मदरसा पैराटीचर्स के नाम एक खुला खत, बिना ताकत के आपकी बात कौन सुनेगा?

आदाब अर्ज, आप लोग बरसों से नियमित करने की मांग कर रहे हो, जो पूरी तरह से जायज़ है और अशोक गहलोत सरकार को इस मांग को मानना भी चाहिए, क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में आपको नियमित करने का वादा किया था। आपने काफी छोटे बड़े आन्दोलन किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। जिसकी वजह आपकी सिरफुटव्वल, कमजोर संख्या बल, पर्दे के पीछे से आपका इस्तेमाल और सरकार की इच्छा शक्ति में कमी रही है।

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19 अक्टूबर 2021 को मैंने एक फेसबुक पोस्ट की, “डॉक्टर खानू ख़ान बुधवाली और 9 मुस्लिम विधायकों के पास एमपीटी (मदरसा पैराटीचर्स) को नियमित करने का अधिकार नहीं है, यह अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री के पास है, इसलिए बेहतर है अपना विरोध वहाँ दर्ज करवाएं।” इस पोस्ट को अधिकतर लोगों ने गलत सन्दर्भ में लिया और इसकी आलोचना की। मैं आपकी राय का सम्मान करता हूँ। लेकिन आपको यह जरूर देखना चाहिए कि आपकी गाड़ी जाने-अनजाने में रॉंग साइड में तो नहीं जा रही है। आप कुछ दिनों से जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना दिए हुए हो, जो अच्छी बात है। इस धरने प्रदर्शन और सोशल मीडिया पर आप वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉक्टर खानू ख़ान बुधवाली और 9 मुस्लिम विधायकों को विशेष रूप से “टारगेट” बनाकर खरी खौटी सुना रहे हो। आप में से कुछ लोग या आपके कुछ समर्थक इनको अभद्र शब्दों से भी नवाज रहे हैं। मेरे ख्याल में अपनी बात रखने के लिए कभी भी तहजीब का कुर्ता नहीं उतारना चाहिए।

आप सही कह रहे हैं कि यह 9 विधायक हमारे (मुस्लिम) वोट से बने हैं। लेकिन क्या इन 9 के अलावा आपके वोट से विधायक नहीं बने हैं? गोविन्द सिंह डोटासरा, सचिन पायलट, शान्ति धारीवाल, महेश जोशी, बीडी कल्ला, प्रताप सिंह खाचरियावास, हरीश चौधरी, विजेन्द्र ओला, राजेन्द्र पारीक, कृष्णा पूनियां, रीटा चौधरी, मुकेश भाकर, मनोज मेघवाल, चेतन डूडी जैसे दर्जनों विधायकों को आपने ही जिताया है। ऐसे ही रफीक मण्डेलिया, प्रोफेसर अय्यूब ख़ान, नसीम अख्तर, हरेन्द्र मिर्धा, हबीबुर्रहमान, जाकिर गैसावत, सीताराम अग्रवाल, अर्चना शर्मा आदि को भी आपने एकतरफा वोट दिया था, जिन्हें कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया और वे विधानसभा चुनाव हार गए। क्या मदरसा पैराटीचर्स की पैरवी मुख्यमंत्री के यहाँ करने की इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है?

जिस तरह आप 9 मुस्लिम विधायकों की खामोशी को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, इन अन्य की खामोशी पर आपकी चुप्पी क्यों है? यह सही है कि इन 9 विधायकों को आपकी खुलकर पैरवी करनी चाहिए और जैसी पैरवी करनी चाहिए वैसी पैरवी यह नहीं कर रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि इन 9 में से एक भी ऐसा नहीं है, जो आपको नियमित नहीं करवाना चाहता हो। सभी आपके मुद्दे के साथ हैं और इनसे जो हो पा रहा है या करने की हैसियत रखते हैं, कर रहे हैं। अगर आपको बेबाकी से पैरवी करने वाले विधायक चाहिए थे, तो आप लोग टिकट की पैरवी बेबाक दावेदारों की करते, वोट बेबाक लोगों को देते। लेकिन सबको पता है चुनाव में आप लोगों का क्या रोल था? क्या आप लोग इन विधायकों के आगे पीछे दुम हिलाते नहीं घूम रहे थे? क्या आप लोगों ने अच्छे खासे आन्दोलन को इन विधायकों के चक्कर में आकर फ्लॉप नहीं किया था? क्या आप लोगों में ऐसे लोग नहीं हैं, जिन्होंने इन विधायकों के जरिये सेटिंग से अपने ट्रांसफर पोस्टिंग, समायोजन आदि नहीं करवाए हैं?

क्या गत वर्ष जब उदयपुर तक दाण्डी यात्रा पहुंची थी और उसका जिस तरह से बीच रास्ते समापन या राजनीतिक दुरुपयोग हुआ था, उसी दिन हमने खुलकर विरोध नहीं किया था? हमें मालूम था कि पर्दे के पीछे क्या खिचड़ी पक रही थी और इसका नतीज़ा पैराटीचर्स के हित में सही नहीं होगा। इसलिए हमने चीरवा घाटा सुरंग (उदयपुर) के ऐतिहासिक प्रोग्राम के समापन के साथ ही खुद को इस यात्रा से अलग कर लिया था। तब हमें आपने बहुत बुरा भला कहा था, लेकिन हमने तब कहा था कि “इसकी वक्त गवाही देगा कि कौन सही हैं और कौन गलत हैं ?” वक्त ने छह महीने में ही फैसला कर दिया। आपको अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है, आप आज कह रहे हैं कि आपके साथ धोखा हुआ था, हमने उसी दिन कहा था कि “आपको एक राजनीतिक षड्यंत्र के तहत बेवकूफ़ बनाया गया है और इस धोखे का कुछ दिनों बाद आपको एहसास होगा।”

आपको एक बात और याद दिलाऊं कि जब जनवरी 2021 की सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे हम जयपुर कलेक्टरेट के आगे धरने पर बैठे और फिर पांचवें दिन मुख्यमंत्री निवास का घेराव करने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर “सिविल लाइन्स कूच” किया, तो जयपुर के एक विधायक महोदय के घर कन्ट्रोल रूम बनाया गया और आप में से कुछ लोगों ने पैराटीचर्स को दिशाभ्रमित कर रोकने की कोशिश की। आप में से बहुत से लोग तब विधायकों व पीसीसी अध्यक्ष डोटासरा के इशारे पर सिविल लाइन्स कूच को विफल करने में दिन रात लगे रहे। क्यों? तब यह विधायक आपके चहेते क्यों थे? यही हाल “सुजानगढ़ कूच” आन्दोलन का आप में से बहुत से लोगों ने करने की कोशिश की। लोगों को न सिर्फ सुजानगढ़ जाने से रोका, बल्कि विरोध प्रदर्शन सभा में बैठे हुए लोगों को फोन कर वापस बुलाया गया। क्यों?

आज आपको फिर कह रहे हैं कि इस बार भी आपके साथ धोखा हो रहा है। इस बार आपका जो सलेक्टेड विरोध प्रदर्शन है, उसकी डोर किसी और के हाथ में है। यह और कौन हैं ? वे लोग जो राजनीतिक नियुक्तियों के दावेदार हैं और गहलोत उन्हें कोई भाव नहीं दे रहा है। वे लोग जो अगले चुनाव में टिकट के दावेदार हैं और वर्तमान विधायकों की इमेज को पूरी तरह से डेमेज करना चाह रहे हैं। वे लोग जो वक्फ बोर्ड के मुद्दों पर डॉक्टर खानू ख़ान बुधवाली के खिलाफ़ हैं और उन्हें चेयरमैन बनने से रोकना चाहते हैं। इस आन्दोलन के पर्दे के पीछे बहुत से खुदगर्ज़ लोगों की खुदगर्ज़ी छुपी हुई है, जो वक्त आने पर आपको साफ नज़र आने लग जाएगी।

आप में से कुछ लोग कह रहे हैं कि हमारी मांग के समर्थन में मुस्लिम विधायकों को इस्तीफा दे देना चाहिए। क्या आप खुद विधायक होते तो ऐसा करते ? अपने दिल पर हाथ रखकर खुद से इस सवाल का जवाब पूछना। आप में से कितने पैराटीचर्स ने आज तक अपनी मांग के समर्थन में इस बन्धुआ मजदूरी वाली नौकरी से इस्तीफा दिया है? शायद एक ने भी नहीं। फिर विधायकों से इस्तीफे की उम्मीद क्यों रखते हो? आपको पता है विधायक बहुत मुश्किल से बना जाता है और अपनी सरकार के मुख्यमंत्री से कोई विधायक पंगा नहीं लेना चाहता, क्योंकि इससे उसका राजनीतिक कैरियर चौपट हो जाता है। विधायकी छोड़ने और क़ौम के मुद्दों पर साथ देने की बात है, तो विधायक का पद तो बहुत बड़ा पद होता है, जिन पैराटीचर्स के घर में कांग्रेस का कोई पदाधिकारी है या सरपंच-पार्षद स्तर का कोई जन प्रतिनिधि है तो क्या वो आपके हक में इस्तीफा देगा? नहीं देगा। फिर विधायकों से इस्तीफे की बात करने का क्या औचित्य है?

एक और बात, जिससे आप सहमत होंगे कि आपके किसी भी आन्दोलन में कभी भी हजार से ज्यादा पैराटीचर्स जमा नहीं हुए, जबकि संख्या छह हज़ार के करीब है। अमूमन पैराटीचर्स के आन्दोलन में पांच सौ की संख्या भी नहीं रहती है, क्यों? बिना ताकत के आपकी बात कौन सुनेगा? क्या मुख्यमंत्री को यह मालूम नहीं कि नियमित करने का आन्दोलन चन्द सौ लोग चला रहे हैं बाकी इस बन्धुआ मजदूरी (मामूली मानदेय) से संतुष्ट हैं? क्या आपको यह नहीं मालूम कि काफी पैराटीचर्स नाम के कागजी मदरसों में पढा रहे हैं? क्या एक बड़ी संख्या ऐसे पैराटीचर्स की नहीं है, जो मदरसा बोर्ड व अल्पसंख्यक मामलात विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों से सांठगांठ कर बिना मदरसे गए ही अपना मानदेय उठा रहे हैं और इसका ईमानदारी से बंटवारा होता है तथा इस खेल में मदरसा कमेटियां भी शामिल हैं? क्या चार पांच जिलों में आधे से अधिक पैराटीचर्स कार्यरत नहीं हैं, जबकि यहाँ के काफी मदरसों में बच्चे नाम के हैं? क्या इस हेराफेरी की मुख्यमंत्री को कोई खबर नहीं है?

खैर, कोई बात नहीं। आपकी मांग वाजिब है और इसको पूरा करने की हैसियत सिर्फ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ में है, बाकी किसी भी विधायक या नेता के हाथ में कुछ नहीं है। लोकतंत्र में संख्या बल की पूजा होती है और जिसके पास संख्या बल है उसी के आगे सत्ता झुकती है। आप छह हज़ार हैं और आपके परिजन व रिश्तेदार हजारों में हैं। आप पूरे राजस्थान में हैं और सभी विधायकों को आपने वोट दिए हैं। इसलिए उम्मीद सभी से रखनी चाहिए, बात सभी से करनी चाहिए, किसी व्यक्ति विशेष या विधायक विशेष को टारगेट बनाने की बजाए सभी 200 विधायकों के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करें। अपने विधायक या विधायक प्रत्याशी के बंगले के बाहर बैठकर उसको जगाएं और मुख्यमंत्री के पास चलने की जिद करें। क्योंकि नियमित करना सिर्फ मुख्यमंत्री के हाथ में है। बेबाकी से विरोध मुख्यमंत्री का करें ना कि किसी व्यक्ति विशेष का। बाकी आपकी मर्जी जैसा समझें वैसा करें। हमारा काम आपको आगाह करना था कर दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और इक़रा पत्रिका के संपादक हैं)