शकील अख़्तर
रोनाल्डो ही नहीं उनसे पहले के सुपर स्टार मेराडोना और सबसे पहले के पेले भी ऐसे ही रहे। क्या फुटबाल खेल ही ऐसा है? नहीं जिस जनता के बीच में से ये आते हैं वह ऐसी ही भली और आपसी दुख सुख मिल बांटकर जीने वाली है। हमारे सचिन और अन्य महानायक सुविधाजीवी और अवसरवादी मध्यम वर्ग से निकले हैं। समाज जैसे मूल्य बनाता है इंसान वैसा ही बनता है। हमारे यहां जीवन मूल्यों में जो और गिरावट आई है वह अब और बौने नायक पैदा करेगी। मनुष्य परिस्थितियों से बनता है। विभिन्न परिस्थितियां, राजनीतिक, समाज में बढ़ रही संवेदना या क्रूरता और निजी स्वार्थ, पैसे और कैरियर का महत्व या त्याग और सहयोग की भावना।
इन दिनों हमारे यहां कौन से जीवन मूल्य हावी हैं? झूठ, सच को स्थानापन्न कर चुका है। प्रेम जिससे संसार चलता है अब हमारे यहां से विस्थापित करके उसकी जगह घृणा स्थपित कर दी गई है। ऐसे में नई पीढ़ी क्या बनेगी? उसमें से कैसी सेलिब्रटीज और कैसे नायक निकलेंगे?
बहुत कहा जाता है 60 साल में क्या किया? हम और हमसे पहले की पीढ़ी इसी 60 साल में निकले हैं। जैसे भी हैं अच्छे बुरे ये सवाल उठा रहे हैं। नई पीढ़ी के लिए। उनका भविष्य हम लोगों का सपना है। मगर इस क्रूर समय में पल बढ़ रही पीढ़ी क्या अगली पीढ़ी के लिए सोचेगी या अपने सरवाइवल से ही उसे फुरसत नहीं मिलेगी?
क्रिकेट के भगवान सचिन से सदी के महानायक अमिताभ तक कभी सपने में भी इतनी हिम्मत नहीं कर सकते। रोनाल्डो ने बता दिया कि असली हीरो कैसा होता है! पानी के एक घूंट से उन्होंने कोकाकोला की सारी हेकड़ी मिट्टी में मिला दी। बता दिया कि किसी ब्रांड की कोई औकात नहीं होती। असली हीरो के सामने सब बौने हैं! यूरो कप के एक मैच के बाद प्रेस कान्फ्रेंस में जब रोनाल्डो ने अपने सामने रखी कोकाकोला की बोतलें हटाकर पानी मांगा तो कोकोकोला के शेयर तो जमीन पर आ ही गए नायकत्व के जाने कितने झूठे मुखौटे भी उतर गए। फिर भी अमिताभ और सचिन जैसे लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा और वे कभी हिम्मत दिखाने जैसा खतरनाक काम नहीं करेंगे। वे ब्रांडों के वफादार हैं जनता के नहीं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)