नेहरू, और प्रोमीथियस: वह इतना बुरा था कि जब दुनिया बमों के ढेर पर बैठी थी, तब भी शांति की बात करता था…

पीयूष बेबले

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

जब जब नेहरू का जिक्र आता है तो मुझे यूनान के एक पुराने देवता प्रोमीथियस, जिसे हिंदी में प्रमथ्यु भी कहते हैं, की कथा याद आती है. प्रोमीथियस स्वर्ग से धरती को देखता था. नीचे देखता तो इंसान बड़ी बदहाली में दिखाई देता. कभी उसके बच्चों को जंगली जानवर खा जाते, तो कभी वे जाड़े से मर जाते. देवताओं की तरह दो पांवों पर चलने वाला यह प्राणि सारे चौपायों से गया गुजरा नजर आता.

तब प्रोमीथियस को एक युक्ति सूझी. उसने देखा कि स्वर्ग में आग है. इस आग ने देवताओं को बहुत से सुख, शक्ति और सुरक्षा दी है. अगर यह आग किसी तरह धरती पर इंसान के पास पहुंचा दी जाए, तो इंसान अपनी बहुत सी पीड़ाओं से मुक्त हो जाएगा.

आग पर स्वर्ग और देवताओं का कॉपीराइट था. प्रोमीथियस क्या करता. उसने स्वर्ग से आग चुरा ली. चुपके से आग धरती पर इंसानों को दे आया. आग मिलते ही इंसान की रातें रोशन हो गईं, उसका भोजन पकने लगा, जंगली जानवर उससे डरने लगे. धरती पर सुख की ऊष्मा पसरने लगी. सुख आया तो देवताओं की चाकरी बंद होने लगी. मनुष्य अब उन्हें कम अर्घ्य चढ़ाने लगा.

देवताओं ने जांच की तो पता चला कि कांड हो चुका है. देवताओं की बपौती आग, धरती पर पहुंच चुकी है. आदमी आत्मनिर्भर हो रहा है. यह पता लगते भी देर न लगी कि आग प्रमथ्यु ने धरती तक पहुंचाई है. प्रमथ्यु को बंदी बनाकर देवताओं के राजा के सामने पेश किया गया. हर कोई उसे कड़ी सजा देता चाहता था. ज्यादातर तो मृत्युदंड ही चाहते थे. लेकिन मृत्युदंड संभव नहीं था, देवता अमर होते हैं, वे भला कैसे मरें.

तब यूनान के इंद्र ने एक ज्यादा ख़तरनाक सज़ा सोची. प्रमथ्यु को स्वर्ग से निकालकर जमीन पर लाया गया. वहां इंसान की बस्ती के पास कम ऊंची पहाड़ी पर उसे सलीब पर टांग दिया गया. ठीक वैसे ही जिस तरह ईसा मसीह की सलीब पर टंगी तस्वीर हम देखते हैं. उसके शरीर में ठुकी कीलों से रक्त की धारा बह निकली. प्रोमीथियस असहनीय वेदना में टंगा हुआ था. फिर उसके कंधे पर एक गिद्ध बैठाया गया. यह गिद्ध दिनभर जीवित प्रमथ्यु का मांस नोचकर खाता. रात में जब गिद्ध सोता तो प्रमथ्यु का मांस फिर से भर जाता क्योंकि वह अमर देवता था. सुबह से गिद्ध फिर वही क्रम शुरू कर देता.

प्रमथ्यु की चीखें इंसानों की बस्ती तक पहुंचती रहतीं. सुबह की पहली किरण के साथ बस्ती वाले उस पहाड़ के नीचे पहुंच जाते. वे दिनभर प्रमथ्यु की चीखों को तमाशे की तरह देखते और शाम को फिर अपने घर आ जाते.

जिन मनुष्यों के लिए सलीब पर टंगा प्रमथ्यु अपना मांस नुचवा रहा था और असहनीय पीड़ा झेल रहा था, वे उसकी लाई आग से आगे बढ़ रहे थे और उसकी बेबसी का उत्सव मना रहे थे.

कथा यहीं समाप्त होती है. लेकिन कथा में बताई बात कभी खत्म नहीं होती. वह हर महापुरुष पर लागू होती है, जिसे गोली से नहीं मारा जा सका. लिंकन और गांधी सौभाग्यशाली थे कि उन्हें गोली से मार दिया गया. नेहरू अभागे थे, जो देश की मरते दम तक सेवा करते रहे. जब तक वे सेवा कर रहे थे, जब तक वे स्वर्ग की आग भारत तक ला रहे थे, वे बहुत लाड़ले थे. उनके जाने के बाद हमने उनके पूरे किरदार को सलीब पर टांग दिया और गिद्ध की तरह उसे नोच रहे हैं.

पहाड़ी के नीचे खड़े होकर उनकी पीड़ा का तमाशा देखने का सिलसिला अब इतना लंबा हो गया है कि तमाशाइयों की नई पीढ़ी यह भूल ही गई है कि इस शख्स को किस बात की सजा दी जा रही है. आज उन्हें फिर याद दिलाता हूं कि नेहरू का जुर्म यही था कि जब अंग्रेजी राज में वह सारे सुख भोग सकता था, तब वह बागी हो गया. जब नौजवान ही था तब उसने जलिंया वाला बाग हत्याकांड की रिपोर्ट विस्तार से तैयार की. वह उन चंद लोगों में था जो लोकमान्य तिलक की अंतिम यात्रा में गांधी के साथ चल रहा था. वह उन लोगों में था जिसके प्रभाव में आकर उसके पिता ने अपना घर-मकान सब कांग्रेस को दे दिया था. वह उन लोगों में था जो पहली बार अपने पिता के साथ जेल गया था. वह उन लोगों में था जो सरदार भगत सिंह से मिलने जेल गया था. और भगत सिंह की रिहाई के लिए अंग्रेजों से लड़ रहा था. कांग्रेस के अंदर वह सुभाष चंद्र बोस का सच्चा दोस्त था. अपनी पत्नी कमला की मौत के बाद उनकी चिता की एक चुटकी राख वह जीवन भर अपने साथ रखता रहा. महात्मा गांधी के अंतिम उपवास में चुपचाप खुद भी उपवास करने वाला वह विरला प्रधानमंत्री था. जब वह संसद में ट्रिस्ट विद डेस्टिनी का भाषण दे रहा था, तब उसके दिमाग में लाहौर के वे हिंदू मुहल्ले चल रहे थे, जहां का पानी काट दिया गया था.

वह इतना बुरा था कि जब दुनिया बमों के ढेर पर बैठी थी, तब भी शांति की बात करता था. उसकी शांति का ऐसा जलवा था कि कोरिया के गृहयुद्ध को अंतत: उसी ने एक समझौते पर पहुंचाया था. वह पूरी दुनिया में सम्मानित था और रहेगा. लेकिन उसके घर में उचक्कों का गिरोह, उसकी वेदना से तब भी मनोरंजन करता था और आगे भी करता रहेगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)