वोटर आईडी को आधार से जोड़ने के लिए लोकसभा ने कल चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित कर दिया, पहली नजर में देखा जाए तो इसमे कोई बुराई आपको नजर नही आएगी, लेकिन इस कदम को यदि ध्यान से आप देखेंगे तो पाएंगे कि इस कदम में कई विसंगतिया है, और भारत के लोकतंत्र के लिये यह बेहद खतरनाक संकेत देता है।
सबसे पहले हुआ क्या है वह समझते हैं. कल जो कानून पास हुआ है उसके जरिए चुनाव अधिकारी निर्वाचक नामावली में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के उद्देश्य से निर्वाचक नामावली में पहले से शामिल व्यक्तियों से आधार नंबर मांग सकते हैं, और वोटर लिस्ट डेटा को आधार सिस्टम के साथ जोड़ा जा सकता है।
2010 में जब आधार विधेयक लाया गया था तो आधार नम्बर के बारे में कहा गया कि इसे केवल सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं में उपयोग में लाया जाएगा 2015 में तो स्वंय सुप्रीम कोर्ट ने आधार के इस्तेमाल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और एलपीजी एवं केरोसिन के वितरण तक सीमित करने के निर्देश सरकार को दिये थे. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हुई और इसे एक तरह से अनिवार्य ही कर दिया गया। अब आधार को तमाम आवश्यक सेवाओ जैसे फ़ोन, बैंक, स्वास्थ्य टीकाकरण जैसी तमाम चीजों से जोड़ा जा चुका है अब तो हमारे वोटिंग राइट भी इसी आधार से डिसाइड होंगे।
मजे की बात यह है कि आधार जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई भी अपने डेटा की जिम्मेदारी नही लेती है के.एस. पुट्टस्वामी वी यूओआई (2012) में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में यूआईडीएआई अपने डेटाबेस में दर्ज जानकारी की शुद्धता के लिए संस्थागत जिम्मेदारी नहीं लेता है।
आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए पात्रता मानदंड भारत में 182 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए निवास है फिर किस आधार पर इसे वोटिंग अधिकार से जोड़ा जा रहा है? जन्म से मृत्यु तक, हमारे मताधिकार को भी हमारी सारी ज़िंदगी को एक ही नंबर से जोड़ने के पीछे एक ही उद्देश्य है – सरकारी और कॉर्पोरेट सर्विलांस स्थापित करना जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
सबसे बड़ा खतरा जो सामने नजर आ रहा है वह ये है कि आधार को वोटर आईडी से जोड़ने से मतदाताओं की प्रोफाइलिंग की अनुमति दी जा रही जिन्हें बाद में टारगेट किया जा सकता है। आधार बनवाने के लिए नाम, एड्रेस प्रूफ के साथ तीन तरह की बायोमैट्रिक डिटेल्स ली जाती है. पहला-फिंगर प्रिंट्स. दूसरा-आई स्कैन और तीसरा फेस स्कैन. जी हां फेशियल रिकॉग्निशन भी आधार के जरिए की जा सकती है, बहुत संभव है कि सरकार का अगला कदम नागरिकों की डीएनए लाइब्रेरी बनाने की हो, न्यू वर्ल्ड आर्डर के तहत सरकार चाहती है कि वो आपके बारे में जानकारी जुटाकर एक ‘डेटाबेस’ में डाल दे. दिल्ली में बैठे वो ये जान ले कि आप कहां-कहां गये, किस विचारधारा के आप समर्थक है, किस नेता को आप पसंद नापसन्द करते हैं।
आधार का बिल जब संसद में लाया गया था तब ही यह साफ कर दिया गया था कि यह विधेयक ख़ुफ़िया एजेंसियों को व्यवहार के पैटर्न की पहचान के मामले में विभिन्न डेटासेट्स (जैसे कि टेलीफ़ोन रिकॉर्ड, हवाई यात्रा के रिकॉर्ड आदि) में कंप्यूटर प्रोग्राम चलाते समय लिंक(कुंजी) के रूप में आधार नम्बर के उपयोग से नहीं रोकता है।
इस तरह के पैटर्न की पहचान से उन व्यक्तियों का उत्पीड़न भी हो सकता है जिन्हें संभावित खतरे के रूप में गलत रूप से पहचाना जाए। एक बात और हैं कि आधार के मूल विधेयक के अंदर किसी भी लापरवाही के लिए कोई दंड नहीं है जो जानकारी की हानि का कारण बन सकती है। साथ ही, इसमें किसी व्यक्ति की निजी जानकारी के दुरूपयोग के मामले में मुआवज़े का कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
समय समय पर ऐसी खबरें आती है जिसमें कहा जाता है कि आधार डेटा में सेंध लग चुकी है कुछ सालों पहले जुलियन असांजे की विकीलीक्स ने दावा किया है कि अमेरिकी की इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए ने आधार कार्ड के डाटा को चुरा लिया है। विकिलीक्स के अनुसार सीआईए ने जिस कंपनी की मदद से आधार डाटा को हैक किया है उसी कंपनी की इंडियन इकाई आधार कार्ड बनाने वाली संस्था यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया को बॉयोमेट्रिक डाटा लेने के लिए सॉफ्टवेयर तैयार किया है। क्रॉसमैच का इंडिया में ऑपरेशन स्मार्ट आईडेंटिटी डिवाइसेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ में पार्टनरशिप है। इसी कंपनी ने देश भर के 1.2 मिलियन भारतीयों के आधार कार्ड के लिए डाटाबेस इकठ्ठा किए थे।
दरअसल भारत का बुद्धिजीवी वर्ग सर्विलांस के खतरे को ठीक से समझ नहीं रहा है, इतना मजबूत सर्विलांस सिस्टम एक झटके में लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट कर देगा। सर्विलांस के बारे में एक सवाल के जवाब में एडवर्ड स्नोडेन ने कहा था- “अगर हम कुछ नहीं करते है, तो हम एक संपूर्ण निगरानी राज्य के भीतर नींद में चलने जैसा व्यवहार कर रहे होते हैं. हमारा एक सुपर स्टेट होता है जिसके पास दो तरह की असीमित क्षमताएं होती हैं- ताक़त को आज़माने की और सब कुछ (लक्षित लोगों के बारे में) जानने की- और ये एक बहुत ख़तरनाक काम्बनेशन है. ये एक अंधकार से भरा भविष्य है. वे हम सब के बारे में सब कुछ जानते हैं और हम उनके बारे में कुछ नहीं जानते हैं- क्योंकि वे ख़ुफ़िया हैं, राजनीतिक वर्ग हैं, संसाधनयुक्त वर्ग हैं- हम नहीं जानते कि वे कहां रहते हैं, हम नहीं जानते हैं कि वे क्या करते हैं, हम नहीं जानते हैं कि उनके दोस्त कौन हैं. उनके पास हमारे बारे में ये सब चीज़ें जानने की क्षमता है.
(लेखक पत्रकार एंव स्वतंत्र टिप्पणीका हैं, ये उनके निजी विचार हैं)