पलश सुरजान का लेख: देश को शर्मसार करने के बाद, सर्वधर्म समभाव का नाटक

अभी पिछले दिनों ही अपने कार्यकाल के 8 वर्ष पूर्ण करने के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया था कि ‘इस दौरान उन्होंने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया है जिससे देश का सर शर्म से झुक जाये।’ उनके दावे को गलत साबित होने में अधिक वक़्त नहीं लगा। सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा हाल ही में एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद को लेकर विवादास्पद बयान दिये गये, वहीं एक अन्य प्रवक्ता नवीन जिंदल ने सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाली टिप्पणियां लिखीं। इन दोनों के बयानों से न केवल भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय में भारी रोष है वरन अनेक मुस्लिम देशों में भी गुस्सा है।

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कतर, कुवैत एवं ईरान की सरकारें वहां स्थित भारत के राजनयिकों को तलब कर अपनी नाराज़गी जतला रही हैं, वहीं कुछ स्टोर्स से भारतीय उत्पादों को हटाने की खबरें हैं। खाड़ी देशों की कुछ कम्पनियां वहां कार्यरत भारतीय हिन्दुओं को वैमनस्य फैलाने वाली बातों से बाज आने की चेतावनी दे रही हैं। कानपुर में भड़की हिंसा भी इसी का परिणाम है। इसके चलते भाजपा ने नुपुर को निलम्बित और नवीन को निष्कासित कर दिया है। वैसे यह पहला मौका नहीं है कि देश को भाजपा की हरकतों के कारण शर्मसार होना पड़ रहा है। कई अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाएं भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विभाजनकारी नीतियों पर आवरण कथाएं छापती रही हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर से सरकार के इस्लाम विरोधी फैसलों पर कठोर टीकाएं भी हुई हैं।

अपनी लोकतांत्रिक व सेक्युलर नीतियों के कारण कभी विश्व भर में सिरमौर रहने वाला भारत आज जिस तरह से लज्जित हो रहा है वह चिंताजनक है। भाजपा नेताओं एवं प्रवक्ताओं के नफ़रती बोल का असर तत्काल और दूर तलक हो रहा है, जो दुखद और चिंताजनक है। पिछले करीब तीन दशकों से ऐसा होता साफ़ दिख रहा है। श्री मोदी द्वारा दो बार सत्ता पा लेने के कारण नेताओं व कार्यकर्ताओं के सभी स्तरों पर अहंकार में बड़ा इज़ाफा दर्ज किया गया है। चूंकि यह पार्टी एवं उसके शीर्ष नेता हर समय चुनावी मोड में रहते हैं, इसलिये वातावरण को गर्माए रखना पार्टी में एक सामूहिक जिम्मेदारी बन गई है।

इसमें प्रवक्तागण प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं जो पार्टी लाइन के अनुरूप भड़काऊ बयान देते हैं ताकि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता जाए। इसी योजना के तहत पिछले कुछ समय से एक के बाद एक इस्लाम व मुस्लिम विरोधी मुद्दे उठ रहे हैं- कभी राम मंदिर तो कभी विश्वनाथ, कभी कुतुब मीनार तो कभी ज्ञानवापी। इसी क्रम में भाजपा द्वारा गौमांस, हिजाब, कब्रिस्तान-श्मशान 80 बनाम 20 जैसे विवाद सुनियोजित तरीके से नियमित अंतराल में उत्पन्न किये गये। मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा का पाठ और मुस्लिमों के धर्म स्थलों में शिवलिंग ढूंढ़ना साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ ही रहा है।

सर्वाधिक दुखद है इन तमाम विवादों में मोदी एवं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की चुप्पी जो उनकी स्वीकृति को साबित करता है। इस कार्रवाई के बाद कहने को तो नुपुर शर्मा ने माफी मांग ली है लेकिन क्या भाजपा व सरकार वाकई इसके लिये शर्मिन्दा होगी? बेशक नहीं! यह पार्टी की कार्रवाई है, सरकार की कार्रवाई बची है। इन्हें गिरफ्तार करना चाहिये तो ही माना जायेगा कि भाजपा व सरकार इसे लेकर गम्भीर है। स्पष्ट है कि यह कदम अरब देशों के गुस्से को शांत करने के लिये है। याद रहे कि अटल बिहारी वाजपेयी भी लगभग सवा छह वर्ष प्रधानमंत्री रहे परन्तु तब सरकार, पार्टी अथवा उसके कार्यकर्ता- कोई भी ऐसे बेलगाम व अराजक नहीं हुए थे। चूंकि वाजपेयी की सरकार कई सहयोगी दलों के समर्थन से चल रही थी तो कहा जा सकता है कि यह उनकी मजबूरी रही हो कि वे अपना पार्टी का एजेंडा ठंडे बस्ते में ही रखें। अब भाजपा पूर्ण बहुमत में है और मोदी व भाजपा दूसरे कार्यकाल में अधिक बड़ा बहुमत लेकर आई है, तो सरकार का निरंकुश होना, पार्टी का अहंकारी हो जाना और कार्यकर्ताओं-समर्थकों का अराजक बनना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

भाजपा द्वारा सत्ता में आने के बाद किया जाने वाला यह व्यवहार दरअसल उसके पिछले तकरीबन सौ वर्षों के इंतज़ार एवं तैयारियों का परिणाम है। पूर्व भारतीय जनसंघ तथा मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में जिस विभाजनकारी विचारधारा को सींचा गया है, उसी की परिणति है आज देश का यह कटु माहौल। इस विचारधारा के अनुसार भारत हिन्दुओं का देश है जहां अन्य धर्मावलम्बी दोयम दर्जे के हैं। बहुलतावाद की बजाय बहुसंख्यकवाद की हिमायती भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारें इसी विभाजनकारी विचार के इर्द-गिर्द घूमती हैं। मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक कानून की समाप्ति, राम मंदिर संबंधी निर्णय, नये नागरिकता कानून आदि इसी की देन हैं। पार्टी कार्यकर्ता भी देश भर में आये दिन कोई न कोई बवाल खड़ा कर इस दूरी को और बढ़ा रहे हैं।

सारे चुनाव अब साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर लड़े जा रहे हैं। इसे हवा देना भाजपा के लिये आवश्यक है, इसलिये पार्टी प्रवक्ता समाचार चैनलों पर 24×7 नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं जिसमें टीवी के समाचार चैनल वैसा ही योगदान दे रहे हैं व उतनी ही बड़ी भूमिका निभा रहे हैं- बगैर यह सोचे कि इससे देश में रहने वाले हिन्दुओं एवं मुस्लिमों के बीच ऐसी खाई बन जायेगी जो कभी भी नहीं भरी जा सकेगी; और देश जिस भी रूप में रहे- वह आंतरिक तौर पर खंडित-विभाजित और उसके फलस्वरूप बाह्य रूप में एक कमज़ोर राष्ट्र होगा।

प्रवक्ताओं पर कार्रवाई करते हुए पार्टी हाई कमान ने उनके बयानों को दल की विचारधारा के ख़िलाफ़ बताते हुए कहा है कि ‘सर्व धर्म समभाव की भावना के अनुरूप भाजपा सभी धर्मों का सम्मान करती है।’ अगर ऐसा सचमुच है तो नुपुर व नवीन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो। तभी इस पर विश्वास होगा। हालांकि इसकी गुंजाइश नगण्य है क्योंकि सोशल मीडिया पर भाजपा के कार्यकर्ता इन दोनों के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं।