तीन बैंकों ने अनिल अंबानी की तीन कंपनियों को फ्रॉड घोषित किया। आरोप है कि उनकी कंपनियों ने बैंकों से 86,188 करोड़ रुपए कर्ज लिया और नहीं लौटाया। ये राशि विजय माल्या की तुलना में 10 गुना ज्यादा है। इसके बावजूद अनिल अंबानी की कंपनियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे कई गंभीर सवाल उठते हैं। करीब-करीब दिवालिया हो चुके अनिल अंबानी को राफेल सौदे में ठेका क्यों दिया गया? उनकी बोगस कंपनी को देश की सुरक्षा के मामले में क्यों शामिल किया गया?
ये कैसा फर्जी राष्ट्रवाद है जो डूबते हुए पूंजीपति को बचाने के लिए देश सुरक्षा और खजाने को ही दांव पर लगा देता है? सरकार जिस साफ नीयत की बार बार दुहाई देती है, क्या वह सच में साफ है? कोर्ट के निर्देश के बाद भी राफेल की जेपीसी जांच क्यों नहीं कराई गई? देश का सब संसाधन क्या इसीलिए बेचा जा रहा है ताकि तीन-चार धनपतियों की जेब भरी जा सके?
क्या है पूरा मामला
अनिल अंबानी ने विजय माल्या के मुकाबले बैंकों से 10 गुना ज्यादा कर्ज लिया। उनपर 86,188 करोड़ रुपए कर्ज है। अनिल अंबानी की तीन कंपनियों पर बैंको से धोखाधड़ी करने का आरोप है। आज कुछ एक डिजिटल मीडिया में ऐसी खबरें छपी हैं। आप सर्च करेंगे तो पाएंगे कि इस मुद्दे पर गजब का सन्नाटा है। खबरों में कहा गया है कि अनिल अंबानी की तीन कंपनियों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक से कर्ज लिया और लौटाया नहीं। ये कंपनियां हैं: रिलायंस कम्यूनिकेशन, रिलायंस इंफ्राटेल और रिलायंस टेलीकाम। बैंक इन कंपनियों पर कार्रवाई की तैयारी कर रहे हैं।
हर्षद मेहता घोटाले का खुलासा करने वाली पत्रकार सुचेता दलाल ने सवाल किया है कि क्या कोई अनुमान लगा सकता है कि भारत का सबसे बड़ा कॉरपोरेट डिफॉल्टर कौन है और उसके खिलाफ सरकार की तरफ से कोई एक्शन भी नहीं लिया गया है? ये वही अनिल अंबानी हैं जिनकी एक दस दिन पुरानी एक बोगस कंपनी को राफेल में आफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था। तमाम सवाल उठने के बावजूद उसकी कोई जांच नहीं हुई। कुछ खबरों के लिंक कमेंटबॉक्स में दे रहा हूं। पढ़िए और अंदाजा लगाइए कि चौकीदारी काफी टाइट चल रही है।
किसानों के साथ ठगी
मध्य प्रदेश में एक व्यापारी ने किसानों से 2 करोड़ का अनाज खरीदा और बिना पैसा दिए गायब हो गया। तकरीबन 150 किसान ठगे गए हैं। आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाके में टमाटर 30 पैसा से लेकर 70 पैसा किलो बिक रहा है। इसे लेकर किसानों ने स्थानीय मंडी अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन किया। किसानों को धनकुबेर बनाने वाला कथित कानून लागू होने के बावजूद यूपी और बिहार में 1868 रुपये का धान 1000-1100 में ही बिक रहा है।
मध्य प्रदेश के ही होशंगाबाद में किसानों ने कंपनियों से अनुबंध करके खेती की। अब कंपनियां फसल खरीदने से इनकार कर रही हैं। किसान कह रहे हैं कि हमें ठगा गया। बीते सीजन मक्का भी माटी के भाव बिका है। इकोनॉमिक्स टाइम्स ने 16 जुलाई को लिखा कि मक्के का भाव एमएसपी से 50% नीचे आ गया है। बाजारों में मक्के के दाम 1000-1,150 रुपये प्रति क्विटंल तक आ गए हैं जबकि केंद्र सरकार की तरफ से मक्के का एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है।
किसानों को अब तक थोड़ा थोड़ा करके लूटा जाता था। अब सरकार थोक में लूटने की व्यवस्था बना रही है। जैसा कि मध्य प्रदेश वाला 2 करोड़ का चूना लगा गया। अगर उसने बड़ा सिस्टम बना लिया होता तो 20 करोड़ का चूना लगाता। किसान मालामाल होने ही वाले हैं। अब हुए कि तब हुए। एक आप ही लोग हैं जो सरकार पर भरोसा नहीं करते। एक अच्छे नागरिक की तरह बर्ताव कीजिए। बर्बाद हो जाइए, लेकिन सवाल मत कीजिए।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)