तीस्ता सीतलवाड को गुजरात एटीएस ने गिरफ़्तार कर लिया है। चौबीस घंटे बाद गुजरात एटीएस तीस्ता को कोर्ट के सामने लाएगी। कोर्ट तीस्ता को दस दिन के लिए पुलिस कस्टडी में भेजेगी। तीस्ता के वकील इधर उधर कोर्ट में एप्लिकेशन डालेंगे। सुप्रीम कोर्ट में भी हाथ पैर मारा जाएगा। रास्ता कुछ नहीं निकलेगा। अब अगले कई साल तीस्ता जेल में रहेंगी।
केरल के पुलिस अधिकारी आर बी श्रीकुमार, जो गुजारत काडर के थे और बहुत हिम्मत के साथ मोदी के ख़िलाफ़ लड़े थे, भी गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। वो भी जेल में सड़ेंगे। तीन साल से गौतम नवलखा जेल में है। फ़ादर स्टैन को तो जेल में मार ही दिया। जी। एन। साईबाबा को कोर्ट ने पहले ही सज़ा दे दी है। उमर ख़ालिद से लेकर ख़ालिद सैफ़ी तक सबका यही क़िस्सा है। इन दर्जनों लोगों के ख़िलाफ़ एक सबूत नहीं है। इनका एक ही क़सूर है कि ये भ्रष्ट सियासतदान के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे।
ऐसा नहीं है कि कोर्ट बहरी, गूंगी और अंधी हो गई है। कोर्ट तो मोदी के आदेश पर चल रही है, वैसे ही जैसे चुनाव आयोग और मीडिया मोदी के आदेश पर चल रहे हैं। ये सिलसिला ख़ासतौर से 2019 से बहुत तेज़ हो चुका है। जज लोया की हत्या को छुपाने में जो जज इंवॉल्व थे वो प्रोमोट हो कर सुप्रीम कोर्ट में पहुँच चुके हैं। आरएसएस से जुड़े और एंकाउंटर केस में अमित शाह के वकील रहे जज ललित अगले महीने भारत के चीफ़ जस्टिस बनने जा रहे हैं।
मोदी के ख़िलाफ़ ज़ाकिया जाफ़री की पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट का जो जजमेंट कल आया है उस पर मूर्ख लोगों को ही आश्चर्य होगा। भारत की अदालत की ड्यूटी यही लगी है कि मोदी के आपराधिक कर्मों का पर्दाफ़ाश करने वाले लोगों से चुन चुन कर कोर्ट बदला ले। पूरी लंबी लिस्ट है कोर्ट के पास। उसी पर काम हो रहा है।
IPS अधिकारी संजीव भट्ट तीन साल से जेल में है। एक आदमी के कस्टोडियल टॉर्चर के लिए संजीव को सज़ा दी गई है। मज़ेदार बात ये है कि पुलिस ने भी कहा कि संजीव उस आदमी से कभी मिले ही नहीं थे। उससे भी मज़ेदार बात ये है कि उस आदमी का टॉर्चर हुआ ही नहीं था। सबसे मज़ेदार बात ये है कि वो आदमी पुलिस कस्टडी में मरा ही नहीं था। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने संजीव के वकील को अदालत में बोलने ही नहीं दिया।
संजीव की तरफ़ से एक गवाह पेश करने तक की इजाज़त नहीं मिली। सरकारी गवाहों से सवाल करने तक की संजीव के वकील को इजाज़त नहीं मिली। संजीव की तरफ़ से एक सबूत रखने की इजाज़त नहीं मिली। ज़मानत के लिए संजीव की एप्लीकेशन दो साल से सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में है। लेकिन उस एप्लीकेशन के लिए बेंच तक नहीं तय की जा रही है, तारीख़ मिलना तो दूर की बात है।
भारत की अदलिया का इस तरह नेस्तनाबूद हो जाना देश और समाज दोनों के लिए घातक होगा। जब इंसाफ़ का आख़िरी रास्ता बंद होकर इंसाफ़ का दुश्मन बन जाता है तो लोकतंत्र पूरी तरह पस्त हो जाता है। ऐसा नहीं है कि भारत की अदालतें पूरी तरह सही चल रही थीं और मोदी के सत्ता में आने के बाद कोई यू-टर्न आया है। लेकिन कम से कम ये था कि कई मामलों में ये उम्मीद की जा सकती थी कि अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाएँगे तो कोर्ट सही को सही और ग़लत को ग़लत बताएगी और इंसाफ़ करेगी। हर मामले में नहीं। लेकिन कई मामलों में। अब वो उम्मीद पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। अब भारत की अदालत किसी भी तानाशाह देश की अदालत की तरह हो चुकी है, जैसे रूस, चीन, ईजिप्ट। भारत से लोकतंत्र ख़त्म हो चुका है। सिर्फ़ इलेक्शन बचे हैं और संसद और अदालत की इमारतें बची हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)