गिरीश मालवीय
अक्सर यह कहा जाता है कि सत्तासीन दल के द्वारा भ्रष्टाचार की पोल तब ही खुल पाती है जब कोई दूसरा दल सत्ता में आ जाता है आज यह बात फिर से सच साबित हुई है. मोदी सरकार द्वारा जिस योजना को सबसे अधिक सफ़ल बताया जा रहा है उसमे ही सबसे अधिक भ्रष्टाचार हुआ है और अब तो शुरुआती रुझान भी सामने आ गए हैं हम बात कर रहे हैं स्वच्छ भारत योजना की. महात्मां गांधी की 150वीं वर्षगांठ-2 अक्टूबर, 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त करना इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य रखा गया था ओर इसके लिए करोड़ों शौचालयो का निर्माण किया जाना था लेकिन शौचालय निर्माण में हुए भयानक भ्रष्टाचार की पोलपट्टी खुलने लगी है. धीरे धीरे अब यह खुलासा होने लगा है कि यह स्वच्छ भारत योजना नही थी यह भ्रष्ट भारत योजना थी.
आज खबर आई कि मध्यप्रदेश में 540 करोड़ रुपये का स्वच्छ शौचालय घोटाला सामने आया है। यहां साल 2012 से 2018 के दौरान राज्यभर में 4.5 लाख शौचालय का निर्माण दिखाया गया। वास्तव में इन शौचालय का निर्माण हुआ ही नहीं था। इन शौचालयों को कागजों में निर्माण दिखा दिया गया। सबूत के रूप में जिन शौचालयों की फोटो जमा की गई वह कहीं और के शौचालयों की थी। अधिकारियों ने जब इन फोटोग्राफ को जीपीएस से टैग करने की कोशिश की तो यह शौचालय ‘गायब’ मिले।
दरअसल मध्य प्रदेश सरकार, प्रदेश में कुल 122 लाख घर मानती है। जिसमें से सिर्फ 32 लाख घरों में शौचालय की उपलब्धता है। बाकी लोग खुले में शौच जाते हैं। इस तरह से स्वच्छ भारत अभियान के तहत 90 लाख घरों में शौचालय बनाना तय किया था ओर इसके लिए 10 हजार रुपए प्रति शौचालय देने की बात की गई थी अक्टूबर-2014 से दो हजार रुपए प्रति शौचालय और अतिरिक्त ओर देने की बात की गई यानी कुल 12 हजार रुपए प्रति शौचालय.
शिवराज सरकार ने 90 लाख में से 36 लाख शौचालय बनाने का सरकारी दावा किया था. आज सामने आया है कि मध्यप्रदेश में ऐसे 4.5 लाख शौचालय चिह्नित किए गए हैं जो, वास्तव में मौजूद नहीं है। पंचायत और ग्रामीण विकास के लिए यह आंखें खोलने वाला मामला है। अधिकारी के अनुसार जो शौचालय मौजूद नहीं है उनकी लागत करीब 540 करोड़ रुपये है। लेकिन सच कहें तो यह रकम सिर्फ टिप ऑफ आइसबर्ग है पूरे देश मे यदि ढंग से जाँच की जाए तो यह लाखों करोड़ों का घोटाला सामने आएगा. दरअसल मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मे देश के राज्यों को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए वर्ल्ड बैंक की ओर कर्ज दिया जाना था, लेकिन इसके लिए विभिन्न चरणों में वास्तविक परिणामों की स्वतंत्र जांच रिपोर्ट सौंपने की शर्त थी। लेकिन खुले में शौच को कम करने पर स्वतंत्र जांच सर्वेक्षण न हो पाने के कारण जुलाई 2017 में तक करोडों डॉलर का फंड नहीं मिल पाया और ऊपर से मोदी सरकार को उधार ली गयी धनराशि के समय पर खर्च न हो पाने के कारण देश को कमिटमेंट चार्ज के रूप में भारी भरकम कीमत चुकाना पड़ा.
दरअसल में सरकार का कोई विभाग जब विदेश से वित्तीय मदद या उधार लेता और उसे समय पर ड्रॉ नहीं कर पाती तो कमिटमेंट चार्ज देना पड़ता है। यह बात कैग द्वारा ऑडिट करने पर सामने आई कि बीते पांच साल में कमिटमेंट चार्ज का आंकड़ा 553 करोड़ रुपये से अधिक है. सच तो यह है कि सिर्फ मध्यप्रदेश में इस योजना की किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच करवा ली जाए तो अकेले मध्यप्रदेश में स्वच्छ भारत योजना मे किये गए भ्रष्टाचार की रकम का घोटाला बड़े से बड़े घोटाले को भी पीछे छोड़ सकता है.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)