प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में जो भी बोला, उसमें किसानों के किसी सवाल का जवाब नहीं है।

Krishna Kant
कृष्णकांत

देश को 70 साल की रिकॉर्ड बेरोजगारी देने वाली सरकार कह रही है वह खेती में सुधार लागू करेगी। कैसा सुधार? एक अकेला कृषि सेक्टर इस वक्त फायदे में है, बाकी सब डूब चुका है। ये कानून ऐसे समय लागू किये गए जब देश मे करीब 15-16 करोड़ लोगों ने नौकरी गंवाई।वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लागू करने के लिए परेशान हैं, लेकिन ये नहीं बता सकते कि खेती छोड़ने वाले लोगों के लिए रोजगार कहाँ हैं? सेवा क्षेत्र ध्वस्त है और अर्थव्यवस्था माइनस में है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में जो भी बोला, उसमें किसानों के किसी सवाल का जवाब नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ चुनावी लंतरानी है। वे कह रहे हैं: “ये देश हर सिख पर गर्व करता है। मैंने पंजाब की रोटी खाई है, सिख गुरुओं की परंपरा को हम मानते हैं। उनके लिए जो भाषा बोली जाती है, उससे देश का भला नहीं होगा।” ये शब्द उस प्रधानमंत्री के हैं जिनकी सरकार ने किसानों को आतंकवादी बताने वाली एक विक्षिप्त महिला को सरकारी सुरक्षा दी हुई है। जनता का पैसा फूंक कर उसे किस बात के लिए सुरक्षा दी गई है? वह किसके कहने पर किसानों को आतंकी बोल रही है?

किसानों को खालिस्तानी बताने वाले किस नेता को रोका गया? किस पर कार्रवाई हुई?  रणनीति ये है कि आप सहलाते रहिए और पालतू लोगों से कहकर हमले भी करवाते रहिए। ऊपर से वे लोकतंत्र और नेताजी सुभाष का हवाला दे रहे हैं। क्या नेता जी ने यही सपना देखा था कि एक दिन देश का संसाधन 5 पूंजीपतियों के हाथ मे होगा और जनता को खेती से बेदखल कर दिया जाएगा?

राष्ट्रीय आंदोलन में किस शख्स ने ये सपना देखा था? ये सपना तो संघ परिवारी सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी नहीं था। आरएसएस ने अंग्रेजों का पिछलग्गू होने का सपना जरूर देखा था, जिसे आप अमेरिका का छर्रा बनकर पूरा करने का प्रयत्न कर रहे हैं। धर्म की राजनीति करने वाले लोग एक दिन लोकतंत्र को  भी धर्म बना देते हैं और कहते हैं कि हमारा लोकतंत्र आलोचना से परे है।

जिस लोकतंत्र की चौखट पर 2 महीने से लाखों लोग धरने पर हैं, जिस धरने में अब तक 150 से ज्यादा लोग जान गवां चुके हैं, जिस विरोध प्रदर्शन में 4-4 राज्यों के किसान सड़क पर हैं, उस विरोध को नाकाम करने की हर संभव कोशिश की गई। जो पार्टी खुद एक बड़े विरोध प्रदर्शन के बाद सत्ता में आई, उसका प्रधान कह रहा है कि हमारा कुछ भी आलोच्य नहीं है, सब अलोचनातीत है।

अपनी बात कहने के लिए उन्हें सुभाष चन्द्र बोस का हवाला देना पड़ रहा है। उन्हें ये भी समझना चाहिए कि जिस आंदोलन में 150 से ज्यादा लोग मर गए, उस आंदोलन का नेतृत्व नेताजी सुभाष कर रहे होते तो क्या करते? आप इस बात की शेखी बघार सकते हैं कि भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है, लेकिन उस मदर ऑफ डेमोक्रेसी के साथ आप क्या कर रहे हैं, इसे भी दुनिया देख रही है।  भारत मजबूत लोकतंत्र है ये तो सच है, लेकिन आपको ये भी बताना था कि आप इसके साथ कर क्या रहे हैं!

(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)