तनिष्क के बहानेः क्या किसी ने यश चौपड़ा से पूछा कि उन्होंने ‘वीर ज़ारा’ क्यों बनाई?

मोहम्मद ज़ाहिद

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तनिष्क के विज्ञापन पर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। इस लेख के लिखे जाने तक गुजरात से ख़बर पर भी आ गई जिसमें तनिष्क के शोरुम पर हमला हुआ है। इस देश में किसी ने यश चौपड़ा से यह शिकायत नहीं की होगी कि आपने “वीर-ज़ारा” में हिन्दू प्रेमी और मुस्लिम प्रेमिका क्यों दिखाया? वह भी पाकिस्तानी? उनके जीवित रहते किसी ने उनसे नहीं कहा होगा कि आप ऐसी फिल्म बनाइए जिसमें प्रेमी पाकिस्तानी मुसलमान हो और प्रेमिका एक भारतीय हिन्दू। इस देश में “वीर-ज़ारा” हिट रही और यश चौपड़ा की बेहद सफल फिल्मों में से एक थी, मुझे याद नहीं पड़ता कि भारत में किसी मुसलमान ने इस फिल्म का विरोध किया था। यही नहीं पाकिस्तान में भी यह फिल्म बेहद सफल रही, वहां भी इस फिल्म का विरोध नहीं हुआ। फिल्में तो काल्पनिक होती हैं, उनका विरोध भी क्या करना?

सनी देयोल की “हैन्ड पंप उखाड़” फिल्म “गदर” का भी किसी ने विरोध नहीं किया था , उसमें भी नायक सरदार “तारा सिंह” और नायिका “सकीना” थी। यहाँ तक कि इस फिल्म में कुछ इंटिमेट सीन और “सकीना” को मुस्लिम होने के कारण होने वाली परेशानियों के बारे में भी दिखाया था। किसी ने यह नहीं कहा कि इस फिल्म में हीरो पाकिस्तानी पठान और हिरोइन कोई सिखणी क्यों नहीं रखा। मनी रत्नम की फिल्म “बांबे” में तो बकायदा एक नकाबपोश महिला “शहला बानो” का आशिक एक हिन्दू  “शेखर मिश्रा नारायण” है , यह फिल्म मुंबई दंगों में दूसरे धर्म के प्रेमी प्रेमिका पर बनी थी। किसी ने यह आपत्ती नहीं जताई कि इसमें मनीषा कोयराला को हिन्दू प्रेमिका और अरविंद स्वामी को मुस्लिम प्रेमी क्यों नहीं बनाया गया।

राज कपूर की एक फिल्म थी ज़ेबा बख्तियार और रिषी कपूर अभिनित “हिना” उसमें भी हिना मुस्लिम थी और रिषी कपूर प्रेमी के रूप में हिन्दू “चंदर” था।  इस देश में किसी मुसलमान ने आपत्ती नहीं जताई कि किसी हिन्दू लड़की को पाकिस्तान में नदी के बहाव में बहा कर पाकिस्तानी मुस्लिम से प्रेम क्यों नहीं दिखाया गया। यह मात्र 4 उदाहरण इसलिए दिए गए हैं क्योंकि यह भारतीय सिनेमा की सबसे सफल और लोकप्रिय फिल्मों में शामिल हैं। किसी मुसलमान ने इन फिल्मों का विरोध नहीं किया, मात्र 43 सेकेन्ड के “तनिष्क” के विज्ञापन ऐड में जाने ऐसा क्या दिख गया कि बड़े से बड़े फेसबुकिया लिबरल के पेट में दर्द होने लगा और उस ऐड का इतना विरोध हुआ कि “तनिष्क” को अपना यह ऐड हटाना पड़ गया।

यह विज्ञापन केवल इतना था कि किसी “गोद भराई” समारोह का इंतज़ाम करते दो लोग गोल टोपी पहने दिखे तो समारोह में उपस्थित कुछ महिलाएँ हिजाब में दिखीं। ना तो उस गर्भवती महिला का नाम दिखा और ना ही उसके पति का। पर समाज में फैली सांप्रदायिकता कब किस पर हावी हो जाए यह निश्चित नहीं। दरअसल यह नफरत ही है जो “ज़ारा” , “सकीना” “हिना” और “शहला” को अब धर्म की नज़र से देख रही है वर्ना जब यह फिल्में रिलीज हुईं तब तो हमने केवल उनको एक फिल्मी प्रेमिका के रूप में देखा था।

यह हकीकत है कि इनका धर्म आज के भारत में पता चला और हमने भी ऐसी फिल्में अब ढूढने की कोशिश की जिनमें प्रेमी मुसलमान और प्रेमिका हिन्दू है तो एक भी सफल या असफल फिल्म नहीं मिली। या बनी भी होगी तो विलुप्त हो गयी होगी। एक फिल्म “सुशांत सिंह राजपूत और सारा अली खान” की अभी बनी “केदारनाथ” जिसको इसी भारत में कोई पचा नहीं पाया , फिल्म का भारी विरोध भी हुआ था। केवल इसलिए कि इस फिल्म का प्रेमी एक मुलमान था और प्रेमिका हिन्दू। फिल्म बुरी तरह पिट गयी। आखिरकार ऐसा क्यों होता है ? यह होता है बहुसंख्यकों के एक वर्ग को सांप्रदायिक बना देने के कारण जो मुस्लिम लड़कियों से हिन्दू लड़कों के इश्क और विवाह को सम्मान और “हिन्दुत्व” के विजय के रूप में देखता है तो हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के इश्क और विवाह को पराजय और अपमान के रूप में देखता है। उसे “लव जेहाद” बताता है।

होली आते ही किसी नकाब पोश मुस्लिम महिला को रंग लगाते टीकाधारी की गौर्वांवित तस्वीरें वायरल कराना भी उसी मानसिक कुढ़न का एक उदाहरण है। एक बार ऐसे ही मैं संजय लीला भंसाली की फिल्म “बाजीराव मस्तानी” देखने थिएटर चला गया। एक मुस्लिम नायिका “मस्तानी” का एक ब्राम्हण राजा “बाजीराव” के महल में उसकी प्रेमिका बन कर नृत्य करना थिएटर में मौजूद दर्शकों में इतना जोश भर गया कि थिएटर में चारों तरफ से “हर हर महादेव” के नारे लगने लगे। मुझे याद नहीं आता कि “जोधा अकबर” में किसी ने नारे तकबीर लगाया हो।

विश्व हिन्दू परिषद और अन्य भगवा संगठन इसी जहर को फैलाने के लिए हिन्दू लड़कों को पुरष्कार का लालच भी देने लगे हैं कि वह मुस्लिम लड़कियों को फंसा कर उनसे विवाह करें। जैसे वह अपने राजपुताना इतिहास की कुढ़न इससे मिटाना चाहते हैं जब हर राजा हार की डर से मुगलों को अपना दामाद बना लेता था। आखिर यह कैसी सोच है कि सिनेमा के काल्पनिक चरित्रों में भी धर्म ढूँढ लेती है ? आखिरकार जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर “तनिष्क” के प्रचार के विरुद्ध युद्ध किया वह शहनवाज हुसैन , मुख्तार अब्बास नकवी , नदीम हैदर और एमजे अकबर जैसे मुस्लिम दामादों का बहिष्कार क्यों नहीं करते। तनिष्क को हिम्मत दिखानी चाहिए थी उसे डटे रहना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया, और तनिष्क ने अपना विज्ञापन वापस ले लिया।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)