
एक आतंकवादी घटना में गुजरात के लोगों के मारे जाने पर कश्मीर के उस समय के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने जो किया उसे याद कर गुजरात के उस समय के मुख्य मंत्री और देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में रो पड़े। बेशक, यह राजनीति है पर मैं उसमें नहीं जाउंगा। कइयों ने लिखा है। सच्चाई यह भी है कि उनके मुख्यमंत्री रहते गुजरात में दंगे हुए हजारों लोग मारे गए लेकिन वे और उनके समर्थक 1984 के दंगों को ज्यादा याद करते हैं।
सच यह भी है कि 1984 के दंगों के ज्यादातर अपराधी हिन्दू हैं पर उन्हें कांग्रेसी बताया जाता है। गुजरात मामले में दंगाई कौन थे ये बताने की जरूरत नहीं है। पर यह सच है और कई बार कहा जा चुका है कि दंगों के नियंत्रण के लिए केंद्र से भेजे गए सुरक्षा बलों को घंटों हवाई अड्डे पर इंतजार करवाया गया था। अगर यह इरादतन नहीं हो और बहुत सामान्य प्रशासनिक चूक हो तो उसके लिए भी अफसोस होना चाहिए। उस दौरान मरने वालों किसी एक धर्म के नहीं थे। उनके लिए कभी अफसोस जताया होता तो कल का रोना या गला रुंधना समझ में आता और लगता कि वह सामान्य तौर पर भावुक हो जाना होगा।
ऐसे ही आरोप लगाने के कारण संजीव भट्ट के खिलाफ पुराना मामला खुल गया और वे कई साल से जेल में हैं। दूसरी ओर, केंद्रीय दल का नेतृत्व कर रहे उस समय के उप सेना प्रमुख जनरल जमीर उद्दीन शाह ने कहा है कि उस दिन सेना के 3000 जवानों को हवाई पट्टी पर इंतजार नहीं करवाया गया होता तो गुजरात दंगे में मरने वाले कम से कम 300 लोगों को बचाया जा सकता था। स्पष्ट है कि गुजरात के नागरिकों की रक्षा के मामले में प्रधानमंत्री का दोहरा चरित्र है और रोना गुलाम नबी आजाद के अच्छे कामों के लिए नहीं अपने बुरे कामों के लिए आना चाहिए। पर वे कुछ और दिखा रहे तथा वही प्रचारित कर रहे हैं। इसमें साथी प्रचारकों के साथ मीडिया की बड़ी भूमिका है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं, यह लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है)