गिरीश मालवीय
अमेरिकी कारपोरेट आने वाले दिनो मे भारत के किसानों को हर तरह से अपने कब्जे में रखने की प्लानिंग कर चुका है इसके तहत मोदी सरकार से एक स्कीम बनाई गई है जिसे स्वामित्व योजना कहा जा रहा है इसके तहत ड्रोन की मदद से गावों का डिजिटल मैप तैयार किया जाएगा और उन गांवों में डिजिटल मैप तैयार हो जाने के बाद रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी के मालिकों को राज्य सरकारों की तरफ से एक संपत्ति कार्ड दिया जाएगा और उस संपत्ति कार्ड के आधार पर लोग बैंक से उस संपत्ति पर कर्ज ले पाएँगे लेकिन इससे यह प्रॉपर्टी संपत्ति टैक्स के दायरे में भी आएगी। जिसे हर साल भरना होगा.
अभी तक खेती की ज़मीन का रिकॉर्ड खसरा—खतौनी में होता है. लेकिन गांवों की आवासीय संपत्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है। ऐसे में ‘स्वामित्व स्कीम’ के जरिए हर आवासीय संपत्ति की पैमाइश कर मालिकाना हक सुनिश्चित किया जाएगा।अब इस स्कीम ड्रोन से सर्वेक्षण कर गांव की सीमा में आने वाली प्रत्येक संपत्ति का डिजिटल नक्शा बनाया जाएगा। इससे प्रत्येक राजस्व खंड की सीमाएं भी तय की जाएंगी.
साफ है कि अमेरिकी कॉरपोरेट की नीतियों के तहत अब कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है अब किसान भूमि का मालिक नही रह जाएगा अब वह अपने ही खेत मे एक गुलाम की भाँति कार्य करेगा. कॉरपोरेट दबाव के फलस्वरूप ऐसी ही नीतियां अफ्रीका में लागू की गई है. अब भारत का नम्बर है, लेकिन अब सरकार कृषि क्षेत्र के लिए मूल्य वर्धन के लिए किसानो की आवासीय संपत्ति को दांव पर लगा उसे गिरवी रखवाने की योजना बना रही है. अब कांट्रेक्ट फार्मिंग में कम्पनियाँ खुद खेती कर सकेंगी। आमतौर पर अनुबंध खेती का मतलब है कि बुआई के समय ही बिक्री का सौदा हो जाता है ताकि किसान को भाव की चिंता न रहे। लेकिन मोदी सरकार द्वारा पारित वर्तमान कानून में अनुबन्ध की परिभाषा को बिक्री तक सीमित न करके, उसमें सभी किस्म के कृषि कार्यों को शामिल किया गया है।
सबसे खास बात यह है कि अध्यादेश के अनुसार कम्पनी किसान को, किसान द्वारा की गयी सेवाओं के लिए भुगतान करेगी यानी किसान अपनी उपज की बिक्री न करके अपनी ज़मीन (या अपने श्रम) का भुगतान पायेगा। एक से एक खतरनाक कानून पिछले दिनों पास किये गए हैं. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस लाया गया है जिसमे वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है. लेकिन इसका असल मकसद मंडी का खात्मा है इस कानून की सबसे बड़ी खामी यह बताई जा रही है कि इसमें व्यापारी या कंपनी और किसान के बीच विवाद होने पर पहले एसडीएम और बाद में जिलाधिकारी मामले को सुलझाएंगे. इसमें कोर्ट जाने की व्यवस्था नहीं है.
इन सब क़ानूनो और स्वामित्व योजना जैसे तथाकथित सुधारो को लागू करने के लिए बहुत होशियारी के साथ कोरोना काल का चुनाव किया गया है ताकि देश मे किसी भी किस्म का प्रतिरोध खड़ा न होने पाए सही ढंग से चर्चा तक न होने पाए इसके तहत संसद से प्रश्नकाल को भी हटा दिया गया है ताकि कोई इन अध्यादेशों पर सवाल न खड़ा कर पाए कोई चर्चा न हो!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)