विक्रम सिंह चौहान
आज ममता के सामने कंधे झुके हैं,कल दंडवत भी होंगे मोदी.ममता माने क्या आप बंगाल जाकर देखिये. वैसे भी बंगाली महिलाओं को सबसे उच्च दर्जा देता है. अपने से छोटी बच्ची को भी प्रेम से “माँ” बोला जाता है. खैर,यह तस्वीर यह भी बताती है कि यह आदमी थोड़ा ही सही शर्मिंदा जरूर है,इन्हें ममता पर प्रयोग किये गए अपने भद्दे, फूहड़ शब्द याद आ रहे होंगे.
ममता से आंख मिलाते हुए इनकी नज़रों में वह सब घुमा होगा कि उसने कितनी नीचता (और दूसरा शब्द नहीं मिला) की चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी राज्यपाल के जरिये. लेकिन ममता ने हर वार का जवाब दिया है और जोरदार दिया है. शारदा स्कैम हो या नारदा स्टिंग मोदी हमेशा जाल बिछाते रहें. हमेशा राष्ट्रपति शासन की संभावना को हवा देते रहें. कभी बंगाल की कथित हिंसा को बढ़चढ़कर दिखाया गया तो कभी दुर्गा पूजा और मोहर्रम को लेकर विवाद पैदा किया गया. सीबीआई और ईडी हमेशा ताक में रही,अवसर खोजते रहे. एनआरसी के नाम पर डराया गया,चुनाव में ममता पर हमले भी हुए. वे व्हील चेयर पर चुनाव लड़ी.
सुवेंदु अधिकारी की जीत ने चुनाव आयोग की भूमिका भी संदिग्ध कर दिया और इसके पीछे भी मोदी ही दिखें. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अरुण मिश्रा की अभी आई रिपोर्ट के पीछे भी मोदी ही है. जगदीप धनकड़ के पीछे भी मोदी ही थे.जिसे पिछले एक माह से सांप सूंघ गया है,महुआ मोइत्रा के राजभवन में उनके रिश्तेदारों की नियुक्ति के आरोप के बाद व ममता द्वारा हवाला जैन मामले में उनके नाम सामने लाने के बाद. ममता ने राज्यपाल के खिलाफ विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की बात कर भी अपने ताक़त का लोहा मनवाईं ममता ने. सुवेन्दु के नंदीग्राम जीत को भी हाई कोर्ट में चुनौती दीं. सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक ममता ने दो दिन पहले खेला जब उन्होंने पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मदन भीमराव लोकुर और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य के नेतृत्व में जांच आयोग का गठन कर दिया.
ममता एक मुख्यमंत्री हैं और वे अपना अधिकार बेहतर तरीके से जानती हैं. वे मोदी पर खुलकर आक्रमण करती हैं लेकिन राज्य की भलाई के लिए वे “प्रधानमंत्री पद” की इज्जत करती हैं और मिलकर अपनी बात रखती हैं. वे दूसरे मुख्यमंत्रियों से अलग हैं,जिनके मिलने के अगले दिन ये बात गर्म हो जाती है कि वे मोदी के साथ जा सकते हैं. ममता राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं और उतनी ही स्वाभिमानी.जो कि बंगालियों की खास पहचान भी होती है. मोदी को ममता के ऊपर आक्रमण से पहले जान लेना था कि ममता एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की बेटी हैं, जब पिता ने अंग्रेजों से हार नहीं माना तो उनकी बेटी कैसे हार मान जातीं!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)