बिहार अपना क्रांतिकारी इतिहास फिर से जागृत कर रहा है! जो हो रहा है, किसी बगावत से कम नही है।

अमरेश मिश्रा

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बिहार मे जो हो रहा है, किसी बगावत से कम नही है। सोचिए! अभी कुछ दिन पहले मोदी-कॉरपोरेट ताकतों का डंका बज रहा था। कहा जा रहा था, की ताकतवरों से कोई लड़ नही सकता! नीतीश कुमार को कोई हिला नही सकता। जनता? जनता की कोई बिसात नही!  जो बिहारी प्रवासी मज़दूर करोना काल मे हज़ारों मील चल कर, जान-माल खोकर, बिलखते बच्चों के साथ, पैदल घर पहुंचे हैं, वो भाजपा-जदयू को फिर से वोट देंगें! लेकिन मीडीयाकर्मी भूल गए कि बिहार 1857-58 प्रथम सवतंत्रता संग्राम, 1942 Quit India Movement, 1940 में घटित स्वामी सहजानंद के नेतृत्व वाले किसान आंदोलन, 1960s के समाजवादी आंदोलन, 1974 छात्र आंदोलन और 1974-75 के क्रांतीकारी उभार की उर्वर धरती है।

यहां 1857-58 के अंग्रेज़-विरोधी महायुद्ध मे राजपूत राजा कुंवर सिंह ने जगदीशपुर-आरा-बक्सर-रोहतास बेल्ट मे ब्राहमणो, राजपूतों, भूमिहार ब्राहमणो, अहीरों, मुसलमानो और दलितों को साथ लेकर ऐसी लड़ाई छेड़ी की अंग्रेज़ो की हार हुई।  वहीं नालंदा,बिहारशरीफ, गया, नवादा, जहानाबाद, मगध इलाके मे भूमिहार ब्राहमण जिवधर सिंह के नेतृत्व मे दलित रजवारों, पासियों और मल्लाहों, अहीरों, पठानो ने मिलकर अंग्रेज़ो को खदेड़ दिया। दलित रजवार और अहीर (आज के यादव) कई जगह नेतृत्व मे उभरे।

तेजस्वी की सभा में उमड़ा जन सैलाब

भागलपुर इलाके मे भूमीहार ब्राहमण उदय राय भट्ट, गुणी झा, दीन दयाल चौबे, याद अली, सूरजा मांझी, बाऊर मल्लाह ने नेतृत्व संभाला। मुंगेर मे शहीदों ने सारे समीकरण धवस्त कर दिये। एक तरफ लमहुआ शाही और गंबीर झा लड़े, तो दूसरी तरफ नहार खान, ज़ोरावर खान, रोहन खान ने बलिदान दिया। वहीं चुलहई, लालू गुड़ायित, पोखन चौकीदार, रूपचंद और कमल ग्वाला ने मोर्चा संभाला। सारण, छपरा, तिरहुत, गोपालगंज, महाराजगंज, सीवान इलाके मे महाबोधी राय, रामू कोईरी (कुशवाहा),  छप्पन खान ने क्रांतीकारी कमान संभाली। पासवान, अहीर, कुर्मी और चमार बिरादरी ने बढ़चढ़ के हिस्सा लिया। तिरहुत, मुज़फ्फ़रपुर, वैशाली, हाजीपुर इलाके का नज़ारा भी अद्भुत था। यहां भूमिहार ब्राहमणो के गांव बड़कागांव और धरमपुर-तरियानी के अहीर,ग्वालों और मुसलमानो ने जम कर भागेदारी की। बड़कागांव मे रामदीन शाही और केदई शाही आगे रहे, तो धरमपुर-तरियानी मे भागीरथ ग्वाला, राधनी ग्वाला और राजगोपाल ग्वाला प्रमुख रहे।

1857-58 क्रांती की आग दरभंगा, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, बेगुसराय भी पहुंची। सीमांचाल के जिले कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा महीनो आज़ाद रहे। सभी जातियों ने हिस्सा लिया। बिहार मे 1857-58 की जंग, अंग्रेज़ी राज, अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित नील की खेती, अंग्रेज़ो द्वारा थोपे गये सामंतवाद और सूदखोरों के खिलाफ किसान विद्रोह था।  इसकी मांगे थीं:

  1. बंधुआ प्रथा खत्म होनी चाहिये। बाज़ार के दर पर मज़दूरी तय की जानी चाहिये।
  2. अंग्रेज़ो द्वारा लगान आधारित सामंती व्यवस्था खत्म की जाये। ज़मीन जोतने वालों को बाटी जाये।
  3. ज़बरदस्ती करने वाले सामंतो पर कार्यवाही हो।
  4. किसानो के कर्ज़ के जो बांड्स (bonds) हैं, उन्हे एक वर्ष के अंदर खत्म किया जाना चाहिये।
  5. रजवारों और गरीब किसानो के लिये रोज़गार की व्यवस्था होनी चाहिये।

1942 मे ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन बिहार मे इतना व्यापक और उग्र था कि अंग्रेज़ों को हवाई जहाज़ से फाईरिंग करनी पड़ी!

सहजानंद सरस्वती

सहजानंद सरस्वती भूमिहार ब्राहमण संत थे। 1940s मे गेरूआ वस्त्र धारण करते हुऐ, उन्होंनेे लाल झंडे की कमान संभाली। और अंग्रेज़ो की निरंकुश ज़मींदारी व्यवस्था के खिलाफ, कम्युनिस्ट पार्टी के आंदोलन को नये मुकाम पर पहुंचाया। 1960 में डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा। जिससें कर्पूरी ठाकुर जैसे पिछड़ों के नेता उभरे जो 1977 मे बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1974 का जय प्रकाश नारायण नेतृत्व वाला संपूर्ण क्रांती आंदोलन आज भी युवा-छात्रों के लिये मिसाल है। लालू यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान इत्यादी सभी ‘जे.पी.’ आंदोलन की उपज हैं।

टूटते रिकॉर्ड

भाकपा-माले

यहीं पर, मुशहरी, मुज़फ्फ़रपुर से क्रांतीकारी किसान आंदोलन की शुरूआत हुई। जुलाई 1975 मे सामंती व्यवस्था और इमरजेंसी के खिलाफ भाकपा-माले का क्रांतीकारी आंदोलन चला जिसने अंतराष्ट्रीय ध्यान बिहार की तरफ खींचा। भोजपुर-रोहतास बेल्ट मे कुंवर सिंह के विद्रोह की याद फिर ताजा हो गयी।

बहुआरा की लड़ाई

जुलाई 1975 के पहले हफ्ते मे बहुआरा, भोजपुर मे 96 घंटे, भाकपा-माले के सिर्फ 6  योद्धाओं ने बड़ी-बड़ी पुलिस-अर्ध सैनिक टुकड़ियों से लोहा लिया। 1857-58 के बाद पहली बार ऐसा युद्ध बिहार मे हुआ। ‘बहुआरा की लड़ाई’ का नेतृत्व बूटन मुसहर ने किया था। उनके साथ रामानंद पासी, विश्वनाथ चमार, सरजू तेली और डा. निर्मल इस युद्ध मे प्रमुख थे। इसके बाद विनोद मिश्र के नेतृत्व मे, भोजपुर-पटना-मगध-सिवान इलाके मे भाकपा माले का आंदोलन फैलता चला गया।

तेजस्वी की सभाओं में उमड़ने वाली भीड़

वर्तमान स्थिती

आगर राजद 1974 और कर्पूरी ठाकुर की धारा को ले कर चल रही है, तो भाकपा-माले राजा कुंवर सिंह, बूटन मुसहर और विनोद मिश्र की विरासत की पार्टी है। इन दोनो धाराओं का साथ आना बिहार मे क्रांतीकारी लहर पैदा कर रहा। इनके साथ व्यापक मोर्चे मे कांग्रेस और भाकपा माकपा भी हैं। भाकपा-माले 19 पर और राजद 140 +पर चुनाव लड़ रहा है। कांग्रेस 70 सीटों पर है। पूरा माहौल एक नए तरह का ‘लेफ्ट सेंटर’ हो गया है। यही महागठबंधन है जिसने मोदी, जे.पी नडडा और अमित शाह की रातों की नींद उड़ा दीं हैं।

(लेखक किसान क्रान्तिदल के अध्यक्ष, मंगल पांडेय सेना के संयोजक, इतिहासकार, पटकथा लेखक एंव पत्रकारिता से जुड़े हैं)