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ब्रिगेडियर उस्मान का योगदान अतुल्य जिसको भुलाया नहीं जा सकता : MSO

जयपुर: मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (MSO) जयपुर यूनिट की जानिब से 27 जुलाई को ब्रिगेडियर उस्मान पर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए हिरा स्कूल पहाड़ गंज  में एक कान्फ्रेंस का अयोजन किया।  कान्फ्रेंस मे मुख्य अतिथि फारूक आफरीदी (विशेष अधिकारी मुख्य मंत्री राजस्थान) ने रहे। उन्होने तालीम के लिए जागरूक होने की अपील की और मजहब और कुरान की शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा को अपनाने पर ज़ोर दिया, उन्होने राजस्थान के सेनानी कैप्टन अय्युब खान को याद करते हुये कहा कि उन्होने भी पाकिस्तान से युद्ध मे अनेक टैंको को तबाह किया था।

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मुख्य वक्ता डॉ अख्लाक उसमानी ने ब्रिगेडियर उस्मान  के जीवन पर प्रकाश डालते हुये कहा कि ब्रिगेडियर उस्मान 19 मार्च, 1935 को भारतीय सेना नियुक्त हुये। उनको 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनका नामोल्लेख किया गया। उन्होंने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की अप्रैल 1945 से अप्रैल 1946 तक कमान संभाली।

आजादी से पहले ब्रिगेडियर उस्मान बलूच रेजिमेंट में थे। जिन्ना और लियाकत अली खां ने उनको मुस्लिम होने का वास्ता दिया और पाकिस्तानी सेना में आने का ऑफर दिया। उनको पाकिस्तानी सेना का प्रमुख बनाने तक का वादा किया गया। लेकिन उन्होंने उस ऑफर को ठुकरा दिया। जनवरी-फरवरी 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा और झांगर पर जोरदार हमले के दौरान घुसपैठियों को काफी नुकसान पहुंचाया। दुश्मन बड़ी तादाद में थे जबकि भारतीय सैनिक उनके मुकाबले बहुत कम थे। इसके बावजूद पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस अभियान की वजह से उनको नौशेरा का शेर नाम से पुकारा जाने लगा। उस समय पाकिस्तानी सेना ने उनके सिर पर 50,000 रुपये का इनाम रखा था।

उन्होने कहा, ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खा रखी थी कि जब तक झांगर को दुश्मन के कब्जे से आजाद नहीं करा लेंगे तब तक चटाई पर ही सोएंगे और वह इस फैसले पर कायम रहे और उन्होंने दुश्मन को इलाके से भगा दिया गया और झांगर पर दोबारा कब्जा हो गया। इस हार से बौखलाए पाक ने मई 1948 में अपनी नियमित सेना को भेजा। एक बार फिर झांगर पर जोरदार गोलीबारी होने लगी। पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर कई जोरदार हमले किए। लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने झांगर पर कब्जे के पाक के सपने को पूरा नहीं होने दिया। इसी हमले के दौरान 3 जुलाई, 1948 को ब्रिगेडियर उस्मान का निधन हो गया। उनके अंतिम शब्द थे, ‘मैं जा रहा हूं लेकिन उस इलाके को दुश्मन के कब्जे में न जाने दें जिसके लिए हम लड़ रहे थे।’ ब्रिगेडियर उस्मान को उनके प्रेरक नेतृत्व और साहस के लिए ‘महावीर चक्र’ से पुरस्कृत किया गया।

एम.एस.ओ. के एफ़आर चिश्ती ने स्वागती भाषण दिया और अपनी तंजीम एम.एस.ओ. के मकासिद ब्यान करते हुए कहा हमारी तंजीम का मुख्य मकसद नौजवानो को तालीम याफ्ता बनाना है। कान्फ्रेंस में मुख्य रूप से अदनान अहमद बरकाती, हाफिज़ फैसल अज़हरी, साकिब बरकाती, सुहैल बरकाती, आमिर, सुहैल, साहिल खान, अब्दुल, फैज़ बेग, अज़ीज़ अहमद, राजा अन्सारी आदि लोग शामिल हुए।