असग़र वजाहत
उर्दू के बहुत सीनियर लेखक और पत्रकार एस. एम. मेहंदी साहब ने एक रिकॉर्डिंग के दौरान हसरत मोहानी को याद करते हुए उनके साथ अपने कुछ निजी अनुभव साझा किए थे। एस. एम. मेहंदी साहब कानपुर में छात्र थे और हसरत मोहानी कांग्रेस के बड़े नेताओं और उर्दू के प्रतिष्ठित शायरों में शुमार होते थे। मेहंदी साहब की यादों को उन्हीं की ज़बानी बयान करने की कोशिश कर रहा हूं।
एक दिन हमारे ग्रुप ने तय किया कि मौलाना हसरत मोहनी से मिला जाए। उनसे कुछ सलाह ली जाए क्योंकि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जेलों में बंद थे। हम लोग चमनगंज में मौलाना के घर पहुंचे। दरवाजा खटखटाया। मौलाना ने दरवाजा खोला। गर्मी के दिन थे मौलाना नंगे बदन थे। हम लोगों ने उनसे कहा कि आपसे कुछ बात करनी है। मौलाना ने कहा अभी ठहर जाओ, मुझे बाजार जाना है, कुछ काम है। तुम लोग साथ चलो रास्ते में बातचीत भी होती रहेगी। मौलाना कुर्ता पहन कर बाहर आ गए और लोगों को लेकर लकड़ी की टाल पहुंचे। उन्होंने लकड़ी तुलवाई।टाल वाले को पैसे दिए और लकड़ी अपने कंधे पर रखकर घर की तरफ वापस आने लगे। हम लोगों ने बहुत कहा कि मौलाना लकड़ी हम उठा लेते हैं लेकिन वो किसी सूरत तैयार नहीं हुए। भरी बाजार से लकड़ी कंधे पर रखे बड़े आराम से चलते रहे। कुछ दुकानदार उन्हें सलाम भी कर रहे थे। मौलाना जवाब देते रहे थे। उनके चेहरे पर ऐसा भावना न था कि वह कोई ‘छोटा’ काम कर रहे हैं।
लखनऊ में कोई बड़ी कॉन्फ्रेंस होने वाली थी। हमारा स्टूडेंट्स का ग्रुप चाहता था कि मौलाना हमारी तरफ से कॉन्फ्रेंस में जाएं और वापस लौट कर हमें बताएं कि कांफ्रेंस में क्या हुआ था। मौलाना ने कहा कि वो जा सकते हैं लेकिन उनके पास किराए के पैसे नहीं है। उस जमाने में कानपुर से लखनऊ आने जाने में रेल और तांगे के किराए के 12 आने होते थे। हम लोगों ने चंदा करके बारह आने मौलाना को दे दिए। मौलाना कॉन्फ्रेंस अटेंड करके आए। हम लोगों को तफ़सील से सब बताया। और दो आने हमें वापस किए। कहने लगे, अपने दो आने वापस ले लो। कॉन्फ्रेंस से जब स्टेशन आना था तो तांगा करने की जरूरत नहीं पड़ी। मोतीलाल नेहरू ने अपनी कार से मुझे स्टेशन पहुंचा दिया था।
मौलाना बड़ी दिलचस्प बातें करते थे। कभी-कभी हम लोगों के साथ मजाक भी कर लेते थे। एक दिन हम लोगों ने पूछा मौलाना ये आप हर साल हज करने क्यों जाते हैं । मौलाना ने कहा इसकी दो वजहें हैं। पहली यह कि मुझे जहाज़ पर इंटरनेशनल ऑडियंस मिलती है। उनसे बातचीत करने का मौका मिलता है। दूसरी बात यह कि जहाज पर कोई ऐसी सूरत दिखाई दे जाती है कि पूरे साल ग़ज़ल लिखने का इंतजाम हो जाता है।