आचार्य विनोबा भावे: जिन्होंने सबसे पहले किया था क़ुरआन का अनुवाद

शकील हसन शमसी

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आज का लेख मैं भारत के उस महान व्यक्ति को समर्पित कर रहा हूँ जिस ने इस देश में एकता के ऐसे चिराग़ जलाये जिनकी रौशनी अनंत काल तक अंधेरों से लड़ती रहेगी। आज के मेरे लेख के नायक हैं आचार्य विनोबा भावे, जो भूदान आंदोलन के अहम नेता, स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और महात्मा गांधी के सहयोगी थे । बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि विनोबा भावे जी ने सब से पहले क़ुरआन का अनुवाद किया था और फिर एक और अहम काम यह किया था कि क़ुरआन की एक विषय वाली आयतों के अनुवाद को अलग अलग सूरों में से छांट कर उनको अलग अलग अध्याय में केंद्रित किया था ताकि अगर कोई व्यक्ति किसी एक विषय पर क़ुरआन के आदेश के बारे में जानना चाहता है तो वह एक अध्याय में सभी आयतें ढूंढ ले , अपनी इस पुस्तक को उन्होंने हिंदी में “क़ुरआन सार” का नाम दिया और उर्दू में “रूह उल क़ुरआन” का नाम दिया।

अब अगर आप को यह देखना हो कि पवित्र क़ुरआन में अहिंसा की उपदेश कहाँ कहाँ पर दिया गया है तो आप विनोबा भावे द्वारा अनुवादित क़ुरआन सार के खंड 6 में अहिंसा अपनाने का आदेश देने वाली आयतें देख सकते हैं। आचार्य विनोबा भावे के अनुवाद की एक ख़ास बात यह है कि उन्होंने सुन्नी या शिया उलेमा की तरह अपने अपने धार्मिक विश्वास को सामने रख कर अनुवाद नहीं किया बल्कि एक तटस्थ ज्ञानी की तरह किया जिसके कारण उनका अनुवाद एक दम अनूठा है।

आचार्य विनोबा भावे ने क़ुरआन का अनुवाद क्यों और कैसे किया इस की कहानी बहुत दिलचस्प है। यह कहानी क़ुरआन सार की प्रस्तावना में लिखी गई है। प्रस्तावना के अनुसार जिस समय विनोबा भावे महाराष्ट्र के वर्धा आश्रम में रह रहे थे तो वह आश्रम के आस पास रहने वाले बच्चों को विभिन्न प्रकार की शिक्षा देते थे। उन्हीं बच्चों में एक एक मुसलमान बच्चा भी आता उस मुसलमान बच्चे ने आश्रम में चरखा चलाकर सूत कातना सीखा , धुन्ना और बुनना सीखा, राष्ट्रिय जीवन जीना सीखा। आश्रम में जो प्रवचन होते थे उनको भी वह मुसलमान बच्चा सुनता था। कुछ दिन बाद उसका दिल चाहा कि वह क़ुरआन पढ़े। उसने विनोबा जी से प्रार्थना की कि वह उसे क़ुरआन पढ़ाएं। उन्होंने सोचा कि इस बच्चे के माध्यम से उन्हें ईश्वरीय संकेत मिला है कि वह क़ुरआन पढ़ें। उन्होंने मुसलमान बच्चे से कहा की वह पहले ख़ुद क़ुरआन पढ़ना सीख लें तब वह उसे भी क़ुरआन पढ़ना सिखाएंगे।

क़ुरआन सीखने के लिए उन्होंने सब से पहले पास के देहात की एक मस्जिद के इमाम से सम्पर्क किया और क़ुरआन की तिलावत (पाठ करना) सीखना शुरू किया, मगर उस इमाम को केवल क़ुरआन याद था अरबी भाषा लिखना या क़ुरआन का मतलब समझा पाना उनको नहीं आता था। क़ुरआन का पाठ सीखने के बाद विनोबा जी ने खुद अरबी पढ़ना शुरू की और अरबी का अनुवाद करने के तरीक़े बताने वाली किताबों का अध्ययन करना शुरू किया। जब वह क़ुरआन पढ़ने में सफल हो गए तो उन्होंने अरबी का सही उच्चारण सीखने के लिए हर दिन आल इण्डिया रेडियो से प्रसारित होने वाले क़ुरआन के पाठ को सुनना शुरू कर दिया। इस तरह उन्होंने अपने तलफ़्फ़ुज़ (उच्चारण) को सही किया फिर उन्होंने इंग्लिश के अनुवाद को इस तरह देखना शुरू किया कि एक एक आयत को सामने रखते फिर इंग्लिश का अनुवाद देखते फिर उन्होंने अरबी के ग्रामर (व्याकरण) पढ़ना शुरू की उनको क़ुरआन पढ़ने से इतना लगाव हो गया था कि वह जेल में भी क़ुरआन को पढ़ने और सीखने में लगे रहे , जब गांधी जी को मालूम हुआ कि विनोबा जी क़ुरआन का अध्ययन कर रहे हैं तो उन्होंने कहा ” हम में से किसी को तो यह काम करना था। विनोबा कर रहा है तो यह आंनद का विषय है। ”

विनोबा ने क़ुरआन का अध्ययन करने में ऐसी सफलता प्राप्त की कि एक बार जब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (जो खुद क़ुरआन के बहुत बड़े ज्ञानी थे) वर्धा आश्रम में आये तो गांधी जी ने विनोबा भावे से उनके सामने कुरआन का पाठ करने को कहा तो मौलाना आज़ाद विनोबा जी के उच्चारण को सुन कर हैरान रह गए। उनको जब विनोबा के क़ुरआन के बारे ज्ञान और सीखने की कहानी पता चली तो वह बहुत प्रसन्न हुए। विनोबा भावे ने अपने जीवन काल में कई स्थानों पर क़ुरआन के बारे में प्रवचन भी दिए और इस ईश्वरीय पुस्तक के संदेश से देश वासियों को अवगत करवाया।

इसमें किसी संदेह की गुंजाईश नहीं कि एक दूसरे के धर्म को जानने और समझने की इसी प्रकार के ऐसे ही प्रयत्नों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है, मगर ऐसे महान लोगों और उनकी कोशिशों के बारे में कोई बात नहीं करता बल्कि उसको छुपाने की कोशिश की जाती है?

क्या आपने कभी सुना है कि मुग़ल शासक अकबर के आग्रह पर मुल्ला अब्दुल क़ादिर बदायूनी नाम के एक धर्मगुरु ने रामायण का संस्कृत से फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया था ? क्या आप को कभी किसी ने यह बताया कि भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद और पंचतंत्र जैसी अहम किताबों का संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद कई मुसलमान उलेमा आज से पांच सौ वर्ष पूर्व ही कर चुके थे? अगले भाग में ऐसी ही कुछ जानकारियां हम आप को देने वाले हैं।

(लेखक उर्दू के जाने माने पत्रकार हैं, और इंक़लाब उर्दू के पूर्व संपादक हैं)