अजीत साही का लेख: जो भी RSS, BJP गोडसे का समर्थक है, वो मुसमलानों और ईसाइयों के नरसंहार का समर्थक है!

आइए एक बार फिर से आपको खुल कर हिंदुत्व के बारे में बतला दिया जाए. हिंदुत्व वो विचारधारा है जो कहती है कि भारत सिर्फ़ हिंदुओं का देश है और यहाँ के मुसलमान और ईसाई को बराबरी का हक़ नहीं मिलना चाहिए. 1922 में विनायक सावरकर ने इस विचारधारा पर विस्तारपूर्वक लिखा. सावरकर के मुताबिक मुसलमान महिलाओं का रेप सही रास्ता होगा. सावरकर ने कहा कि भारत के हिंदुओं को भारत के मुसलमानों से वही व्यवहार करना चाहिए जो अमेरिका के गोरे पहले अमेरिका के काले लोगों के साथ करते थे, यानी उनको दास बनाते थे, उनकी हत्या करते थे, उनको ख़रीदते और बेचते थे.

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आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई. आरएसएस ने लगातार भारत के स्वाधीनता संग्राम का विरोध किया और अंग्रेज़ों की चमचागिरी की. जैसे सावरकर ने लिख लिख कर अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगी वैसे ही आरएसएस के नेता लगातार अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगते रहे. अटलबिहारी वाजपेयी ने भी अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगी थी.

आरएसएस जैसा दूसरा ज़हरीला संगठन हिंदू महासभा था. नाथूराम गोडसे जो कि सावरकर का शिष्य था वो आरएसएस व हिंदू महासभा दोनों का मेंबर था. ये आदमी आगे चलकर गाँधी का हत्यारा बना. हिंदू महासभा वाले आज भी गोडसे को हीरो मानते हैं. जिस दिन गाँधी की हत्या हुई उस दिन आरएसएस वालों ने मिठाई बाँटी थी. ये तो ख़ुद सरदार पटेल ने कहा था.

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर ने तो साफ़ साफ़ लिखा कि जर्मनी द्वारा यहूदियों का नरसंहार बिलकुल सही था. उसने लिखा कि ये नरसंहार जर्मन लोगों की “नस्ली शुद्धता” (racial purity) का सबूत था. गोलवलकर ले ये भी लिखा कि भारत के हिंदुओं को जर्मनी की नाज़ी पार्टी से सबक़ लेना चाहिए. यानी कि मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम करना चाहिए. गोलवलकर ने लिखा कि भारत के मुसलमान और ईसाई अगर हिंदू धर्म को अपने धर्म से बेहतर नहीं मानेंगे, अगर हिंदू भगवानों को अपने भगवानों से ऊपर नहीं मानेंगे, तो उन मुसलमानों और ईसाइयों को भारत में नागरिक का दर्जा नहीं मिलेगा और उनको हिंदुओं के पैरों में पड़े रहना होगा.

आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार के परम मित्र डॉक्टर मुंजे तो बाक़ायदा इटली जाकर फ़ासीवादी लीडर मुसोलिनी से मिलकर आए थे. लौट कर उन्होंने साफ़ साफ़ कहा कि हमको भी हिंदू फ़ासीवादी फ़ौज खड़ी करनी होगी जिसमें हिंदू बच्चे हथियार की ट्रेनिंग ले कर ग़ैर-हिंदुओं को मारेंगे.

1947 के दंगों में हर जगह आरएसएस के काडर शामिल थे. ये तो उस वक़्त की ब्रिटिश हुकूमत के तारों से पता चलता है. आज़ाद हिंदुस्तान में लगातार दंगे करवाने में हमेशा आरएसएस का हाथ रहा है. गुजरात में 2002 के दंगों में पूरी तरह आरएसएस और उसके वर्कर शामिल थे.

जब भारत ने नया संविधान बनाया तो आरएसएस ने खुल कर उसका विरोध किया और कहा कि भारत का संविधान मनुस्मृति पर आधारित होना चाहिए. जब भारत ने तिरंगा अपनाया तो आरएसएस ने उसको रिजेक्ट किया और कहा कि भारत का झंडा भगवा होना चाहिए. आज जो भी आरएसएस, बीजेपी और मोदी का समर्थक है वो गोडसे का समर्थक है. वो मुसमलानों और ईसाइयों के नरसंहार का समर्थक है.यही सत्य है.