कश्मीर के गले में जो शिकंजा आज है, उसे कसने में गिलानी का बहुत रोल है।

दीपक असीम

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कश्मीर की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण थे गिलानी
यह सोचना मूर्खता है कि पाकिस्तान की मदद से कश्मीर को आजाद कराया जा सकता है या पाकिस्तान भारत से जंग लड़ कर कश्मीर का विलय पाकिस्तान में कर सकता है। जब 1947 में पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सका, तो अब क्या कर पाएगा, जबकि भारत की फौज अब बहुत ही ज्यादा ताकतवर और सक्षम है। मगर सय्यद अली शाह गिलानी इस मूर्खता पर यकीन करते थे और अपने भाषणों के जरिये वे कश्मीर के युवाओं को ऐसी ही मूर्खता पर यकीन करने के लिए प्रेरित भी करते थे। कश्मीर की हर समस्या का हल उन्हें पाकिस्तान में नज़र आता था। लंबी बीमारी के बाद उनकी मौत हुई है और उनकी मौत से घाटी ने भी चैन की एक लंबी सांस ज़रूर ली होगी।

लाखों युवाओं का भविष्य गिलानी ने बर्बाद किया। कश्मीर को तबाह करने में गिलानी की सोच का रोल सबसे बड़ा है। सन दो हजार चार में उनकी किताब रूदादे कफस का विमोचन श्रीनगर में हुआ था। इत्तेफाक से उस समय ये नाचीज़ श्रीनगर में मौजूद था। अपने भाषण में उन्होंने भारत की धर्मनिरपेक्षता की बुराई की थी। धर्मनिरपेक्षता का उनका अपना अनुवाद था ला दीनियात…। खुले आम उन्होंने पाकिस्तान की तारीफ की थी। अन्य भी बहुत सी बातें उन्होंने अपने भाषण में कहीं थीं, जिन्हें हज्म करना तो क्या एक भारतीय के लिए सुनना भी मुश्किल था।

विमोचन के बाद स्थानीय पत्रकारों ने तो उनसे परेशान करने वाले सवाल नहीं पूछे, मगर दो हजार किलोमीटर दूर से कश्मीर को देखने समझने गया कोई शख्स कैसे चूक सकता था। उस दिन वे पाकिस्तान में विलय की बजाय कश्मीर को आजाद कराने पर जोर दे रहे थे। पूछा कि कश्मीर को आप आजाद करने की बात करते हैं, आपके पास क्या कोई रोड मैप है। कब तक आपकी लड़ाई चलेगी, आपका सपनो का कश्मीर कैसा होगा। उन्हें अपेक्षा नहीं थी कि कश्मीर के बाहर का कोई आदमी उस जगह मौजूद होगा और इतनी मासूमियत से उनसे सवाल करेगा। जाहिर है वे गड़बड़ाए, झल्लाए, परेशान हुए और फिर इस नाचीज़ के मज़ाक का निशाना बने।

उन्होंने जवाब दिया कि हमारी लड़ाई लंबी चलेगी, मगर पाकिस्तान हमारा साथ दे रहा है, हम उसका शुक्रिया अदा करते हैं। उनके सपनों का कश्मीर अभी के अफगानिस्तान जैसा था। धार्मिक कट्टरता के मामले में पाकिस्तान से आगे। अन्य सवाल किये तो उन्होंने परेशान होकर कहा कि कश्मीर वेलफेयर स्टेट होगा। अंत में मैंने उन पर व्यंग्य करते हुए पूछा था कि आपके सपनों के कश्मीर में मुद्रा क्या होगी, रुपया, टका, डॉलर, दीनार, दिरहम या रूबल…। इस सवाल पर स्थानीय पत्रकार हंस पड़े थे। बाद में एक पत्रकार ने मुझसे खुलकर कहा कि इन्होंने ही कश्मीर को बर्बादी की राह पर डाला है। इनके पास कोई रोडमैप नहीं है। इन्हें बाहर से पैसा मिलता है। इनके रिश्तेदार और इनके बाल बच्चे बाहर विदेशों में पढ़ते हैं। सांठ गांठ के कारण उनका पासपोर्ट भी बन जाता है और वीसा भी मिल जाता है। मगर कश्मीर के युवाओं को ये बर्बाद करते हैं। गिलानी के बारे में यही विचार अन्य कुछ लोगों से भी सुनने को मिले थे।

गिलानी को राजनीतिक व्यक्ति नहीं कहा जा सकता। राजनीति में जब आदमी कोई मांग रखता है तो बहुत सी बातों का खयाल रखता है। वो देखता है कि उसकी अपनी हैसियत क्या है, साथ ही जो मांग रखी जा रही है, उसमें से कितनी पूरी हो सकती है। गिलानी और उनके समर्थकों की कभी ये हैसियत नहीं रही कि भारत सरकार से कोई बेजा मांग पूरी करा लें। मगर उन्होंने असंभव मांगे रखीं। वे यह भूल गए कि दिल्ली से कुछ मांगा तो जा सकता है, छीना नहीं जा सकता। छीनने की कोशिश की तो हाथ तोड़े जा सकते हैं। गिलानी भूल गए कि कश्मीर से भारत का एक अलग ही भावनात्मक रिश्ता है। 15 अगस्त को 1947 को भारत आजाद हुआ और अक्टूबर नवंबर में वो कश्मीर में पाकिस्तानी कबायलियों से लड़ रहा था, उन्हें खदेड़ रहा था। भारत ने अपना खून बहाकर कश्मीर को कबायलियों के पंजे से बचाया है।

कश्मीर को संविधान की तरफ से जो रियायतें दी गईं थीं, वो इतनी ज्यादा और इतनी पर्याप्त थीं कि कश्मीर को ना पाकिस्तान में विलय होने की ज़रूरत थी और ना ही आजादी मांगने की। उसे अपनी स्वायत्तता बरकरार रखनी थी और भारत के साथ वफादारी दिखानी थी। उसे और स्वायत्तता मिल जाती और मिलती रहती। मगर तब गिलानी की राजनीति नहीं चमक सकती थी। कश्मीर में कट्टरवाद बढ़ता रहा और स्वायत्तता में कटौती होती रही। यह ऐसे ही है जैसे कोई खुद को मिली सीमित छूट का गलत इस्तेमाल करता चला जाए और उस पर शिंकजे कसते चले जाएं।

कश्मीर के गले में जो शिकंजा आज है, उसे कसने में गिलानी और उनके जैसों का बहुत रोल है। धर्म की अफीम, पाकिस्तान की फंडिंग, लड़ाई का जुनून…। काश कि इतनी मेहनत इन्होंने कश्मीर की बेहतरी में की होती। जो लोग स्विटज़रलैंड होकर आए हैं, वो कहते हैं कि कश्मीर ज्यादा सुंदर है। कश्मीर के लोग दुनिया के सबसे सुखी और अमीर लोग हो सकते थे। वे अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने के लिए आजाद थे। मगर पाकिस्तान परस्ती और आजादी की बेजा मांग ने उन्हें बर्बाद कर दिया। गिलानी इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। अब वे मर गए हैं, मगर उन्होंने जीते जी जो किया है, उससे कश्मीर पता नहीं कब तक सिसक सिसक कर मरता रहेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पमीकार हैं)