नई दिल्लीः पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ओ एम ए सलाम ने बीते रोज़ अहमदाबाद ब्लास्ट के आरोपियों को सज़ा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह संदिग्ध जाँच और काले क़ानूनों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद बम विस्फोट मामले में विशेष अदालत का फैसला ख़राब प्रक्रिया, संदिग्ध जाँच और काले क़ानूनों का परिणाम है।
पॉपुलर फ्रंट ने कहा कि मामले की जाँच और कार्यवाहियों पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। इससे पहले कि बहुत से लोगों को निर्दाष पाते हुए बरी किया जाता उन्हें 13 साल जेल में गुज़ारने पड़े। यहां तक कि एक आरोपी गिरफ्तार होने से पहले कभी भी अहमदाबाद नहीं गया था और गिरफ्तारी के बाद उसे पहली बार राज्य में लाया गया था। इससे बढ़कर यह कि धमाके के समय जो लोग गल्फ में और जेलों में थे उन्हें भी दोषी ठहराया गया। ऐसे सवालों से घिरे मामले में इतनी आसानी से 38 लोगों को सज़ा सुनाना निश्चित रूप से न्याय के पक्ष में नहीं है।
ओ एम ए सलाम ने कहा कि अहमदाबाद मामले का फैसला अदालत की निष्पक्षता को दागदार करेगा और इससे यह प्रभाव बनेगा कि अदालत आरोपियों के धर्म को लेकर पक्षपात का शिकार है। हिंदुत्व फासीवादियो ने न जाने कितने ही सांप्रदायिक नरसंहारों और आतंकी हमलों को अंजाम दिया है जिनमें हज़ारों जानें गई हैं। लेकिन ये अपराधी न केवल आज़ाद घूमते रहे हैं बल्कि उनमें से कई ने सरकार में ऊंचे पद भी हासिल किए हैं।
पॉपुलर फ्रंट की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सज़ा-ए-मौत की सोच को लोकतांत्रिक समाज से ख़त्म करने की आवश्यकता है। भारत जैसे देश में जहां राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ न्यायपालिका के राजनीतिक उपयोग और क़ानूनों के दुरुपयोग के बड़े पैमाने पर आरोप लगाए जाते रहे हैं, वहां इस बात का बड़ा ख़तरा है कि मौत की सज़ा को एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। पॉपुलर फ्रंट यह आशा जताता है कि उच्च न्यायालय इस फैसले को ख़त्म करेगा जो अदालती प्रक्रिया का मज़ाक बनाता है।