विजय शंकर सिंह
मध्य प्रदेश, सरकार के एक मंत्री विश्वास सारंग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि, “15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने जो भाषण दिया था, उसी भाषण के कारण देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ी है।”सारंग के इस बयान पर सोशल मीडिया पर लोग आपत्ति जता रहे हैं और कई पार्टी के लोगों ने भी इस पर अपनी टिप्पणी की है।
उन्होंने आगे कहा, “अगर कांग्रेस महंगाई और इस देश की अर्थव्यवस्था को लेकर प्रदर्शन करना ही चाहती है तो उन्हें 10 जनपद के बाहर करना चाहिए क्योंकि इस देश की आजादी के बाद अर्थव्यवथा को कुठाराघात करके महंगाई बढ़ाने का श्रेय किसी को जाता है तो वो नेहरू परिवार को जाता है।”
फिर वे आगे बोले, “महंगाई एक दिन में नहीं बढ़ती है, अर्थव्यवस्थाओं की नींव एक दिन में नहीं रखी जाती। 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से जवाहरलाल नेहरू जी ने जो भाषण दिया था, उसी भाषण के कारण इस देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ी है। मोदी जी ने तो पिछले सात साल में अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया है।” तत्कालीन प्रधानमंत्री ने यह भाषा अंग्रेज़ी में दिया था, इसका हिंदी रूपांतरण यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
Tryst with destiny – नियति से साक्षात्कार
नियति द्वारा सुनिश्चित वह शुभ दिन आ गया है। हमारा भारत देश लंबी निद्रा और संघर्ष के बाद सुनहरे भविष्य लिए पुन: जागृत, जीवंत, मुक्त और स्वतंत्र खड़ा है। काफी हद तक हमारा भूतकाल अभी भी हमें जकड़े हुए है, और हम प्राय: जो प्रतिज्ञा, जो संकल्प अब तक करते आए हैं उसे निभाने के लिए हमें बहुत कुछ करना होगा। आज रात बारह बजे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई और उजली चमकती सुबह के साथ उठेगा। हम नए सिरे से इतिहास लिख रहे हैं और अब जिस इतिहास काा हम निर्माण करेंगे उस पर दूसरे लिखने को बाध्य होंगे। जिस समय सारी दुनिया निद्रा को आगोश में होगी उस समय भारत उज्जवल नवजीवन और चमचमाती स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा होगा।
एक ऐसा क्षण होगा, जो इतिहास में बहुत कम आता है, जब हम पुराने को छोड़कर नए जीवन में कदम रखते हैं। जब एक युग का अंत होता है, जब राष्ट्र की चिर काल से दमित आत्मा नवउद्धार प्राप्त करती है। यह सर्वथा उचित है कि इस गंभीर क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें। इतिहास के उषाकाल में भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की। कई सदियां उसके उद्योग, उसकी विशाल सफलता और उसकी असफलताओं से भरी मिलेंगी। चाहे अच्छे दिन रहे हों, चाहे बुरे, उसने इस खोज को आंखों से ओझल नहीं होने दिया। न उन आदर्शो को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई।
आज हम दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं। आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है। जिस कीर्ति पर हम आज आनंद उत्सव मना रहें हैं, वह और भी बड़ी कीर्ति और आने वाली कई विजय की दिशा में केवल एक कदम है, यह विजय अनंत अवसरों का द्वार खोलने वाली है। इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हममें पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है? स्वतंत्रता, ताकत, सत्ता और शक्ति साथ में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी लाती है। वह जिम्मेदारी इस सभा पर है, जो भारत के संपूर्ण सत्ताधारी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली सभा है।
स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे हृदय उस दु:खद स्मृति से आपूरित हैं। कुछ पीड़ाएं अब भी हैंं। फिर भी, स्याह अतीत समाप्त हो चुका है और अब सुनहरा भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है। यह भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि निरंतर प्रयत्न करने के लिए है, जिससे कि हम उन प्रतिज्ञाओं को, शुभ संकल्पों को जो हमने इतनी बार किए हैं और वह जो आज कर रहे हैं, पूरा कर सकें।
भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीडितों की सेवा है। इसका अर्थ दरिद्रता और अज्ञान और अवसर की विषमता का अंत करना है। हमारी पीढ़ी के सबसे बड़े आदमी की यह आकांक्षा रही है कि प्रत्येक आंख के प्रत्येक आंसू को पोंछ दिया जाए। ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आंसू हैं और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।
इसलिए हमें काम करना हैं और परिश्रम से करना है, जिससे हमारे स्वप्न पूरे हों। ये स्वप्न भारत के हैं, लेकिन यह संसार के लिए भी हैं, क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुंथे हुए हैं कि कोई भी बिलकुल अलग होकर रहने की कल्पना नहीं कर सकता।
शांति के लिए कहा गया है कि वह अविभाज्य है। स्वतंत्रता भी ऐसी ही है और अब समृद्धि भी ऐसी है और इस संसार में, जिसका अलग-अलग टुकड़ों में विभाजन संभव नहीं, संकट भी ऐसा ही है। भारत के लोगों से, जिनके हम प्रतिनिधि हैं, अनुरोध करते हैं कि विश्वास और निश्चय के साथ हमारा साथ दें। यह क्षुद्र और विनाशक आलोचना का समय नहीं है, असद्भावना या दूसरों पर आरोप लगाने का भी समय नहीं है। हमें स्वतंत्र भारत की विशाल इमारत का निर्माण करना है, जिसमें हमारी, आपकी हम सबकी संतानें रह सकें, महोदय मैं यह प्रस्ताव प्रस्तुत करने की आज्ञा चाहता हूं –
यह निश्चय हो कि –
- आधी रात के अंतिम घंटे के बाद, इस अवसर पर उपस्थित संविधान सभा के सभी सदस्य यह शपथ लें –
‘इस पवित्र क्षण में जबकि भारत के लोगों ने अत्यंत दु:ख सह कर और विलक्षण त्याग की गाथा रचकर यह अनमोल स्वतंत्रता प्राप्त की है, मैं, भारत की संविधान सभा का सदस्य हूं, पूर्ण विनयपूर्वक भारत और उसके निवासियों की सेवा के प्रति, स्वयं को इस उद्देश्य से अर्पित करता हूंं कि यह प्राचीन भूमि संसार में अपना उपयुक्त स्थान ग्रहण करे और संसार में शांति और मनुष्य मात्र के कल्याण के निमित्त अपना पूरा और स्वैच्छिक योगदान समर्पित प्रस्तुत करे।’
- जो सदस्य इस अवसर पर उपस्थित नहीं हैं, वे यह शपथ (उन परिवर्तनों के साथ जो कि सभापति निश्चित करें) उस समय लें, जबकि वे अगली बार इस सभा के अधिवेशन में उपस्थित हों।
हमारा आगे का काम कठिन है। हम में से कोई आराम नहीं कर सकता है जब तक हम अपनी प्रतिज्ञा और संकल्प पूर्ण नहीं कर लेते और जब तक कि हम भारत के सभी लोगों को उनकी सौभाग्यरेखा तक नहीं पहुंचा देते। हम एक महान देश के नागरिक हैं, और हमें उच्च मानकों पर खरा उतरना है। हम सभी, चाहे हम किसी भी धर्म से संबंधित हों, समान रूप से समान अधिकार, विशेषाधिकार और दायित्व के साथ भारत की संतानें हैं।
हम सांप्रदायिकता या संकीर्णता को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं, कोई भी ऐसा देश महान नहीं हो सकता है जिसके लोगों की सोच में और कर्म में संकीर्णता हो। हम दुनिया के देशों और लोगों के लिए शुभकामनाएं करते हैं और हम उनके साथ सहयोग करने शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। भारत की, प्राचीन, शाश्वत और हमेशा नई स्फूर्ति देने वाली, हमारी अत्यंत प्रिय मातृभूमि को श्रद्धा से नमन करते हैं और हम नए सिरे से इसकी सेवा करने का संकल्प लेते हैं।
जय हिन्द !
(लेखक पूर्व आईपीएस हैं)