बेनज़ीर भुट्टो: कभी एक 28 साल की लड़की तानाशाह से लड़ कर प्रधानमंत्री बनी थी

“मेरी आपबीती” बेनज़ीर भुट्टो की कहानी,बेनज़ीर जिसके बाप बिना किसी गुनाह के सिर्फ अपने फायदे के लिए फांसी पर लटका दिया गया। जिस पर इतने ज़ुल्म किये गए कि लिखते लिखते वो खुद थक गयी और ये सब कुछ कहाँ हुआ? वहां जहां जिस देश मे वो पैदा हुई थी जहां उसने ख़्वाब देखें थे वहां ही उसे कैद होना पड़ा। मगर उसका दोष क्या था? बस इतना की उसने सवाल करना बंद नहीं किया था।

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बेनज़ीर की इस आत्मकथा को पढ़ने से पहले आपको ये जानना चाहिए कि क़रीबन 400 पेज की ये ऑटोबायोग्राफी तीन मुख्य किरदारों के बीच घूमती हैं। पहला किरदार खुद बेनज़ीर भुट्टो,जो होश संभालने से लेकर मरते दम तक अपने देश और अपने लोगों के इंसाफ और उनकी तरक्की के लिए गए वादों के लिए लड़ती रही थी।

दूसरा किरदार है जर्नल जियाउलहक का जिसने “तानाशाह” होने का मतलब बताया जिसने ये बताया कि इंसान ज़ुल्म करते करते कहाँ तक पहुंच सकता है क्या क्या कर सकता है। सिर्फ अपनी तानाशाही के गुरुर पर वो एक देश के एक प्रधानमंत्री को पहले तो बेदर्दी से मारने का हुक्म देता है और फिर उसके परिवार को इतना भी हक़ नहीं देता है का उसका “अंतिम संस्कार” भी ढंग से किया जा सके।

तीसरा और अहम किरदार है पाकिस्तान की जनता,जो दुनिया के किसी भी कौने में मौजूद आम सी जनता की तरह यहां भी पिसती है,मरती है और यहां भी ऐसा हुआ जहां जवान से लेकर बूढों तक और महिलाओं तक को सिर्फ सियासी ताक़त हासिल करने के लिए सैकड़ों और हज़ारों लोगों को मार दिया जाता है और खत्म कर दिया जाता है। जैसा कि होता आया है लेकिन ये पढ़ना वाक़ई में बहुत तकलीफदेह था।

बेनज़ीर भुट्टो की लिखी इस आत्मकथा में सबसे ज़्यादा डरावना वो हिस्सा है जहां वो अपनी कैद की दास्तान को बयां करती हैं जहां उन पर जुल्म की बीतें सालों में हुई पिछली सारी दास्तानें छोटी नज़र आती हैं। बार बार उस वक़्त को पढ़ कर यह एहसास किया जाना मुश्किल है कि आखिर 27- 28 साल की लड़की को क्यों इतनी सज़ा दी जा रही थी? सिर्फ इसलिए कि वो एक राजनीतिक परिवार की वारिस थी या इसलिए कि वो एक महिला थी और देश की सबसे बड़ी नेता बन सकती थी।

लेकिन काबिल ए तारीफ है कि बेनज़ीर लड़ी,हारी नहीं डरी नहीं और ज़ुल्म और बेइंतहा ज़ुल्म के इतिहास को बदलते हुए बेनज़ीर अपने देश ही कि नहीं किसी भी मुस्लिम देश की पहली प्रधानमंत्री बनीं,वो सिर्फ 35 साल की उम्र में अपने देश की प्रधानमंत्री बनीं और तो और अपने उसूलों पर रहीं और अपने वादों को पूरा भी करके दिखाया।

दुनिया भर में ज़ुल्म और तानाशाही के इतिहास और क्रांतिकारियों के हुए बदलाव की सैकडों दास्तानों में एक बेनज़ीर की कहानी भी है जिसे पढा जाना चाहिए। जिसे जानना चाहिए और बार बार सबसे ये बताया जाना चाहिए जो ये किताब भी बताती है कि “कभी एक 28 साल की लड़की एक तानाशाह से लड़ कर अपने देश की प्रधानमंत्री भी बनीं थी और उसने इतिहास बनाया था”

ये किताब Rajpal & Sons से पब्लिश हुई है।

(लेखक युवा पत्रकार हैं)