टीवी पत्रकारिता को अलविदा कहने वाले अजित अंजुम बोले ‘मैं कुछ बेहतर काम कर रहा हूं तो मेरा हौसला बढ़ाएं।’

करीब पच्चीस साल टीवी मीडिया में संपादक रहा। सैकड़ों पत्रकारों की टीम को हेड किया । बड़े -बड़े लोगों का इंटरव्यू किया। दर्जनों तरह के शोज बनाए। चैनल लांच करने से लेकर सालों साल चलाने की जिम्मेदारी उठाई। सालों-साल लाखों की सैलरी वाली नौकरी न सिर्फ की बल्कि बहुतों को दी भी। इनमें टीवी की दुनिया के कई चमकते नामचीन चेहरे भी शामिल हैं। इतना कुछ छोड़कर मैं दो बार स्वेच्छा से टीवी की नौकरी से बाहर निकला। नौकरी पहले भी छोड़ी थी लेकिन बदलने के लिए छोड़ी, बीतें तीन सालों में दो बार छोड़ी उस दुनिया से निकलने के लिए। वजहें कई हैं। अब मैं सिर्फ अपने मन की करता हूं। बोलता हूं, पढ़ता हूं, घूमता हूं, मस्त रहता हूं। दिमाग पर किसी नौकरी का कोई लोड नहीं।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

कभी चैनलों को देखकर तो कभी इस दौर में बदले माहौल को देखकर कुछ बेचैनियां जब -तब जेहन में उगती है। वही कभी-कभी बुरी तरह डिस्टर्ब करती है। फिर उन्हें देखना -सुनना-जानना बंद करके खुद को शांत कर लेता हूं। सच कहूं तो इन पांच महीनों से जो कर रहा हूं, उसमें मुझे उन नौकरियों से ज्यादा सुकून है। अपने मन की सुनता हूं। वीडियो बनाता हूं और आप लोगों के लिए अपलोड कर देता हूं। मेरी डोर चाहे हल्के से चाहे जोर से किसी ने थाम नहीं रखी है। पूरी तरह आजाद। अनियंत्रित नहीं हूं लेकिन कोई मेरा नियंत्रक नहीं। खुद पर खुद का नियंत्रण है।

एक समय सौ-दो सौ लोग मेरे कहने पर काम करते थे आज खुद रिसर्च करता हूं। कांटेंट सोचता हूं, अखबार खंगालता हूं, एडिट करता हूं। फिर इधर उधर अपलोड करता हूं। प्रेशर भी होता है। जब वही वीडियो यूट्यूब और फेसबुक पेज पर लाखों लोग देखते हैं तो सार्थक करने का अहसास होता है। यकीन मानिए ये अहसास लाखों की नौकरी वाले चैनल हेड होने के अहसास पर भारी पड़ता है।

बाकी जलनशील जनता जलती रहे, उन्हें भी भगवान यूं ही बनाए रखे ताकि मुझे ट्रोल करके ताकत देते रहें। मेरी जिद की बुनियाद में खाद -पानी गाली ऐसे ही लोगों की गालियों और आलोचनाओं से मिलता है। अगर आपको लगता है कि मैं कुछ बेहतर काम कर रहा हूं तो मेरा हौसला बढ़ाएं। अगर लगता है कि सत्ता, साम्प्रदायिकता और चाटूकारिता वाली पत्रकारिता की आलोचना करके गलत करता हूं तो गालियां देते रहें। उससे भी मेरा हौसला बना रहता है।

हंसी तब आती है का चाटूकारिता का चूरन लेकर दिन रात पादुका पूजन वाली पत्रकारिता करने वाले भी पत्रकारिता का पाठ पढ़ाने आ जाते हैं या एक अदद नौकरी की तलाश में भटकते या किसी नौकरी में घिसते लोग मुझे बेरोजगार घोषित करके प्रफुल्लित होते हैं। उनके लिए इतना ही कि हे प्रभु उन्हें माफ कर देना , वो नहीं जानते कि मैं कितने मजे में हूं। मेरी बातों से कहीं दंभ, अहंकार या दिखावा झलका हो तो माफी चाहूंगा। इतना कहने की आजादी तो मुझे भी होनी ही चाहिए जब मुझे कोई भी कुछ कहने की आजादी रखता है।

‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

(वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम की फेसबुक वॉल से उनके विचार)