नयी दिल्लीः तीन कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने इन्हें किसानों के लिए फायदेमंद बताते हुए इसे निरस्त नहीं करने की सिफारिश की थी। पिछले साल नवंबर में संसद ने तीनों कानूनों को रद्द कर दिया था। समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाता सम्मेलन में रिपोर्ट के निष्कर्ष जारी किए। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ज्यादातर किसान संगठन एंव किसान तीनों कृषि क़ानूनों से सहमत थे।
अब इस रिपोर्ट पर भारतीय किसान यूनियन का बयान आया है। भारतीय किसान यूनियन ने अपने ऑफिशियल फेसबुक पेज पर लिखा है कि “तीन कृषि कानूनों पर बनी सुप्रीम कोर्ट की समिति के सदस्य अनिल घनवट ने सौंपी रिपोर्ट सार्वजनिक कर साबित कर दिया कि वे केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे। इसीलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस समिति को ही सिरे से खारिज कर तीनों सदस्यों की मंशा पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गोपनीय रिपोर्ट अब सार्वजनिक करना पहले अदालत का घोर अपमान है साथ ही फिर से बिलों को लाने की केंद्र की कुटिल चाल की भी गंध आ रही है।”
भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि मध्यप्रदेश में मंडियों की जमीन निजी कंपनियों को बेचना और हरियाणा में सीधे साइलो में अनाज बेचने की जुगत यही इशारा करते हैं कि सरकारें किसानों के नहीं निजी कंपनियों के लिए एजेंट बन काम कर रही हैं। घनवट की रिपोर्ट बाहर आने और बिलों के प्रबल समर्थन में खड़ा होना ये भी इंगित कर रहा है कि केंद्र सरकार कहीं फिर से इन बिलों को तोड़मरोड़कर लाने की जुगत में तो नहीं?
किसान संगठन ने चेताया कि यदि ऐसा हुआ तो फिर देशभर का किसान इस बार और जोरदार तरीके से आंदोलन खड़ा करने पर मजबूर होगा। और हर राज्य में किसान को सड़कों पर आते देर नहीं लगेगी। इसके लिए भारतीय किसान यूनियन किसानों को जागरूक करने के लिए देश के हर गांव में जाएगी।