नई दिल्लीः केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इन क़ानूनों पर रोक लगाने के संकेत दिये हैं। इस पर कांग्रेस पार्टी की नेता अलका लांबा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसान कानूनों पर रोक के लिए नहीं कानूनो को वापस लेने की माँग लेकर घर से निकले हैं।
दिल्ली के चांदनी चौक से विधायक रहीं अलका लांबा ने कहा कि किसान इस बात को बखूबी समझाता है कि कानूनों पर रोक का मतलब क़ानून खत्म होना नही है, बस कुछ समय के लिए लागू नहीं किए जा सकेंगे, मात्र आंदोलन को ख़त्म करने की यह एक साज़िश हो सकती है,किसान कानूनों पर रोक के लिए नहीं कानूनो को वापस लेने की माँग लेकर घर से निकले हैं। उनकी इस बात से पूर्व केन्द्रीय मंत्री शकील अहमद ने भी सहमती ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान संगठनों की प्रतिक्रिया क्या होती है। क्या वे तीनों काले क़ानूनों को न्यायालय द्वारा रद्द करने या सरकार द्वारा वापस लेने से कम पर कोई बात स्वीकार करेंगे? देखिये क्या होता है।
अलका ने एक और ट्वीट में कहा कि काश कि देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री को जितनी चिंता बंगला में राजनैतिक हिंसा में मारे जा रहे अपने नफ़रती चिंटूओं की चिंता हो रही है उतनी चिंता दिल्ली की सरहद पर दम तोड़ रहे किसानों के लिए भी होती-थोड़ी तो सम्वेदनशीलता दिखाई होती। तानाशाह शासक को झुकना ही होगा-बस समय की बात है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों के बाद बिल वापसी और माफी मांगते हुए भाजपा सरकार का किसान विरोधी रवैया नरम पड़ना चाहिए। आज भाजपा सरकार को ये मानना चाहिए कि वो काले कानूनों के जरिए किसानों के विनाश की पटकथा लिख रही थी और किसानों का आंदोलन सही है।