आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गत दिनों हरिद्वार के कनखल में एक समारोह को सम्बोधित करते हुए एक बार फिर अखण्ड भारत बनाने की बात कही है, जो बहुत ही सराहनीय है, क्योंकि अखण्ड भारत इतना विशाल होगा कि उसमें आठ-दस देशों को मिलाना होगा। आरएसएस बरसों से ऐसे ही अखण्ड भारत की कल्पना कर रहा है। अखण्ड भारत की वकालत देश के कई लोग करते हैं, जिनमें बड़े बड़े बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। जरा कल्पना कीजिए कि वो भारत कितना मजबूत व विकसित होगा जिसमें अफगानिस्तान से लेकर थाइलैंड तक का विशाल भूभाग होगा। जिसमें सवा दो सौ करोड़ के करीब आबादी होगी। जिसमें मौजूदा भारत से अधिक विभिन्न प्रकार की विविधताएं होंगी। उस भारत की तरफ दुनिया का कोई देश आंख उठाकर नहीं देख पाएगा।
अखण्ड भारत में हम दुनिया के किसी देश के मोहताज नहीं रहेंगे। हम जो चाहेंगे वो होगा। अमेरिका, रूस व चीन जैसे देश हमारी विशालता व विकास के आगे बौने साबित होंगे। मतलब साफ है कि दुनिया में हम से बड़ा कोई सुपर पावर नहीं होगा। अब सवाल यह है कि वो अखण्ड भारत बनाया कैसे जाए ? जिसके दो तरीके हैं, एक तो शान्ति से सब पड़ौसी देशों को समझा कर अखण्ड भारत के फायदे बताए जाएं और फिर उन्हें भारत में शामिल कर लिया जाए। दूसरा तरीका यह है कि कोई नहीं माने तो युद्ध कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जाए। इन दो के अलावा कोई तरीका हो तो बताने वाला फिर विश्व स्तर का नम्बर एक बुद्धिजीवी है।
भागवत ने उक्त मुद्दे पर कहा कि “हम मिलकर प्रयास करें और गति बढ़ाएं तो अगले 10-15 साल में अखण्ड भारत बन जाएगा और जो इसके रास्ते में आएंगे वे मिट जाएंगे।” इस जुमले में सकारात्मक कोशिश के साथ धमकी भी झलक रही है। इससे यह बात साफ झलक रही है कि अगर अखण्ड भारत की हमारी बात किसी भी पड़ौसी देश या व्यक्ति ने नहीं मानी तो हम उस पर “बुलडोज़र” चलाकर यानी शक्ति के बल पर उसे मिटा देंगे। अब सवाल यह है कि अखण्ड भारत को बनाने में 15 साल क्यों लगें ? यह तो शीघ्र बनना चाहिए, क्योंकि इसके तो लाभ ही लाभ हैं। हमारे वर्तमान देश को भी और पड़ौसी देशों को भी। विशाल अर्थ व्यवस्था और विशाल संसाधन से किसको हानि हो सकती है ? किसी को भी नहीं।
इसलिए अखण्ड भारत जितना जल्दी हो बनाया जाए। इसके लिए बेहतर यह रहेगा कि इसकी जिम्मेदारी भी भागवत को ही सौंप दी जाए, यानी भागवत को इसके लिए भारत का एम्बेसेडर बना दिया जाना चाहिए। फिर वे सभी पड़ौसी देशों के राष्ट्र प्रमुखों से मिलें, उन देशों में बड़ी बड़ी आम सभाएं करें, वहाँ की जनता को अखण्ड भारत के लाभ बताएं। इस अभियान से सफलता मिल जाए, तो सोने पर सुहागा है। अगर सफलता नहीं मिलती है, तो भारत सरकार को कह कर एक राजाज्ञा निकाल दें कि एक सप्ताह में सभी देश अखण्ड भारत में शामिल हो जाएं, बात मान ली जाए तो अच्छा है, नहीं जिस तरह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है वैसे ही एक एक पड़ौसी देश पर कब्ज़ा कर लें। इस सफलता से पहले दो बातों की आरएसएस प्रमुख को घोषणा भी कर देनी चाहिए कि अखण्ड भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या होगी ? अखण्ड भारत की मुद्रा क्या होगी ? इसके अलावा क्या तिब्बत को अखण्ड भारत में शामिल करने के लिए चीन से भी कोई युद्ध करना पड़ेगा ? क्योंकि आरएसएस के अखण्ड भारत में तिब्बत का भी नाम है।
इस मुद्दे पर आज तक की साइट पर लिखे प्रियंक द्विवेदी के एक लेख के मुताबिक भागवत के अखण्ड भारत में हिन्दुओं की आबादी 60 प्रतिशत से भी कम हो जाएगी और वर्तमान भारत के 40 करोड़ गरीब हिन्दू भी अखण्ड भारत में होंगे। यह उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा है और सवाल किया है कि क्या भागवत का अखण्ड भारत ऐसा होगा ? प्रियंक द्विवेदी ने आगे लिखा है कि भागवत के अखण्ड भारत पर हैदराबाद से सांसद और एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि “अखण्ड भारत की बातें मत करो, चीन भारत के इलाके पर कब्जा करके बैठा है, जहां भारतीय सेना पेट्रोलिंग भी नहीं कर पाती, उसकी बातें करो।”
इस मुद्दे पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी चुटकी लेते हुए कहा कि “मोहन भागवत को यह काम 15 साल में नहीं, बल्कि 15 दिन में ही कर देना चाहिए, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, श्रीलंका और कंधार को भारत में मिला लेना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू भी अखण्ड भारत की वकालत करते रहे हैं, 2014 में उन्होंने कहा था कि अखण्ड भारत ही कश्मीर समस्या का समाधान है, हालांकि जस्टिस काटजू यूरोपियन यूनियन की तर्ज पर भारत को संगठित करने का फॉर्मूला देते हैं, यानी जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश साथ रहें और इन तीनों की अपनी अपनी सरकारें भी हों। इन तीनों सरकारों के ऊपर एक और सरकार होगी। यही फॉर्मूला यूरोपियन यूनियन में भी चलता है। वहां सभी देशों की अपनी अपनी सरकार हैं और एक यूरोपियन यूनियन की भी सरकार है और जिसकी संसद भी है। ऐसे ही भारत-पाकिस्तान महासंघ की वकालत और कल्पना समाजवादी नेता डाॅक्टर राम मनोहर लोहिया भी करते थे, तब बांग्लादेश नहीं बना था और वो पाकिस्तान का ही हिस्सा था।
विचित्र बात यह है कि अभी तो यह भी साफ नहीं है कि भागवत के अखण्ड भारत की परिभाषा क्या है ? ऐसा भारत जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हों या ऐसा भारत जिसमें पाकिस्तान-बांग्लादेश के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका भी हों ? या फिर ऐसा भारत जिसमें इन सबके साथ साथ कंबोडिया, मलेशिया, वियतनाम और इंडोनेशिया भी हों ? वैसे अखण्ड भारत में भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड और मालदीव को तो कम कम से शामिल करना ही चाहिए, इनके बगैर तो अखण्ड भारत अधूरा सा रहेगा।
अखण्ड भारत बनने पर वैसे तो भारतीय उप महाद्वीप के सभी निवासियों को इसका लाभ होगा। लेकिन सबसे अधिक लाभ मुसलमानों को होगा, क्योंकि अखण्ड भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 80 करोड़ होगी। फिर कोई भी मुसलमानों को तालिबानी और बांग्लादेशी नहीं कहेगा, कोई भी उन्हें पाकिस्तान भेजने की धमकी नहीं देगा। लेकिन अखण्ड भारत एक कल्पना के अलावा कुछ नहीं है। हाँ, यूरोपियन यूनियन की तरह भारतीय उप महाद्वीप (तिब्बत को छोड़कर, क्योंकि उस पर तो चीन का कब्ज़ा है) का एक महासंघ जरूर बन सकता है, अगर इन देशों के राजनेताओं की इच्छा शक्ति हो तो। इस महासंघ में साॅफ्ट बाॅर्डर हो, एक मुद्रा हो, उसी मुद्रा में सबका लेन देन हो, सरकार व राष्ट्रीय भाषा सभी देशों की अपनी अपनी हो। रोजगार व व्यापार के लिए महासंघ के सभी देशों के बाॅर्डर 24 घण्टे एक दूसरे के लिए खुले रहें। अगर ऐसा हो जाए, तो इसमें सभी का हित है, लेकिन यह भागवत के लहजे में बनना मुमकिन नहीं है, क्योंकि उस लहजे में खुली धमकी है और धमकी कोई भी देश बरदाश्त नहीं कर सकता।
(सभार थार न्यूज़-इक़रा पत्रिका)