चुनावों के समय मां की मोहब्बत बेचने वाले सेल्फीधारियों ने इन मांओं को मरने के लिए छोड़ दिया है.

कृष्णकांत

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

मदर्स डे बीत चुका है. इस दौरान पिछले कुछ दिनों में कई मांओं ने सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए सड़क पर अपने बच्चों को जन्म दिया है. शकुंतला पेट से थी. कुछ और लोगों के साथ वह नासिक से पैदल सतना जा रही थी. 70 किलोमीटर चलने के बाद शकुंतला को प्रसव पीड़ा होने लगी. साथ में और महिलाओं ने मिलकर साड़ी से आड़ किया और शकुंतला की डिलीवरी करवाई. दो घंटे नवजात को लेकर सभी लोग फिर चल पड़े. इस जत्थे में शकुंतला के अलावा एक और महिला पेट से है.

प्रसव के बाद शकुंतला 170 किलोमीटर तक पैदल चली. एमपी-महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर किसी अधिकारी की नजर पड़ी तो उसने सभी को कोरंटाइन सेंटर पहुंचाया और दोनों महिलाओं को अस्पताल भेजा गया. शकुंतला के पति राकेश नासिक में नौकरी करते थे. लॉकडाउन ने उनकी नौकरी छीन ली है. कमाई बंद होने के बाद राकेश गर्भवती पत्नी को लेकर पैदल ही निकल पड़े. रास्ते में एक सिख परिवार ने नवजात बच्चे के लिए कपड़े और जरूरी सामान देकर मदद की.

इस कड़ी गर्मी में कोई मां 70 किलोमीटर पैदल चलने के ​बाद सड़क पर बच्चे को जन्म देती है और फिर उठकर 170 किलोमीटर पैदल चलती है. दिल्ली में बहस हो रही है कि ट्रेन तो चलेगी लेकिन किराया राजधानी का लगेगा. शकुंतला अकेली नहीं है. ललितपुर की राजाबेटी अपने 9 महीने के गर्भ के साथ मध्य प्रदेश से पैदल चली थीं. ललितपुर पहुंचकर एक पेड़ के नीचे उन्होंने अपने बच्चे को जन्म दिया.

राजाबेटी अपने परिजनों के साथ मध्य प्रदेश के पीतमपुर से चली थीं. वे शनिवार शाम ललितपुर पहुंचे थे तभी बालाबेहट गांव में राजाबेटी को दर्द शुरू हो गया. आसपास की महिलाओं ने आकर राजाबेटी की डिलीवरी करवाई. बाद में जानकारी होने पर अस्पताल की टीम आई और राजाबेटी को अस्पताल ले गई.

चार दिन पहले तेलंगाना से छत्तीसगढ़ जा रही सुनीता ने हैदराबाद नेशनल हाइवे 44 पर बच्चे को जन्म दिया है. हैदराबाद के कुकटपल्ली से 70 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सुनीता को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई. सड़क पर साथ की महिलाओं ने डिलीवरी करवाई. नूर मोहम्मद गर्भवती पत्नी के साथ सूरत से उत्तर प्रदेश के लिए निकले थे. आठ मई को वे महाराष्ट्र के जलगांव पहुंचे थे तभी रास्ते में ही पत्नी ने बेटे को जन्म दिया.

इंटरनेट पर सर्च किया तो ऐसी दर्जनों खबरें मौजूद हैं. संख्या बता पाना मुश्किल है. भारत के मजूदर और बरीब शायद अब तक की सबसे भयावह त्रासदी से जूझ रहे हैं. हैरत है कि मजदूर संगठन हों या राजनीतिक पार्टियां, विपक्ष या सरकार, दो महीना बीतने को है और इनके पास इन मजदूरों को राहत देने के लिए कुछ नहीं है. चुनावों के समय मां की मोहब्बत बेचने वाले सेल्फीधारियों ने इन मांओं को मरने के लिए छोड़ दिया है. वे चाहते तो निश्चित ही इन मांगों की मदद कर सकते थे.