जन्मदिन विशेष: अपनी दिलकश अदाकारी के दम पर चार दशक तक फिल्मी दुनिया पर राज करने वाली नूतन

दिलीप कुमार पाठक

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नूतन ने बतौर बाल कलाकार फ़िल्म ‘नल दमयंती’ से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। इस बीच नूतन ने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसमें वह प्रथम चुनी गई लेकिन बॉलीवुड के किसी निर्माता का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बाद में अपनी माँ और उनके मित्र मोतीलाल की सिफारिश की वजह से नूतन को वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ में अभिनय करने का मौका मिला। इस फ़िल्म का निर्देशन उनकी माँ शोभना समर्थ ने किया। इसके बाद नूतन ने ‘हमलोग’, ‘शीशम’, ‘नगीना’ और ‘शवाब’ जैसी कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फ़िल्मों से वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना सकी।

‘सीमा’ से मिली पहचान

वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘सीमा’ से नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया। इस फ़िल्म में नूतन ने सुधार गृह में बंद कैदी की भूमिका निभायी जो चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में अपने दिन काट रही थी। फ़िल्म ‘सीमा’ में बलराज साहनी सुधार गृह के अधिकारी की भूमिका में थे। बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकार की उपस्थित में भी नूतन ने अपने सशक्त अभिनय से उन्हें कड़ी टक्कर दी। इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये नूतन को अपने सिने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

आज के दौर में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में विजेता बनने पर माना जाता है कि मॉडल को अब बॉलीवुड का टिकट मिल गया है। मिस इंडिया या मिस वर्ल्ड बनने का मतलब होता कि अब बॉलीवुड में आसानी से प्रोजेक्ट मिल जाएंगे। लेकिन पुराने दौर की एक अभिनेत्री ऐसी भी हैं जिनके लिए यह खिताब काम नहीं आया और उन्हें बॉलीवुड में पैर जमाने के लिए काफ़ी स्ट्रगल करना पड़ा। हम बात कर रहे हैं गुजरे ज़माने की मशहूर अभिनेत्री नूतन समर्थ बहल की।

फिल्मी माहौल में पैदा हुई थी नूतन

बॉलीवुड एक्ट्रेस नूतन का जन्म 4 जून, 1936 को बॉम्बे (अब मुंबई) में एक हुआ था। उनका मूल नाम नूतन समर्थ था। नूतन अपने पिता डायरेक्टर और कवि कुमारसेन समर्थ और मां एक्ट्रेस शोभना समर्थ की सबसे बड़ी बेटी थी। उनकी मां शोभना समर्थ बॉलीवुड फिल्मों की जानी-पहचानी अदाकारा थीं, इसलिए नूतन बचपन से ही फिल्मों के सेट पर आया-जाया करती थी।

यही कारण था कि वे फिल्मी दुनिया के प्रति काफी पहले ही आकर्षित हो चुकी थीं। लेकिन नूतन के लिए फिल्मों में जगह बनाना आसान नहीं रहा। उन्होंने बतौर बाल कलाकार ‘नल दम्यंति’ से फिल्मी कॅरियर की शुरुआत की, लेकिन बाद में उन्हें फिल्मों के इतने ऑफर नहीं मिले।

इसी बीच उन्होंने ‘मिस इंडिया’ कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया और विजेता बनीं। यह नूतन के लिए बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन उनका दिल तो फिल्मों के लिए धड़क रहा था। मिस इंडिया का खिताब होने के बावजूद किसी निर्देशक का ध्यान उन पर नहीं गया। इसके बाद उनकी मां के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हमारी बेटियां’ में उन्हें काम करने का अवसर दिया गया। इसके बाद धीरे-धीरे दूसरे निर्देशकों का ध्यान भी उन पर गया।

‘सीमा’ के लिए मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार

इसके बाद नूतन ने ‘हमलोग’, ‘शीशम’, ‘नगीना’ और ‘शबाब’ जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन ये फिल्में भी उनके कॅरियर को सफ़ल नहीं बना सकीं। इसके बाद वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘सीमा’ से नूतन ने विद्रोही नायिका के सशक्त किरदार को पर्दे पर साकार किया। इस फिल्म में उनका अभिनय इतना दमदार था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।

एक खास बात यह भी है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सर्वाधिक फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान नूतन और काजोल के नाम संयुक्त रूप से दर्ज है। दोनों को ही पांच बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। काजोल एक्ट्रेस नूतन की भतीजी भी है।

नूतन को ‘सोने की चिड़िया’ ने किया फेमस

अदाकारा नूतन ने देवानंद के साथ ‘पेइंग गेस्ट’ और ‘तेरे घर के सामने’ में हल्के-फुल्के रोल कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। साल 1958 में आई फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में नूतन के नाम का डंका बजने लगा। अब वे इंडस्ट्री की स्थापित कलाकार बन गई थीं।

वर्ष 1958 में ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म ‘दिल्ली का ठग’ में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर सभी को चौंका दिया था। उस दौर में यह किसी भी अभिनेत्री के लिए काफ़ी बोल्ड स्टेप माना जाता था। हालांकि, उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा। विमल राय की फिल्म ‘सुजाता’ एवं ‘बंदिनी’ में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया। साल 1959 में फिल्म ‘सुजाता’ उनके कॅरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इसके बाद फिल्म ‘अछूत कन्या’ के लिए भी उन्हें खूब वाह-वाही मिली और दूसरी बार उनकी झोली में फिल्म फेयर अवॉर्ड आया।

‘छलिया’ और ‘सूरत’ जैसी फिल्मों में किया हास्य अभिनय

लगातार दर्द भरी दास्तान वाली फिल्में करने के कारण नूतन को इमेज में बंधने वाली एक्ट्रेस कहा जाने लगा। यह माना जाने लगा कि सिर्फ दर्द भरे किरदार ही निभा सकती हैं। इसके जवाब में नूतन ने ‘छलिया’ और ‘सूरत’ जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय किया और सभी का मुंह बंद कर दिया।

वर्ष 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निमार्ताओं की फिल्मों के लिए भी काम किया। इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फिल्में थी। इनमें ‘गौरी’, ‘मेहरबान’, ‘खानदान’, ‘मिलन’ और ‘भाई-बहन’ जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल है। साल 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वतीचंद्र’ की अपार सफलता के बाद नूतन फिल्म इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गयी।

इस बीच नूतन ने देवानंद के साथ ‘पेइंग गेस्ट’ और ‘तेरे घर के सामने’ मंजिल, बारिश जैसी फिल्मों में अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। देवानंद के साथ सबसे ज्यादा उनको पसंद किया गया l वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में नूतन के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वे फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गईं।

साल वर्ष 1974 में भारत सरकार ने देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान ‘पद्म श्री’ से नूतन को सम्मानित किया था। साल 1959 में जब वे मात्र 23 साल की थीं, उन्होंने लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। इसके करीब दो साल बाद वे बेटे मोहनीश बहल की मां बनीं। अपने कॅरियर में कई उम्दा किरदार निभाने वाली नूतन ने चार दशक तक फिल्मी दुनिया पर राज किया और 21 फ़रवरी 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।