पलाश सुरजन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की काबिलियत और श्रेष्ठता साबित करने के लिए पिछले कुछ वक़्त से एक जुमला चला हुआ है – मोदी है तो मुमकिन है। और शायद इस जुमले का ही कमाल है कि देश में यह बात भी मुमकिन हो गई कि प्रधानमंत्री को विरोध के कारण अपनी निर्धारित रैली रद्द करने पड़ी। आने वाले कुछ महीनों में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव है, पंजाब भी इन में से एक है। पिछले चुनावों में पंजाब में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था। तब भाजपा और उसकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल सत्ता से दूर ही रह गए।
लेकिन इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए हालात और समीकरण दोनों बदल चुके हैं। कांग्रेस में बगावत हो चुकी है। कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी बना चुके हैं, और भाजपा के साथ गठबंधन की घोषणा कर चुके हैं। जबकि शिरोमणि अकाली दल भी भाजपा से गठबंधन तोड़ चुकी है। इन चुनावों में शिअद के साथ बसपा मैदान में है। कांग्रेस में अब नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी के अध्यक्ष हैं और चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस दलित चेहरे को आगे करने की रणनीति बना चुकी है। इन बदले हालात में भाजपा पंजाब में अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश में है।
किसानों का विरोध भाजपा के लिए सत्ता की राह में बड़ा रोड़ा लग रहा था। कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन के कारण भाजपा को पहले ही पिछले विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में नुकसान हो चुका है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में किसानों की नाराजगी भाजपा पर काफी भारी पड़ रही थी। हरियाणा में कई जगहों पर, कई बार मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों के सरकारी कार्यक्रमों का किसानों ने बहिष्कार किया। किसानों की यह नाराज़गी इन चुनावों में भी भारी न पड़ जाए। इस विचार से ही शायद साल भर की जिद के बाद केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को रद्द कर दिया। पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की और शीतकालीन सत्र में कानून रद्द हो गए। तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद मोदी सरकार ने शायद ये मान लिया था कि अब किसान भी उनके पाले में आ जाएंगे। लेकिन सरकार की यह गलतफ़हमी शायद पंजाब की घटना के बाद दूर हो गई होगी।
बुधवार को पंजाब के फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी रैली थी। यहां श्री मोदी को हज़ारों करोड़ रुपए की परियोजनाओं की नींव भी रखनी थी। इस रैली को लेकर 9 किसान संगठनों ने पहले से विरोध की चेतावनी दे दी थी। किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने अभी तक उनकी मांगों को नहीं माना है। विरोध की चेतावनी को देखते हुए पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। लेकिन फिर भी जब प्रधानमंत्री मोदी हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक जा रहे थे, तो स्मारक से लगभग 30 किलोमीटर पहले फ्लाईओवर पर प्रधानमंत्री का काफिला फंस गया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम कर रखी थी।
केंद्र सरकार ने इसे सुरक्षा में बड़ी चूक माना है। गृहमंत्रालय ने इस पर पंजाब सरकार से रिपोर्ट तलब की है। और इन सबके बीच भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इस पर चुनावी राजनीति करते हुए ट्वीट किया है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने आगामी विधानसभा चुनाव में जनता के हाथों करारी हार के डर से पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों को विफल करने की हर संभव कोशिश की और प्रधानमंत्री की सुरक्षा से खिलवाड़ किया गया।
जहां तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सवाल है, तो यह वाकई एक गंभीर मसला है कि पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में किसी फ्लाईओवर पर प्रधानमंत्री की गाड़ी फंसी रह जाए। लेकिन इसमें पंजाब की कांग्रेस सरकार पर ठीकरा फोड़ना भी सही नहीं है। जब भाजपा कांग्रेस सरकार पर उंगली उठा रही है, तो उसे अपने गिरेबां में भी झांकने की जरूरत है कि आखिर ऐसी नौबत किस तरह बन गई कि किसी जगह से प्रधानमंत्री को ही बैरंग लौटना पड़ गया। भाजपा कांग्रेस की गलती तो बता रही है, लेकिन अब भी इतनी हिम्मत नहीं दिखा पा रही कि इस मामले में चक्का जाम करने वाले किसान संगठनों के बारे में कुछ कह सके।
भाजपा जानती है कि अब किसानों के किसी भी कदम की आलोचना की तो चुनावों में उसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी किसानों की कई और मांगें, जैसे एमएसपी पर गारंटी, किसानों पर चल रहे मुकदमों की वापसी या अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी, सरकार ने अभी पूरी नहीं की है। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से माफी तो मांगी हैं, लेकिन किसानों का भरोसा वो अभी जीत नहीं पाए हैं। इसलिए किसानों को अब भी सड़क जाम करने जैसे कदम उठाने पड़े।
बुधवार को चुनाव से पहले किसानों के हाथों हार का जो स्वाद प्रधानमंत्री मोदी ने चखा है, उससे उन्हें सबक लेना चाहिए कि अब केवल जुमलों की राजनीति करने के दिन लद गए हैं। अब जनता ठोस काम और पुख़्ता परिणाम देखना चाहती है।
(लेखक देशबन्धु के संपादक हैं)