यूसुफ किरमानी
आज सिर्फ़ अलविदा जुमा नहीं है। आज अलकुद्स डे भी है। अल कुद्स का मतलब मज़लूम लोग यानी जिन पर जुल्म होता हो। अल कुद्स की पहचान फ़लस्तीन के मुसलमानों पर हो रहे जुल्म से है। अल कुद्स के बारे में जानना चाहिए। इसका इतिहास रोचक है।
अलकुद्स डे ईरान के आयतुल्लाह खुमैनी ने घोषित किया और सबसे पहले पूरी दुनिया में इसे मनाने के लिए कहा। आयतुल्लाह खुमैनी की पहचान कई रूपों में है। यहाँ हम उनकी बात सिर्फ़ अल कुद्स डे के संदर्भ में कर रहे हैं।
अलकुद्स की फ़िलासफ़ी क्या है?
सुन्नी मुसलमानों के चौथे ख़लीफ़ा और शिया मुसलमानों के पहले इमाम, सूफ़ी मुसलमानों के वली हज़रत अली ने कहा था कि जहां कहीं भी मज़लूमों पर जुल्म होता हो, हमेशा उनके साथ खड़ा होना है। हज़रत अली ने किसी मज़हब या जाति का नाम नहीं लिया था। मज़लूम कहीं भी हो सकते हैं। बस, उनका साथ देना है।
आयतुल्लाह खुमैनी ने हज़रत अली के उस संदेश को फलस्तीनी मुसलमानों पर हो रहे संदर्भ में लागू करने का फ़ैसला किया और उसे अल कुद्स नाम दिया। संयोग से वो रमज़ान का महीना था जब उन्होंने अलविदा जुमा को अल कुद्स दिवस मनाने की घोषणा की।
फलस्तीनी मुसलमानों पर हो रहे इस्राइलियों के जुल्म के ख़िलाफ़ आज पूरी दुनिया में अल कुद्स दिवस मनाया गया। कई स्थानों पर प्रदर्शन हुए। ईरान आज भी फलस्तीनी लोगों के साथ है। ईरान की जो पॉलिसी आयतुल्लाह खुमैनी ने बनाई थी वो आज भी जस की तस लागू है। ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामनेई और आयतुल्लाह सीस्तानी ने फलस्तीनी लोगों पर हो रहे जुल्म के विरोध की वचनबद्धता और प्रतिबद्धता फिर दोहराई है। यानी जब तक इस्राइल के क़ब्ज़े से फलस्तीनी हिस्से को छुड़ा नहीं लिया जाता, तब तक ग़ैर मुस्लिमों और मुसलमानों को चैन से नहीं बैठना चाहिए।
हमें यूक्रेन पर रूस के क़ब्ज़े की चिन्ता है लेकिन फलस्तीन पर इस्राइल के क़ब्ज़े की चिन्ता कभी नहीं की। मान लिया गया कि ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप ने मिलकर हिटलर से लुटे पिटे लोगों को फलस्तीन में बसाकर महान कार्य कर लिया गया है। फलस्तीन कमज़ोर और गरीब देश उस समय भी था और आज भी है।
नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, राजीव गांधी तक भारत हमेशा फलस्तीन के साथ खड़ा रहा है। और अब? अल कुद्स डे से भारत क्या सीख सकता है? जहां भी मज़लूमों पर जु़ल्म हो, वहाँ उनके साथ खड़ा होना चाहिए। भारत के मुसलमान अगर अल कुद्स डे पर यह सीख सकें कि मजलूमों के साथ खड़ा होना है तो फिर दुनिया की कोई ताक़त अपनी ताक़त से उन्हें डरा नहीं पाएगी।
आज मैंने अल कुद्स डे पर सुन्नी और शिया दोनों के मौलानाओं से मुलाक़ात की। वो अल कुद्स दिवस से वाक़िफ़ थे। यह सूत्र वाक्य बिल्कुल सही है कि ज़िन्दा क़ौमें सौ साल इंतज़ार नहीं करतीं। वक्त आ रहा है। सभी को मजलूमों के लिए और उनके साथ खड़े होना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)