्ष्क्षुण रहनी चाहिए। गांधीजी ने यहूदी विस्तारवाद की आलोचना करते हुए याद दिलाया था कि फिलस्तीन पर अरबों का वैसा ही अधिकार है जैसे इंग्लैंड पर अंग्रेज़ों का। फिलस्तीन की सम्पूर्ण स्वतंत्रता भारत की नीति का हिस्सा है और हम किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे के आधार पर भारत को इजराइली प्रभाव में आने की आलोचना करते रहेंगे। यह हमारे अन्तरराष्ट्रीय हितों, गुट निरपेक्ष नीति और भारत जनमानस की इच्छा के विरुद्ध है।
‘मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया’ यानी ‘एमएसओ’ के राष्ट्रीय सचिव अनीस अहमद शिराज़ी ने इस मौक़े संगठन की ऑनलाइन बैठक में कहाकि पूरी दुनिया अमेरिका की सदी की डील को नकार चुकी है। उन्होंने कहाकि वेस्ट बैंक को बांटने और फिलस्तीन को 50 अरब डॉलर में बेचने की अमेरिकी यहूदी ज़ायोनी बदनीयती कभी कामयाब नहीं होगी। उन्होंने याद दिलाया कि जब यह तथाकथित सदी की डील हो रही थी, फिलस्तीन को नहीं बुलाना ही अमेरिकी ज़ायोनी बदनीयती का परिचायक है। अमेरिका एक स्वतंत्र धर्म निरपेक्ष देश है लेकिन एक राष्ट्रपति के दामाद की सनक पर पूरे देश के ज़ायोनीकरण पर आज अमेरिकी जनता को निर्णय करना है। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस साल अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव हारेंगे और अकेले फिलस्तीन के साथ अन्याय के मुद्दे पर अमेरिकी जनता उन्हें धूल चटा देगी।
संगठन के राजस्थान प्रांत के अध्यक्ष हबीब मुलतानी ने इस बात पर दुख जताया कि कोरोना महासंकट होने की वजह से वह क़ुद्स डे नहीं मना पा रहे हैं लेकिन फिर भी सीमित अधिकारों में भी हमें इस्राइल के नाजायज़ कब्जे का विरोध करने के नए तरीक़े निकाल लिए हैं।
उन्होंने जानकारी दी कि इस दौरान एमएसओ ने फिलस्तीन के हवाले से कई सेमिनार का आयोजन किया। फिलस्तीन पर अमेरिकी दादागिरी, सदी की डील के नाम पर धोके और 1967 में फिलस्तीन की भूमि को लूटे जाने पर संगठन के साथियों की मदद से आम जनता में जागरुकता का प्रसार किया गया। इसके लिए वॉट्सअप का भरपूर इस्तेमाल किया गया। फिलस्तीन पर आम जनता को जागरुक करने के लिए हिन्दी, उर्दू और बांग्ला भाषा में कई संदेशों को प्रसारित किया गया। इन संदेशों में फिलस्तीन की स्वतंत्रता और इस्राइल के साथ फिलस्तीन के संघर्ष के इतिहास के साथ साथ इस भूमि के इस्लामी महत्व की जानकारी दी गई।