अफ़रोज़ आलम साहिल
मुल्क की आज़ादी के तुंरत बाद अब्दुल क़य्यूम अंसारी काफ़ी बीमार पड़े. इनके बीमार पड़ने की ख़बर 29 अगस्त, 1947 को गांधी तक जैसे ही पहुंची, गांधी जी ने इनके नाम एक पत्र लिखा. इस पत्र में गांधी जी लिखते हैं —‘भाई अंसारी, आपकी बीमारी की बात मनू बहन ने सुनाई. मेरी निगाह में बीमार पड़ना ख़िदमतगार के लिए गुनाह है…’
आज इसी ख़िदमतगार की यौम-ए-पैदाईश है. आज से ठीक 116 साल पहले आज ही के दिन 01 जुलाई, 1905 को अब्दुल क़य्यूम अंसारी बिहार के रोहतास ज़िले में स्थित डेहरी ऑन सोन में मौलवी अब्दुल हक़ के घर पैदा हुए.
जब सिर्फ़ 14 साल इनकी उम्र थी तो मुल्क में ख़िलाफ़त आन्दोलन की शुरूआत हुई. इसी सिलसिले में अली ब्रदर्स बिहार का दौरा कर रहे थे. 1919 के इसी दौरे में अब्दुल क़य्यूम अंसारी को मोहम्मद अली जौहर से मिलने का मौक़ा मिला. जौहर के एक सभा में थे, उसी सभा में अब्दुल क़य्यूम अंसारी जैसे प्यारे से बच्चे को सफ़ेद टोपी में देखकर बड़े प्यार से अपने पास बुलाया, उनकी टोपी अपने हाथ में लेकर पूछा कि क्या ये खादी की है.
जौहर के इस प्यार भरे अंदाज़ से अब्दुल क़य्यूम अंसारी काफ़ी प्रभावित हुए, वहीं दूसरी तरफ़ अली ब्रदर्स इनके क़ौमी जज़्बे से. इसी जज़्बे को देखते हुए 1920 में इन्हें डेहरी ऑन सोन ख़िलाफ़त कमिटी का जेनरल सेकेट्री बनाया गया. फिर अब्दुल क़य्यूम अंसारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1946 में रांची सह सिंहभूम मुहम्मडन देहात क्षेत्र से जीत दर्ज कर विधायक बने और 14 अप्रैल, 1946 को श्री कृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री बने. जो उस सबसे कम उम्र के मंत्री थे.
अब्दुल क़य्यूम अंसारी राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव के ज़बरदस्त पैरोकार थे. आप उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने मुस्लिम लीग के एक अलग मुस्लिम राज्य के विचार का पुरज़ोर विरोध किया. बिहार के इस महान नेता का 18 जनवरी 1973 को निधन हो गया, और इस नश्वर दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए.