राजकुमार सोनी
एक के हाथ में त्रिशूल हैं.दूसरे ने भाला थाम रखा है. किसी तीसरे के पास जंग लगी कटार हैं.चौथा शख्स बटन चाकू लेकर घूम रहा है.एक ने तो जाफरानी के खाली डिब्बे में बारूद को ठूंस-ठूंसकर भर लिया है. जाने कब कहीं पटकना पड़ जाय ? एक ने लाठी को तेल पीला दिया है तो किसी ने हॉकी स्टिक उठा रखी हैं. एक शख्स जेब में मिर्ची पावडर की पुड़िया लेकर घूम रहा है ? कोई हमला करेगा तो आंखों में मिर्ची झोंक दूंगा. एक के पास तो देसी तमंचा हैं तो एक ने रिवाल्वर के लिए कलेक्टर कार्यालय में आवेदन लगा रखा है.
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा हमारे मुल्क के किस हिस्से में हो रहा है ?कहां हो रहा है ? कहीं ये सब दृश्य फिल्म मेरे अपने या अंकुश के तो नहीं है ? क्या यह सब दृश्य कल्पना की उपज हैं ?
लेकिन पता नहीं क्यों जितने लोगों से बात करता हूं तो लगता कि ऐसा देश के हर हिस्से में हो रहा है ? हर घर में हो रहा है ? क्या सचमुच इस देश की एक बड़ी आबादी ऐसे संभावित दृश्यों के बारे में सोच रही हैं ?
देश के वर्तमान निजाम की बांटों- छांटो और काटो वाली राजनीतिक सोच ने हम सबके हाथों में जाने-अनजाने में ही सही हथियारों का जखीरा थमा दिया है.जो मूढ़ बुद्धि के हैं वे कह सकते हैं कि कहां हैं हथियार… किधर हैं हथियार? क्या मैं बकवास कर रहा हूं ?
मैं जरा भी बकवास नहीं कर रहा हूं. जरा अपने आसपास देखिए… आप हर रोज़ कितने लोगों से लड़ रहे हैं ? आप लड़ना नहीं चाहते तो वे लोग आपसे लड़ने आ जाते हैं. अगर आपने कश्मीर फाइल्स नहीं देखी तो आपको देशद्रोही कहा जा रहा है. अब कोई लंपट और गदहे का बच्चा आपको देशद्रोही कहेगा तो क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा ? आपको गुस्सा आता है और आप अलबर्ट पिंटो की तरह सामने वाले पर पिल पड़ते हैं.
लंपट समुदाय के लोग सुबह होते ही इस बात की चर्चा ( लड़ने ) करने लगते हैं कि देश का हर मुसलमान गद्दार है. इस कौम से नफरत करनी चाहिए. इस कौम को नेस्तनाबूद कर देना है. आप संवेदनशील हैं.अच्छे मनुष्य की श्रेणी में आते हैं तो आप कूद पड़ते हैं.आप कहते हैं-नहीं ऐसा नहीं हैं. देश की आज़ादी में मुसलमानों का बड़ा योगदान है.गद्दार तो वे लोग हैं जो अंग्रेजों से माफी मांग रहे थे. तर्क चलता है. कुतर्क चलता है. बात इतनी ज्यादा आगे बढ़ जाती हैं कि आपको कहना पड़ता है- जब यह देश पूरी तरह से बरबाद हो जाएगा तब तुमको समझ में आएगा. उधर से आवाज़ आती हैं- आप जैसे विभीषण और जयचंदों की वजह से हम हिन्दू राष्ट्र नहीं बना पा रहे हैं ?
गाली-गलौच होने लगती हैं. मां की गाली.बहन की गाली. अबे जा साले….अबे तू जा…
जानता हूं तेरी औकात क्या है ?
दो कौड़ी के आदमी तू…मुझे औकात मत बता. हम सेक्यूलरों के पिछवाड़े में भाला डाल देंगे. अबे…तू क्या भाला डालेगा साले…मेरा भाई डिफेंस में हैं. मेरा भाई कर्नल है. तेरे पिछवाड़े में तो एक ही गोली काफी है.
आप कहते हैं-बेटा जल्द ही समझ जाओगे. वे कहते हैं- हम तुमको समझा देंगे.इस देश में रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा.
चल वंदे मातरम बोलकर बता ?
तू जय-जय श्रीराम बोल के दिखा.
मैं क्यों बोलूं ?
मैं भी क्यों बोलूं ?
साले…रहोगे गोबरभक्त ही.
और तुम पप्पू के चमचे रहोगे
जा गौमूत्र पी
जा पप्पू मूत्र पी
फिर गाली और गलौच
बम-बारूद
चाकू और भाला
दिखा देंगे… सीखा देंगे…बता देंगे.
यहूदी… नाजी…जेनोसाइड..नरसंहार… फासिस्ट.. गद्दार… विभीषण… जयचंद…
ना जाने कितने शब्द हवा में तैर रहे हैं ?
दोस्तों…एक युद्ध छिड़ चुका हैं.
सवाल यह है कि यह युद्ध कब तक चलेगा ?
जवाब यह हैं कि जब तक देश का एक-एक नागरिक नहीं समझेगा कि निज़ाम ने हमारे हाथों में हथियार थमाकर हमें आपस में ही युद्ध करने के लिए झोंक दिया गया हैं तब तक तो युद्ध चलता रहेगा.
क्या हमें लड़ना बंद कर देना चाहिए ?
विचारधारा के सही होने ? अच्छे और बुरे होने की लड़ाई सदियों से जारी है.
पहले इस लड़ाई में एक खराब काम का जवाब अच्छे काम से दिया जाता था.. लेकिन अब ऐसा नहीं है.
दोस्तों…लड़ाई तो जारी रहने वाली हैं.
क्या यह नहीं हो सकता कि हम निज़ाम की कठपुतली बनकर लड़ना बंद कर दें ? ऐसा हो तो सकता है… लेकिन वे ऐसा होने नहीं देंगे. कभी कश्मीर फाइल ले आएंगे तो कभी कोई दूसरी फाइल ?
अगर युद्ध चल भी रहा है तो भी मैं होली पर गुलाल का टीका लगाना. गुजिया खाना…दीवाली पर फटाखे फोड़ना. ईद पर गले मिलना…क्रिसमस पर केक खाना और प्रकाश पर्व पर सड़क किनारे खड़े होकर गुलाबी रंग का मीठा शरबत पीना नहीं भूल सकता ? आप भूल सकते हैं क्या ?
(राजकुमार सोनी अपना मोर्चा के संपादक हैं, उनसे 9826895207 पर संपर्क किया जा सकता है)