गिरीश मालवीय
किसान खूंटा गाड़ कर दिल्ली की बॉर्डर पर बैठ गया है कल तीन दिसंबर की बहुप्रतीक्षित मीटिंग से कोई हल नही निकाला जा सका है, मोदी सरकार अपनी हठधर्मिता पर अड़ी है, किसान सबसे बड़ा सवाल यह पूछ रहा है कि ये तो बताइए ऐसा कानून बनाने का आपको सुझाव दिया किसने था? किसान नेता कह रहे हैं, “हम सरकार से पूछते हैं कि सरकार ने किस किसान संगठन ने और किन किसानों ने सरकार से अपना भला करने की मांग की थी आपने हम से तो एक बार भी नही पूछा और कानून बना दिया तो आपकी बात का भरोसा अब हम कैसे कर ले?
साफ दिख रहा है कि यह कानून किसानों के हित के लिए नही बल्कि कारपोरेट के हितों की पूर्ति के लिए है मोदी सरकार दरअसल कारपोरेट कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाह रही है इसलिए बहुत संभव है कि सरकार अगले संसद सत्र में एक कदम आगे बढ़कर वह भूमि हदबंदी कानून (लैंड सीलिंग एक्ट) में बदलाव कर दे जिससे पूरी तरह से कॉरपोरेट खेती का रास्ता साफ हो सके। अगर एसा हुआ तो भारत में ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था का पूरा ढांचा ही बदल जाएगा।
लैंड सीलिंग एक्ट ही एक ऐसा प्रावधान है जो इन नए कृषि अध्यादेशों के बाद बड़े कारपोरेट के रास्ते का का सबसे बड़ा रोड़ा है. जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद 1961 में सीलिंग एक्ट लागू किया गया। यह कानून बनने के बाद एक परिवार को 15 एकड़ से ज्यादा सिंचित भूमि रखने का अधिकार नहीं है। असिंचित भूमि के मामले में यह रकबा 18 एकड़ तक बढ़ सकता है। अलग अलग राज्यों ने इसमे अपने हिसाब से संशोधन कर रखे है.
कारपोरेट बड़ी जोत पर खेती करना चाहता है लेकिन भारत मे छोटी जोतो की बहुलता खेती के बड़े क्षेत्र तैयार नहीं है अब कार्पोरेट्स प्रत्यक्ष स्वामित्व, पट्टा या लम्बी लीज पर जमीन लेकर खेती करेंगे या किसान समूह से अनुबन्ध करके किसानों को बीज, क्रेडिट, उर्वरक, मशीनरी और तकनीकी आदि उपलब्ध कराकर खेती करेंगे।
लेकिन पश्चिमी मॉडल की यह कृषि व्यवस्था हमारे देश के लिए मुफीद नही है हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह बिजनेस है व्यवसाय है। पर कारपोरेट की दलाल मोदी सरकार लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव लाने का कदम भी उठाकर ही मानेगी इसकी पूरी संभावना है।
(लेखक आर्थिक मामलो के जानकार एंव स्वतंत्र टिपप्णीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)