मोहब्बत की मिसाल: लखनऊ के मुसलमानों का बांग्लादेश के हिंदुओं पर जुल्म पर तड़पना

सैयद रिज़वान मुस्तफा

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लखनऊ, जिसे “गंगा-जमनी तहज़ीब” का गढ़ कहा जाता है, एक ऐसी भूमि है जहां हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की गहरी जड़ें हैं। यहाँ का हर मोड़, हर गली एकता, प्रेम और सामूहिकता की कहानियाँ सुनाती हैं। लेकिन इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर का एक और पहलू है, जो दुनिया भर में अपनी मिसाल पेश करता है। यह पहलू है लखनऊ के मुसलमानों का बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म पर तड़पना। यह सिर्फ एक सांस्कृतिक या धार्मिक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक गहरी मोहब्बत और इंसानियत का प्रतीक है, जो हर किसी के दिल में बसी हुई है।

 

लखनऊ के मुसलमानों का धर्म केवल मज़हबी रस्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानियत और मानवता की सेवा में भी रचा-बसा है। यहाँ के मुसलमानों ने अपने धार्मिक विश्वासों को एक साथ जोड़ने का काम किया है, चाहे वह इमामबाड़ा हो, काज़मैन हो या फिर अन्य सांस्कृतिक स्थल। यह सब धार्मिक और सांस्कृतिक सहयोग की मिसालें हैं, जहाँ हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों ने मिलकर सांप्रदायिक सौहार्द और प्रेम का संदेश दिया।

 

जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की खबरें सुनाई देती हैं, तो लखनऊ के मुसलमानों का दिल दर्द से भर जाता है। यह तड़प केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह एक गहरी संवेदनशीलता और मानवता के लिए खड़े होने की भावना से उत्पन्न होती है। लखनऊ के मुसलमानों ने हमेशा अपने समाज के साथ मिलकर धर्म, जाति और सांप्रदायिक भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया है। और जब बांग्लादेश में हिंदू भाईयों पर जुल्म होते हैं, तो लखनऊ के मुसलमानों का यह तड़प इस बात का प्रतीक है कि वे केवल मज़हबी मामलों में ही नहीं, बल्कि मानवता के हर पहलू में भागीदार हैं।

 

यह जज्बा मोहब्बत का है क्योंकि यह न केवल लखनऊ की सामाजिक धारा से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह उस क़ीमती धरोहर का हिस्सा है जिसे लखनऊ के लोग अपने दिलों में संजोए हुए हैं। इमामबाड़े और काज़मैन जैसे धार्मिक स्थल उस समय की साझा संस्कृति की यादें ताजगी से संजोए हुए हैं, जब हिंदू और मुसलमान दोनों मिलकर एक दूसरे के साथ खड़े थे। लखनऊ के मुसलमानों की यह तड़प दिखाती है कि मोहब्बत सिर्फ दिखावे की चीज नहीं, बल्कि एक ऐसी भावना है, जो दिलों को जोड़ती है, भेदभाव को मिटाती है और इंसानियत के बुनियादी सिद्धांतों को सम्मान देती है।

 

मुसलमानों का यह जज्बा मोहब्बत क्यों है? यह सवाल हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि असल मोहब्बत किसी भी धर्म या जाति से ऊपर होती है। जब हम किसी के दुख में सहभागी बनते हैं, तो हम समाज में बदलाव लाते हैं। लखनऊ के मुसलमानों का यह संवेदनशील रुख बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति यही संदेश देता है कि हमारी साझा मानवता और भाईचारा ही सबसे महत्वपूर्ण है। यह जज्बा हमारे दिलों में सदैव एकता, सहिष्णुता और प्यार की भावना को बनाए रखता है, चाहे हम किसी भी धर्म या संस्कृति से संबंधित हों।

 

आज भी, जब बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे जुल्म की खबरें आती हैं, तो लखनऊ के मुसलमानों का यह तड़प उनके द्वारा निभाई गई इंसानियत की भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना देता है। यह दर्शाता है कि धार्मिक या सांस्कृतिक भेदभाव से परे, हम सभी एक ही मानवता के सदस्य हैं, और हमें किसी भी प्रकार की हिंसा या अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।

 

इस जज्बे को शब्दों में पिरोने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह दिलों में बसी हुई एक ऐसी भावना है, जो किसी भी सीमा, धर्म या जाति से ऊपर है। यह मोहब्बत की वह ताकत है, जो न केवल हमें एक दूसरे के करीब लाती है, बल्कि हमें यह सिखाती है कि मानवता और इंसानियत ही असली धर्म है। लखनऊ के मुसलमानों का यह तड़प, बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति संवेदना, एक प्रतीक है उस मोहब्बत का जो हम सबके दिलों में पल रही है और जिसे हमें हर हाल में संजोकर रखना है।

 

क्यों है यह मोहब्बत? यह मोहब्बत है उस सच्ची मानवता से, जो किसी भी धर्म, जाति या राष्ट्र से ऊपर उठकर हमें एक दूसरे से जोड़ती है। यह मोहब्बत है उस सिखावे से, जो हमें यह समझाता है कि सिर्फ धर्म के नाम पर हम एक दूसरे से जुड़ने के बजाय, हमें इंसानियत और समानता के बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर एकजुट होना चाहिए।