अहमद पटेल: कांग्रेस की वो पूंजी जिसकी भरपाई अब कभी कोई नहीं कर सकता।

इस्लाहुद्दीन अंसारी

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साल 2020 जाते-जाते भारतीय राजनीति के उस पटेल को भी अपने साथ ले गया जो राजनीति में 40 से ज्यादा बरसो तक़ सबका “अहमद भाई” बनकर सबके दिलों पर राज करता रहा। पर्दे के पीछे से सियासी बिसाते बिछाने में माहिर अहमद पटेल भारतीय राजनीति के एक ऐसे मास्टरपीस राजनेता थे जो लगातार तीन बार लोकसभा सांसद और लगातार पांच बार राज्यसभा सांसद रहने के बावजूद लाईमलाईट वाली राजनीति से दूर पर्दे के पीछे रहकर काम करना पसंद करते थे।

सोनिया गांधी के राजनैतिक पदार्पण से लेकर UPA-1 और UPA-2 तक़ अहमद पटेल सोनिया गांधी के सबसे विश्वसनीय और करीबी सिपहसालार बनकर रहे और हर मौके पर खुद को साबित भी किया है कांग्रेस आलाकमान में अहमद भाई अकेले ऐसे राजनेता थे जिनको सोनिया के सबसे ज्यादा विश्वासपात्र थे। वो हमेशा दो फोन इस्तेमाल करते थे एक से बाकि के सारे काम करते थे और दूसरा फोन सिर्फ़ और सिर्फ़ दस जनपथ से संपर्क साधने के लिये और वहां के फोन रिसीव करने के लिये हमेशा फ्री रखते थे।

इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक़ कांग्रेस में उनकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रही, इंदिरा के समय जब कांग्रेस अपने दौर के सबसे बुरे प्रदर्शन से जूझ रही थी उस समय भी 28 साल के अहमद पटेल अपनी लोकसभा जीतने में कामयाब रहे थे, और जब 2017 में गुजरात राज्यसभा चुनावों में उन्हें हराने के लिये मोदी-शाह एंड कंपनी ने पूरी ताकत झोंक डाली थी तब भी भारतीय राजनीति के इस पटेल ने चमत्कारिक तरीके से ये साबित कर दिया था की बात अगर वन टू वन की आ जाए तो भारतीय राजनीति का कोई भी शाह उनकी रणनीति के आगे ज्यादा देर टिक ही नहीं सकता।

वो राजनीतिक मैनेजमेंट के मास्टर थे, घंटे दो घंटे के सीमित समय में वो देश के किसी भी कोने में संसाधन जुटाने के मामले में कांग्रेस पार्टी के अन्य नेताओं की अपेक्षा सबसे अग्रणी थे फिर चाहे सभाओं के लिये भीड़ हो, पैसा हो, प्राइवेट जैट हो या फिर ऐसी ही कोई दूसरी चीज़, कहा जाता है की अपने राजनीतिक जीवन काल में देश में हर वर्ग में बहोत सारे ऐसे लोग थे जो अहमद भाई के किसी ना किसी अहसान तले दबे हुए थे और वो अक्सर मौके की तलाश में रहते थे की कब अहमद के उस अहसान को किसी तरह चुकाया जाए। हालांकि फिर भी अहमद पटेल साहब ने इनमें से ज्यादातर लोगों से काम नहीं लिया था।

यही वजह थी की राहुल गांधी की पहली पसंद ना होने के बावजूद उन्हें 2018-2019 में आम चुनावों के वक़्त कांग्रेस पार्टी के प्रतिष्ठित कोषाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई क्योंकि राहुल गांधी जानते थे की इस मुश्किल वक़्त में अहमद पटेल ही थे जो पार्टी की वित्तीय गतिविधियों के लिये ये जिम्मेदारी बेहतर तरीके से उठा सकते हैं। कार्पोरेट घरानों में उनकी पैठ के कई किस्से कांग्रेस पार्टी में हमेशा से चर्चे में रहे हैं ।

उनके जानने वाले बताते हैं की अहमद भाई बेहद धार्मिक किस्म के व्यक्ति थे और नमाज़ों के पाबंद थे बावजूद उसके वो पारंपरिक धार्मिक प्रतीकों जैसे दाढ़ी, टोपी और शेरवानी से हमेशा दूर रहे, उनके गांव में वो एकमत से भले व्यक्ति थे, सब उनकी तारीफ़ करते थे उनकी बुराई करने वाला शायद ही कोई शख़्स उस गांव में हो जहाँ वो रहते थे। गांव में वो बाबूभाई के नाम से जाने जाते थे जो घर से निकलते थे तो सबका हाल चाल लेते हुए चलते थे।घर आने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों से पूरी आत्मीयता से मिलते और खुद ही उनकी खातिरदारी करते थे।

देश भर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उनकी गहरी पैठ थी हर सूबे की हर जिले की कांग्रेस कार्यकारिणी तक़ उनकी सीधी पहुंच थी और वो इनमें से ज्यादातर लोगों को नाम से पहचानते थे यही उनकी वो खूबी थी जो उन्हें कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े समन्वयक का एक अघोषित दर्जा देती थी, वो देर रात से अल सुबह तक काम करते थे अक्सर लोगों को देर रात फोन लगाकर नींद से जगाकर कोई भी काम सौंप देते थे, राज्यसभा चुनावों के समय वो अल सुबह नेताओं को फोन करके इसकी जानकारी देते की उन्हें राज्यसभा के लिये नामांकन भरना है।

कांग्रेस में वो अकेले थे जो मोदी और अमित शाह के राजनैतिक इरादों का सबसे सटीक आंकलन कर लेते थे, कांग्रेस की बैठकों में उनकी बात सबसे आख़िरी हुआ करती थी, उनका घर 10 जनपथ और तुगलक लेन के बाद कांग्रेस का सबसे बड़ा पावर सेंटर था जहाँ नगरीय निकाय चुनावों से लेकर विधायकों, सांसदों और मुख्यमंत्रियों तक़ के भाग्य का फैसला होता था, वो बड़बोले नहीं थे और ना ही बड़े-बड़े दावे करते थे पर उनका कहा बहोत सारी बातों का निचोड़ होता था।

राजस्थान की सियासी उठा पटक का सम्मान जनक पटाक्षेप और महाराष्ट्र की “महा-विकास अघाड़ी” सरकार उनकी वो हालियां बड़ी उपलब्धियां थी जिसे उन्होने पर्दे के पीछे रहकर अंजाम दिया था। कांग्रेस पार्टी में अहमद पटेल उस शख्स का नाम था जिसके पास हर एक राजनीतिक मर्ज का शर्तिया इलाज ऐन मौके पर उपलब्ध होता था। उनका जाना कांग्रेस पार्टी के लिये एक ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती वो कांग्रेस की वो पूंजी थे जिसने कांग्रेस पार्टी को हमेशा सिर्फ और सिर्फ़ लाभ पहुंचाया है।