अमेरिका में रह रहे भारतीय पत्रकार अजित शाही ने भारत में बढ़ते हेट क्राइम और सांप्रदायिकता को लेकर चिंता ज़ाहिर की है। अजित शाही ने कहा कि आज जो भारत में बीस-पच्चीस साल के हैं उन्होंने देखा ही नहीं किस तरह हम हिंदू और मुसलमान कभी इसी देश में मिल कर रहते थे। आज के मुसलमान नौजवान इस बात पर नाराज़ होते हैं कि हमारे जैसे लोग क्यों झूठ कहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दोस्त होते थे। लेकिन होते थे। हम बहुत अच्छे दोस्त होते थे। मेरा ख़ुद का तीन साल की उम्र से अनुभव है। पड़ोस में, स्कूल में, नौकरी में, हर तरफ़, सिर्फ़ मेरा ही नहीं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में कई इलाक़ों में रह रहे भारतीय मुसलमान मेरे दोस्त हैं। उनमें से एक-एक ये कहता है कि जब वो स्कूल या कॉलेज में पढ़ते थे कभी लगा ही नहीं कि मुसलमान होने की वजह से वो हिंदुओं से अलग हैं। हर मुसलमान ये बताता है कि उसके सारे दोस्त तो हिंदू ही थे। दिन-रात का उठना-बैठना था। खाना साथ खाते थे। दुख-सुख के साथी थे। अब वो सारे हिंदू दोस्त पलट गए हैं। औरंगज़ेब की बात करते हैं। खुल कर कहते हैं कि मुसलमानों को इंडिया से बाहर कर देना चाहिए। जब कहीं कोई भीड़ किसी मुसलमान की हत्या करती है तो वो ख़ुश होते हैं। ऐसा लगता है मानो कोई ज़हर सबके दिल और दिमाग़ में इंजेक्शन से भर दिया गया है। सौ साल साल से आरएसएस ये गंदगी फैलाने की कोशिश करता आ रहा है। रामजन्मभूमि के आंदोलन ने मुसलमानों के लिए नफ़रत हिंदुओं के दिल में आम कर दी। उसकी फ़सल आज पूरे देश में लहलहा रही है।
सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा कि अब हम हिंदुओं के घर-घर में मुसलमान से नफ़रत बस चुकी है। अजित ने कहा कि मैं अपने ख़ुद के ख़ानदान मे देख रहा हूँ। जिनको कभी नफ़रत और हिंसा की बात करते नहीं देखा वो आज पहचाने नहीं जा रहे हैं। अब हम इससे इंकार नहीं कर सकते हैं कि भारत का आम हिंदू, जिसमें आपके और हमारे घर वाले शामिल हैं, करोड़ों मुसलमानों का नरसंहार करना चाहता है। जब यूपी की, हरियाणा की, कर्नाटक की पुलिस मुसलमान को मारती है, जब उनको जेल में डालती है, तब हम हिंदू लोग ख़ुश होते हैं। अपने अपने घरों में ताली बजाते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस समेत भारत के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्यरत रहे अजित शाही ने कहा कि देश के हालात पर चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि अब ये हालात आसानी से सुधरेंगे। एक पूरी पीढ़ी नफ़रत की इस आग में जल के राख होगी। तभी नई चेतना आ पाएगी। हिंदू लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन अपनी किताबें तक नहीं पढ़ते। पढ़ते तो श्रीमद्भागवत गीता का श्लोक याद रखते और समझते-
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति
इसका मतलब ये है कि क्रोध यानी ग़ुस्से से मति मारी जाती है। जब मति मारी जाती है तो सोचने समझने की शक्ति चली जाती है। ऐसे आदमी की बुद्धि नाश हो जाती है। जब बुद्धि नाश हो जाती है तो वो इंसान बर्बाद हो जाता है। हम हिंदू नफ़रत में डूब चुके हैं। हमारा विवेक मर चुका है। हमारी सोचने-समझने की शक्ति ख़त्म हो चुकी है। हम को लगता है कि बीस करोड़ मुसलमान मर जाएँगे तो भारत स्वर्ग बन जाएगा।
अजित शाही ने कहा कि इस सोच के चलते हम भारत को नर्क बना रहे हैं। और अपने आप को नर्कवासी। पंद्रह-बीस साल में हम तो मर चुके होंगे। हमारे बाद हमारे बच्चे मानवता के खंडहर में बैठ कर सोचेंगे कि हमारे साथ हमारे माँ-बाप ने ऐसा क्यों किया?