बीस बरस बाद मेरठ में खुला रालोद का खाता, ग़ुलाम मोहम्मद की जीत ने जयंत को दी सौगात

परवेज त्यागी

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जनपद में दो दशक के लंबे सूखे के बाद इस बार रालोद के नल से पानी निकला है। बीस साल तक अपना खाता खोलने में नाकाम रहने वाले छोटे चौधरी के दल ने फिर से एक मात्र सिवालखास सीट पर अपनी उपस्थिति चुनाव में दर्ज कराई है। इसी सीट पर आखिरी बार रालोद को 2002 में जीत मिली थी। उसके बाद से लगतार सीट पाने की जद्दोजहद पार्टी की ओर से होती रही, मगर सफलता नहीं मिल सकी। पिछले तीनों चुनाव की बात करें तो राष्ट्रीय लोकदल कामयाबी के करीब पहुंचकर भी विजयी हासिल करने में नाकाम रहा। गठबंधन के चलते इस बार चुनाव में समीकरण बदले तो सीट का परिणाम भी बदल गया। बदले समीकरणों की बदौलत ही इतने लंबे अर्से के बाद रालोद ने यहां जीत का स्वाद चखा है।

आखिरी बार 2002 में जीते थे रालोद के रणवीर राणा

बीस बरस पहले सिवालखास सीट पर रालोद के सिंबल से रणवीर राणा चुनाव जीते थे। तब यह सीट रिजर्व थी। उसके बार यहां लगातार तीन बार रालोद को हार का मुंह देखना पड़ा। 2002 के बाद 2007 के अगले ही चुनाव में बसपा के हाथों हार मिली, तो फिर 2012 में सीट के सामान्य होने पर पहले ही चुनाव में सपा ने नल से पानी निकलने नहीं दिया। दोनों बार चुनाव में रालोद प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहा और नजदीकी मुकाबले में हारा।

2017 में इस सीट पर पहले के मुकाबले रालोद का ग्राफ और गिरा और पार्टी दूसरे से खिसकर तीसरे पायदान पर पहुंच गई। इस चुनाव में भाजपा ने यहां पहली बार जीत दर्ज की थी। हालांकि इस बार पार्टी ने अपने खोए जनाधार को वापस पा लिया है। गठबंधन के गठजोड में गुलाम मोहम्मद ने नल के निशान पर जीत दर्जकर फिर से पार्टी का जिले में खाता खोल दिया है।

किसान आंदोलन की सिंचाई से लहलायी फसल

दिल्ली के किसान आंदोलन की सिंचाई ने हरित पट्टी में रालोद की फसल को फिर से लहला दिया है। आंदोलन के बूते ही बने माहौल से पार्टी को वेस्ट यूपी में पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार आठ गुणा अधिक सफलता मिली है। मेरठ, सहारनपुर मंडल के साथ ही अलीगढ़ मंडल में भी छोटे चौधरी के दल का खाता खुल गया है। जिन सीटों पर पार्टी की हार हुई है, उनमें भी कई सीटों पर नजदीकी मुकाबला रहा है। बड़ौत व नहटौर सीट मामूली अंतर से पार्टी हारी है, जबकि बिजनौर सदर, बागपत और लोनी में भी हार का अंतर कम रहा। भले गठबंधन के अपेक्षाकृत चुनाव में नजीते नहीं आए हैं, मगर रालोद को इस बार का परिणाम संजीवनी जरुर दे गया है, जो आगामी चुनाव में पार्टी का ग्राफ और मनोबल दोनों को ही और बढ़ाने में मुफीद हो सकती है।