क्या सरकार, मीडिया और कॉर्पोरेट मिल कर प्राइवेटाइजेशन के लिए षणयंत्र कर रहें हैं?

भारत में पहली प्राइवेट ट्रेन कुछ दिन पहले अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलाई गयी। जो एक घंटे लेट पहुंची और हर मीडिया चैनल ने बताया की इसके लिए हर यात्री को 100 रुपया रिफंड मिलेगा। सुनने में कितना अच्छा है कि जिस देश में ट्रेन कभी टाइम पे नहीं आती वहाँ एक ट्रेन 1 घंटा लेट होने पे पैसा वापस कर रही है. फिर तो पूरा रेलवे ही प्राइवेट को दे देना चाहिए चाइये कि नीं चाइये मैं पूछता हूँ.

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अब षणयंत्र समझिये: अहमदाबाद से मुंबई तक रेलवे की आम ट्रेन का किराया मात्र 190 रुपया है. जबकि  तेजस ट्रेन का किराया इसका 12 गुना से भी अधिक 2,374 रुपये है. इसमें अच्छी सुविधा, साफ सफाई का भी 100-200 जोड़ लिया जाये तब भी कुल किराया 374 से ज्यादा नहीं होगा. लेकिन प्राइवेट सेक्टर आपसे 2000 अधिक वसूल रहा है. ट्रेन के लेट होने पर इसमें से अगर 100-200 रुपया वापस भी कर दिया तब भी 1800 किसकी जेब से गया?

इस ट्रेन की नॉन एग्जीक्यूटिव टिकट का किराया भी नार्मल ट्रेन का सात गुना ज्यादा है। ऊपर से रिफंड की अपनी पॉलिसी है, यदि आपने एजेंट से टिकट बुक कराई है तो आपको रिफंड नहीं मिलेगा। कस्टमर कन्फर्म होने के बाद ही कुछ संभव है. उसपे भी IRCTC के नियम के अनुसार रिफंड नियत दिनों के बाद ही मिलेगा. अरे जब ज्यादा पैसे लेने के लिए VISA और Razor की सर्विस ली तो रिफंड में चोंचले क्यों ? क्योंकि कॉर्पोरेट लेना जानता है, रिफंड देना नहीं.

इसी तरह हर सरकारी चीज आपको घटिया, कमजोर, घाटे वाली, देश पर बोझ, और तेजी से काम ना करने वाली बताई जा रही है ताकि आपके दिमाग़ में डाला जा सके की सरकार इसे बेच के खास बुरा नहीं कर रही है।

भारत 1947 में आज़ाद हुआ तब खाने को पर्याप्त अनाज भी नहीं था, भारत को Ship to mouth नेशन कहा जाता था क्योंकि नेहरू ने अमेरिका से अनाज का जो समझौता किया था उसके तहत शिप से अनाज सीधा बँटने को सरकारी राशन की दुकान पे जाता था किसी गोदाम तक नहीं जाता था। आज तेल, कोयला, रेल, ISO IIT और जिस सेक्टर में भारत अग्रणी हैँ वो सब सरकारी ही हैँ। किसी बेवकूफ को लगता हो की प्राइवेट को बेचने से देश की मदद होंगी तो पहले पता कर ले की क्या खरीददारों ने आज तक खुद उस जैसा कुछ बनाया है जिसे ख़रीद रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)