अजीत शाही का लेख: मुझे आज तक एक भी मुसलमान ऐसा नहीं मिला है जिसने हिंदू धर्म को गाली दी हो…

पिछले पंद्रह सालों में मेरी जान-पहचान के शायद ही किसी हिंदू ने मुसलमानों के साथ इतना वक़्त बिताया होगा जितना कि मैंने बिताया है. तीन साल पहले अमेरिका आने के बाद मुसलमानों के साथ मेरा उठना-बैठना और भी बढ़ गया.

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कई मुसलमानों के साथ हमारा घर का आना-जाना है. मेरी पत्नी और कई मुसलमान महिलाओं में गाढ़ी मित्रता है. हमारा बेटा मुसलमान बच्चों के साथ खेलता है. कितने ही मुसलमानों के साथ हमारा परिवार सुख-दुख का साथी है. हमारे छोटे से हिंदू परिवार की मुसलमानों के साथ वैसी ही दोस्ती है जैसी कि आमतौर पर आपस में हिंदुओं में होती है. अपने दोस्तों के परिवारों में शादी में जब हम जाते हैं तो अक्सर वहाँ हमारा अकेला परिवार होता है जो मुसलमान नहीं होता है.

अमेरिका में कम से कम बीस मस्जिदों या इस्लामिक केंद्रों में मैंने तक़रीर की है. अमेरिका के मुख़्तलिफ़ शहरों में पब्लिक प्रोग्रामों में मेरा भाषण होता है. ऐसे कम से कम पचास से ज़्यादा भाषण दे चुका हूँ. हर जगह सौ से लेकर तीन सौ तक दर्शक सामने होते है. लगभग सभी मुसलमान होते हैं.

मेरे लिए सबसे ज़्यादा हैरत की बात ये है कि आज तक एक मुसलमान नहीं मिला है जिसने हिंदू धर्म को गाली दी हो या हिंदू समाज को गाली दी हो. एक भी नहीं. कई बार ऐसा होता है कि दस-बारह मुसलमान किसी मस्जिद या प्रोग्राम में इंडिया में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार की बात कर रहे हैं और मैं साथ खड़ा या बैठा होता हूँ. उनको मालूम भी नहीं होता है कि मैं मुसलमान नहीं हूँ. तब भी उनके मुँह से हिंदुओं को एक गाली नहीं सुनी है.

बल्कि ज़्यादातर मुसलमान मुझे समझाने के चक्कर में रहते हैं कि उनके बचपन से हिंदू दोस्त रहे हैं, और वो हिंदुओं के बीच रह कर बड़े हुए हैं, और हिंदुत्व राजनैतिक विचारधारा है और हिंदू धर्म से अलग है, वग़ैरह वग़ैरह. कितने ही मुसलमान मुझे बताते हैं कि क़ुरान में लिखा है कि हर मुसलमान का फ़र्ज़ है पूरी इंसानियत की इज़्ज़त करना और उसको महफ़ूज़ रखने के लिए कर्म करना और इसलिए उनका फ़र्ज़ है कि हिंदू हो या ईसाई हो उसकी भी मदद करना और उसकी हिफ़ाज़त करना.

दूसरी ओर जितने ही हिंदुओं को मैं जानता हूँ उनमें 99% दिन-रात मुसलमानों को गाली देते रहते हैं, इस्लाम के बारे में गंदी गंदी बातें करते रहतें हैं. WhatsApp ग्रुप्स में अपने हिंदू दोस्तों और घरवालों के कमेंट पढ़ कर घिन आ जाती है कि सबके दिमाग़ में कितनी ज़्यादा नफ़रत भर गई है. लिबरल प्रोग्रेसिव हिंदुओं को छोड़ दूँ तो जितने ही हिंदुओं को मैं जानता हूँ वो सब ये चाहते हैं कि भारत से इस्लाम ख़त्म हो जाए और एक एक मुसलमान या तो मर जाए (मार दिया जाए), या हिंदू बन जाए, या जेल चला जाए. जब मुसलमानों की सड़क पर घेर कर हत्या होती है तो मेरे हिंदू जानने वाले उसे सही मानते हैं. क्या IIT से पढ़े और क्या IAS रहे, सबके दिमाग़ में ये गहरा बैठ चुका है कि मुसलमान इंसान ही नहीं है और उसको जड़ से ख़त्म करना होगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, इन दिनों अमेरिका में रह रहे हैं)