जन्मदिन विशेष: दास्तान-ए-आज़म ख़ान, कहाँ से छेड़ूँ फ़स़ाना कहाँ तमाम करूँ!

आस मोहम्मद कैफ़

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आज़म खान आज 74 वर्ष के हो चुके हैं। अपने लंबे सियासी सफर के वे अब तक के सबसे मुश्किल दौर में हैं। 14 अगस्त 1948 को रामपुर के मुमताज़ ख़ान, अमीर जहां के घर में जन्म मोहम्मद आज़म ख़ान ने अपने सियासी सफर का आगाज़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से किया था। वे अपनी पढ़ाई के दौरान एएमयू के छात्रसंघ के प्रतिनिधि रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी जन्मभूमी रामपुर को ही अपनी कर्मभूमी बनाया। उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे मज़बूत रामपुर के नवाब परिवार से सीधी टक्कर ली, और धीरे-धीरे नवाब परिवार का राजनीतिक रसूख ही खत्म कर दिया। आज़म ख़ान की ज़िंदगी में कई बार उतार चढ़ाव आए, वे सबसे पहले इमरजेंसी में जेल गए। वे उन इमरजेंसी के दौरान जेल गए ऐसे पहले नेता हैं जिनकी रिहाई सबसे बाद में हुई। अब वे फिर जेल में हैं, इस उन पर 104 मुकदमे दर्ज हैं। ये तमाम मुकदमा बीते ढ़ाई-तीन वर्ष में दर्ज हुए हैं। इनमें से उन्हें 75 मुकदमों में ज़मानत मिल गई है।

राजनीतिक हलकों में आज भी एक बात आम है कि 1989 में मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री चुनी जाने वाली अंदरूनी मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने आज़म खान को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी। वीपी सिंह को लगता था कि वो आज़म खान को देश के सबसे बड़े सूबे का सीएम बना देंगे तो उनके जनता दल को पूरे भारत के मुसलमानों का एकतरफा समर्थन मिलेगा। इससे देश भर में उनकी सरकार बन जाएगी। आज़म खान ने तब एक यादगार तकरीर की और मुलायम सिंह यादव को पिछड़ों और अकलियतों का मसीहा का विशेषण देकर उनका नाम मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तुत कर दिया ।

मुलायम सिंह यादव 24 जून 1989 में सीएम बन गए और आज़म खान उनके कैबिनेट में मंत्री बनाए गए। आज़म खान की किरदार की अज़मीयत यह रही कि उन्होंने कभी यह बात अपनी जबान से नही कही और मुलायम सिंह यादव की महानता यह रही कि उन्होंने यह बात हर जगह कही वो आज जो कुछ भी है उसमें आज़म खान का किरदार सबसे अहम है। लखनऊ के गलियारों में यह कहानी अक्सर आज़म खान और मुलायम सिंह यादव के संबंधों का जिक्र आने पर अंधेरी कोठरी से बाहर निकल आती है।

मुलायम की आंख के तारे

पारिवारिक, राजनीतिक और सांगठनिक तमाम तरह के विरोध और अपनी तुनकमिजाजी बावूजद आज़म खान हमेशा मुलायम सिंह यादव की आंख के तारे रहे। मुलायम सिंह यादव , आज़म खान की इतनी बात मानते थे कि पार्टी के दूसरे मुस्लिम नेता जब आज़म की शिकायत लेकर उनके पास पहुंचते थे तो मुलायम सिंह कहते थे “आज़म की कोई बात नही करो , तुम अपनी सुनाओ !” मुलायम सिंह यादव के नजदीकी स्टाफ़ के लोग बताते हैं कि’ नेता जी’ ने कभी भी ‘खान साहब ‘ से तल्ख लहजे में बात नही की,इसके उलट ‘खान साहब ‘ कभी भी गुस्सा हो जाते थे। पार्टी के कार्यालय सूत्र बताते हैं मुलायम सिंह यादव और आज़म खान के रिश्ते इतने गहरे थे कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गए और मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने की संभावना लगभग खत्म हो गई तो आज़म खान उनके गले से लग कर रोने लगे और कहने लगे कि उनका (मुलायम सिंह यादव ) को वज़ीर -ए -आज़म हिंदुस्तान देखने का ख़्वाब पूरा नही हो पाया। इससे वो बहुत तकलीफ में है तब मुलायम सिंह यादव ने ही उनको तसल्ली दी।

 

मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके हर एक मंत्रिमंडल में आज़म खान की दूसरे नम्बर की हैसियत थी। 2012 से ठीक पहले स्थिति एकदम अलग थी। 2007 में मायावती बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बन गई थी और इस टेन्योर में अखिलेश यादव लगातार सँघर्ष करके लोकप्रियता की बढ़ रहे थे। आज़म खान तब समाजवादी पार्टी से नाराज थे। पार्टी में उनके विरुद्ध षड्यंत्र होने लगे थे। अमर सिंह की यादव परिवार से नज़दीकी काफी बढ़ गई थी। आज़म खान को तकलीफ होने लगी थी ,ग़ाज़ियाबाद की तर्ज पर लगातार उनको नीचा दिखाई जा रहा था । (गाजियाबाद में उन्हें एक दरोगा ने अपमानित किया था,कयास लगाया गया था कि इसमें दिल्ली में रहने वाले एक यादव परिवार के सांसद का हाथ था) और यह वो समय था जब मुलायम सिंह यादव , अमर सिंह के काफी करीब हो गए थे। 2009 में अपने एक अज़ीज़ सरफराज खान के घर पहुंचे आज़म खान अपनी तकलीफ भरे हुए गले के साथ उजागर की थी। उस समय यह चर्चा थी कि आजम खान अब समाजवादी पार्टी में कभी वापसी नही करेंगे। वो कांग्रेस में जा रहे हैं या फिर अपनी पार्टी बनाएंगे। कुछ लोग कहते थे कि बसपा सुप्रीमो मायावती भी उन्हें पार्टी में शामिल कराने की इच्छुक है।

मुलायम सिंह यादव और आज़म ख़ान

2009 सहारनपुर में आज़म खान ने कहा था कि नेता जी की जगह उनके दिल मे है और वो कभी उन्हें जुदा नही कर सकते मगर वो अब समाजवादी पार्टी में नही जाएंगे। इस दौरान एक घटनाक्रम के तहत मुलायम सिंह यादव बीमार हो गए और आज़म खान ने उनकी मुहब्बत में घर वापसी कर ली। बताते हैं कि अखिलेश यादव उस समय विदेश में अपने पिता की देखभाल में जुटे थे। बताते हैं कि वहां नेता जी ने अखिलेश यादव का हाथ आज़म खान के हाथ मे देकर कहा कि मेरे बाद अखिलेश का ख्याल रखना ! जज़्बाती आज़म खान ने दोनों हाथों से नेताजी का हाथ पकड़ लिया और अखिलेश यादव को गले से लगा लिया। इसके बाद आज़म खान ने अखिलेश यादव का पूरी ईमानदारी से साथ दिया। मुलायम सिंह यादव भी स्वस्थ होकर चुनाव प्रचार में जुट गए। मेहनत रंग लाई और 2012 में समाजवादी पार्टी बहुमत से सत्ता में आ गई। इन दिनों अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने को लेकर एक चर्चा हुई। उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव की महत्वकांक्षा को लेकर अजीब तरह का माहौल बना मगर मुलायम सिंह यादव ने सब संभाल लिया। तब भी आज़म खान ने अखिलेश यादव को अपना नेता स्वीकार किया और मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम का प्रस्ताव किया। यह आज़म खान की मुलायम सिंह यादव के प्रति वफादारी थी।

 

अखिलेश यादव की कैबिनेट में न केवल आज़म खान को प्रभावशाली मंत्रालय मिले बल्कि वो उन्होंने अखिलेश यादव के बाद दूसरे नम्बर पर शपथ ली। हिन्दू कट्टरवादी ताकतें उन्हें सुपर सीएम कहती थी और उनके विभाग में मुख्यमंत्री का भी कोई दखल नही होता था। यही नहीं अखिलेश यादव सरकार में मुसलमान मंत्रियों तक के पोर्टफोलियो में आज़म खान की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। आज़म खान के कद का आलम यह था कि रामपुर में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव उनसे पहले पहुंच गए थे और आज़म खान बाद में पहुंचे थे तो सभी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। इसी तरह सहारनपुर में भी वो देर से पहुंचे और अपनी ताकत का अहसास कराया। उनके करीबी बताते हैं कि इसके बाद आज़म साहब में बदलाव आया।

आज़म ख़ान में बदलाव

समाजवादी पार्टी के हर एक टेन्योर में ताकतवर बनते आज़म खान में महत्वपूर्ण बदलाव 2013 के बाद आया। इस दौरान मुजफ्फरनगर में हुए दंगे में एक षड्यंत्र के तहत उन्हें टारगेट किया गया और खलनायक की तरह पेश किया गया। एक विशेष मीडिया समूह ने उन्हें आधारहीन घटनाओ के आधार पर दोषी बताना शुरू किया। सच यह है कि मुजफ्फरनगर दंगे में आज़म खान का कोई किरदार ही नही था। न ही वो दंगा पीड़ित के साथ थे और न ही उन्होंने दंगाइयों के विरुद्ध कार्रवाई में कोई रुचि ली। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे में उन्हें हिंदूवादी मीडिया खलनायक बनाकर पेश किया। इसके बाद वो अपनी छवि बदलने की कवायद में जुट गए। मुजफ्फरनगर दंगे के समय आज़म खान यहां प्रभारी मंत्री थे। दंगे के बाद वो यहां नही आये। 2 साल बाद सहारनपुर की एक रैली में बहुत नाज नखरे के साथ वो पहुंचे और कहा कि “कहां से छेड़ूँ फसाना कहाँ तमाम करूँ “! आज़म खान उस समय अपने मिजाज, बढ़ती ताकत से आज़म खान अंदर और बाहर दोनों तरफ हिंदूवादी ताकतों की आंख किरकरी बन गए थे।

 

अपनी मीडिया के एक वर्ग द्वारा गढ़ी गई कट्टरवादी छवि को धोने का अतिरिक्त प्रयत्न करने लगे। अपनी ही पार्टी के मुस्लिम नेताओं में उनसे नाराजगी हो गई। शाकिर अली को मंत्री न बनवाने से लेकर, आशु मलिक का नाम एमएलसी लिस्ट कटवाने तक, कमाल अखतर को कमजोर करने से लेकर शाहिद मंजूर के पोर्टफोलियो की लड़ाई तक आज़म खान बदनाम होने लगे । उन्होंने मुसलमानों से दूरियां बना ली। एक के एक बाद एक राजनीतिक गलतियां करते गए। उलेमाओं पर टिप्पणी करने लगे। उन्होंने बिजनौर की रुचिवीरा और मेरठ की सरोजनी अग्रवाल के ओहदों के लिए वकालत की जो सरकार बदलते ही बदल गई । यहां तक की मुसलमानों की आंख की सबसे बड़ी किरकरी बन चुके वसीम रिज़वी की पैरोकारी भी आज़म खान ने ही की थी ,जब वसीम रिज़वी को अखिलेश यादव ने हटा दिया तो आज़म खान, मुलायम सिंह यादव के दखल से वापस वसीम रिज़वी को कुर्सी पर बैठाकर आये। अजीब हरकतें करने लगे,बिजनौर में उन्होंने कहा कि उन पर यह इल्ज़ाम गलत है कि वो मुसलमानों के काम करते है सच तो यह है कि वो सबसे ज्यादा काम बहुसंख्यक समुदाय के ही करते हैं।

रामपुर में आज़म खान को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि आज़म खान में आए इस बदलाव का एक दूसरा कारण था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी और वो एक ख़्वाब अपने सीने से हमेशा लगाकर चलते थे वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तर्ज पर एक यूनिवर्सिटी बनाना चाहते थे। आज़म खान को यह बात समझ में आ गई थी कि उन्हें अपनी छवि बदलनी ही होगी,हालांकि आज़म खान खुद में बिल्कुल भी साम्प्रदायिक नही रहे मगर मीडिया ने उनकी एक कट्टर मुसलमान की छवि बना दी थी।

आज़म का एक मात्र लक्ष्य जौहर यूनिवर्सिटी

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री कार्यकाल में उनका एकमात्र लक्ष्य अपना ख्वाब पूरा करना था। इसके लिए उन्होंने अपने विरोधियों से समझौता किया। खून के घूंट पिए। हर दरबार पर दस्तक दी। चंदा इक्क्ठा किया, ज़मीन जुटाई और अर्जुन की मछली की आंख की तरह लक्ष्य को भेद लिया। आज़म खान इस बात को भी स्वीकार कर चुके हैं कि किस्मत अगर अज़ीज़ कुरेशी साहब को लखनऊ राजभवन में राज्यपाल बनाकर न भेजती तो शायद यह ख़्वाब अधूरा रह जाता। यूनिवर्सिटी बनाने का यह ख़्वाब ही आज़म खान साहब में आए बदलाव की सबसे बड़ी वजह बना।

पिछले डेढ़ साल से सीतापुर जेल में बंद रामपुर के सांसद आज़म खान को कल जब उनकी हालत बिगड़ने के बाद लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया तो अचानक से उनसे सहानभूति का सैलाब उमड़ पड़ा। 100 से ज्यादा मुकदमे और उत्तर प्रदेश में एक समुदाय के उत्पीड़न का प्रतीक बन चुके आज़म खान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रामपुर से मौजूदा सांसद है। इससे पहले आज़म खान उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार में चार बार कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वो समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य है और 9 बार विधायक रहे हैं।

 

उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और उनके अब्दुल्लाह आजम को भी उनके साथ जेल भेजा गया था। फिलहाल उनकी पत्नी को जमानत मिल गई है और उनके बेटे अभी भी जेल है। पिछले 13 अप्रैल से आज़म खान की तबियत बेहद खराब है। 76 साल के आज़म खान को कोरोना हुआ था। 13 जुलाई को उन्हें तबियत खराब होने के बावूजद अस्पताल से सीतापुर जेल में भेज दिया गया था। अब उन्हें पुनः 19 जुलाई को ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

सवालो में समाजवादी पार्टी

उत्तर प्रदेश चुनावी साल के चलते आज़म खान का उत्पीड़न एक बड़ा मुद्दा बन गया है। समाजवादी पार्टी उनकी रिहाई के लिए कोई बड़ा आंदोलन न चलाने को लेकर सवालों के घेरे में है। यह अलग बात है कि आज़म खान के तमाम मुकदमों की पैरवी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की देखरेख में की जा रही हैं। आज़म खान से भाजपा की अदावत नई नही है। 2017 के चुनाव प्रचार में पहले भाजपा के कई नेता बाकायदा मंच से आज़म खान को जेल भेजने की बात कहते थे। आज़म खान को जेल भेजा जाना अघोषित चुनावी एजेंडे की तरह था। मौजूदा सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने तो उन्हें पेशी पर वृजवाहन से भेजे जाने की बात कही थी। हाल ही में आज़म खान की बेहद कमजोरी की हालत में कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई है उसके बाद उनके उत्पीड़न की चर्चा जोर पकड़ गई है। उत्तर प्रदेश में इसे बदले की राजनीति कहा जा रहा है।

एक बेहद मामूली परिवार से आने वाले आज़म खान की गरीबों में स्वीकरोक्ति उनके नवाबों के विरुद्ध आवाज़ उठानें से बनी थी। रामपुर की सियासत में पूरी पकड़ रखने वाले आज़म खान ने इस दौरान दीवानों की फौज खड़ी की तो उनके मुख़ालिफ़ों की जमात भी बन गई। रामपुर में ही उनका जमकर विरोध हुआ ! रामपुर की हवा एक बार फिर बदल गई हैं, अब उनके लिए सहानभूति की लहर बन रही है।

आज़म विरोधियों को भी मलाल

रामपुर में आज़म खान के धुर विरोधी रहे दानिश खान इसकी पुष्टि करते हैं वो कहते हैं बीमार हालात में जब आज़म खान साहब को अस्पताल ले जाया गया तो उनके सीने पर कलम थी। आज़म खान इसी कलम के लिए लड़ रहे थे ! आज उन्हें आज़म खान से कोई शिकवा नही है और वो उनकी सलामती की दुआ करते है। आज रामपुर में उनके विरुद्ध लड़ने वाला हर एक आदमी उनके लिए दुआ कर रहा है। आज़म खान एक नेक इंसान है ,अगर उनसे कोई गलती हुई भी है तो वो भी तालीम देने के उनके नेक मकसद के लिए हुआ है वो पूरी तरह आज़म खान की साथ है। दानिश कहते हैं कि अब तक पूरे देश को समझ मे आ चुका है कि यह पूरी कार्रवाई उन्हें और उनके समाज को नीचा दिखाने के लिए की जा रही है। उनके विरुद्ध किताब चोरी और मुर्गी चोरी जैसे मुकदमे दर्ज किए गए हैं। यह सब गलत है।

आज़म खान के परिवार से अब कोई मीडिया से बात नही करता। परिवार के एक सदस्य अजमल खान बताते हैं कि उन्हें अखिलेश यादव से कोई शिकायत नही है वो हर संभव प्रयास कर रहे हैं मगर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) स्वस्थ होते तो कुछ और बात होती। अजमल बताते हैं कि परिवार पर सबसे बड़ा सदमा यूनिवर्सिटी पर बुलडोजर चलने का पहुंचा है ,खान साहब (आज़म खान) को दिल को इससे बहुत ठेस पहुंची है अब वो बहुत कम बात करते हैं। वो एक मजबूत इंसान है उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया है। जेल उन्हें तोड़ नही पाएगी। आज़म खान के बिगड़े स्वास्थ्य के बीच आज अखिलेश यादव उनसे मिलने मेदान्ता अस्पताल पहुंचे। आलोचनाओं के बीच अखिलेश यादव ने अब स्पष्ट किया है वो और उनकी समाजवादी पार्टी आज़म खान साहब के साथ है और अब उनके विरुद्ध राजनीतिक द्वेष की इस कार्रवाई के विरुद्ध बड़ी लड़ाई लड़ी जाएगी। तो क्या अब आज़म खान की कहानी फिर बदेलगी…

(यह रिपोर्ट टू सर्किल डाॅट नेट से सभार ली गई है)