आलम बदी की ईमानदारी के सामने ध्वस्त हो जाती है बड़ी से बड़ी लहर, इस बार भी BJP को मिली निराशा

आजमगढ़: निजामाबाद विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक आलम बदी ने एक बार फिर जीत दर्ज की है। उन्होंने भाजपा के मनोज को 34187 वोट से हराया है। सपा के आलम बदी को कुल 79835 वोट मिले हैं, जबकि भाजपा के मनोज को 45648 वोट मिले हैं। वहीं बसपा के पीयूष सिंह 44657 वोट के साथ तीसरे पायदान पर रहे। बता दें कि यह सीट समाजवादी पार्टी का मजबूत किला है, साल 2017 में भाजपा की आंधी में भी यह सीट सपा के खाते में गई थी, इसकी बड़ी वजह आलम बदी हैं।

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विधायक आलम बदी चार बार इस सीट को सपा की झोली में डाल चुके हैं. पिछले चुनाव में मोदी लहर में भी निजामाबाद की जनता ने बदी को चुनकर विधानसभा भेजा था. उनकी छवि ईमानदार नेता की है। आलम बदी 1996 से लगातार इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इस बीच सिर्फ एक बार 2007 में बसपा उम्मीदवार अंगद यादव से हारे थे। इसके पहले अंगद दो बार और 1991 और 1993 में बसपा को जीत दिला चुके हैं। इस बार भाजपा ने इस सीट से मनोज को उतारा है। वहीं, बीएसपी की तरफ से पीयूष सिंह और कांग्रेस की ओर से अनिल यादव को चुनावी मैदान में उतारा था। लेकिन आलम बदी की सादगी, उनकी ईमानदार छवि ने सबको पछाड़ते हुए भारती अंतर से जीत हासिल की।

क्या है सीट का इतिहास

निजामाबाद विधानसभा सीट पर 1957 में पहला चुनाव हुआ था। तब कांग्रेस के चंद्रबली ब्रह्मचारी जीते थे। इस सीट पर कांग्रेस चार बार जीती है। आखिरी बार उसे 1989 में राम बचन ने जीत दिलाई थी। एक-एक बार जनता पार्टी और लोकदल के खाते में भी यह सीट जा चुकी है। भाजपा का अब तक खाता नहीं खुला है।

2017 विधानसभा चुनाव का नतीजा

पिछले विधानसबा चुनाव में समाजवादी पार्टी के आलम बदी को 67274 वोट मिले थे। उन्‍होंने बसपा प्रत्‍याशी चंद्रदेव राम को 18529 वोट से हराया था। चंद्रदेव को 48745 वोट मिले थे। 43786 वोट के साथ भाजपा के विनोद कुमार राय तीसरे स्थान पर थे। लगभग 3.15 लाख मतदाताओं वाली निजामाबाद विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोटर की संख्या 1.10 हैं। ऐसे में यह जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। दलित वोटर करीब 78 हजार, यादव वोटर करीब 61 हजार हैं। राजभर 17 हजार, चौहान 14 हजार और ब्राह्मण वोटरों की संख्‍या छह हजार से भी कम है।

आलम बदी का परिवार

आलमबदी के परिवार में पत्नी के अलावा उनके 6 बेटे हैं, जिसमें से 3 बेटे रोज़गार के लिए बाहर हैं। बाकि एक बेटा प्राइवेट नौकरी करता है और दूसरा बेटा फर्नीचर की एक छोटी सी दुकान चलाता है। इसके अलावा उनका सबसे छोटा बेटा उन्हीं का साथ एक पीए की तरह रहता है और काम-काज में उनकी मदद करता है।

विधायक आलम बदी जिस घर में रहते हैं वो एक सामान्य पुराने घर की तरह है जिसमें बाहर के एक हिस्से में टीन शेड पड़ा हुआ है जहां पर वे आए हुए लोगों से मुलाकात करते हैं। आलमबदी के बारे में बताया जाता है कि कई बार तो वह खुद ही अपने घर की झाड़ू भी लगा दिया करते हैं। आलम बदी के घर पर कोई नौकर भी नहीं हैं, सब काम उनके बेटे और पोते ही करते हैं।

आलम बदी का हाव भाव एकदम सादगी भरा है, बेहद सस्ते कपड़े का कुर्ता पायजामा, मामूली चप्पल, कान में छोटी सी सुनने की मशीन, हाथ में महज 1200 रूपये का मोबाइल फोन। आलम बदी में सादगी इतनी कि वह बिना लाव लश्कर के अपने विधानसभा क्षेत्र में घूमते हैं कहीं भी किसी चाय की दुकान पर बैठ जाते हैं लोगों से गप्पे लड़ाते हैं और उनकी समस्या सुनते हैं।

जहां आज एक ओर नेता बड़ी बड़ी गाड़ियों के काफिले के साथ चलते हैं वहीं आलमबदी अधिकतर यूपी रोडवेज की बस में ही सफर करते हैं, लखनऊ विधानसभा में भाग लेने के लिए भी वे रोडवेज बस से ही लखनऊ जातें हैं। आलम बदी उन लोगों में से हैं जो आज भी क्षेत्र में पैदल घूमते और चलते हैं। आलम बदी के पास चार पहिया गाड़ी के नाम पर एक सेकेंड हैंड बोलेरो गाड़ी हैं। आलम बदी की सादगी का अंदाजा इसी बात से चलता है कि वह अपने साथ कार्यकर्ताओं का झुंड रखना बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं।