पुलिस ने दिल्ली दंगों के मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध किया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के सामने खालिद की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए विशेष सरकारी अभियोजक (SPP) अमित प्रसाद ने जेएनयू के पूर्व छात्र नेता के इन दावों का विरोध किया कि जांच एजेंसी सांप्रदायिक है और दंगों की साजिश के मामले में आरोपपत्र मनगढ़ंत है।
उन्होंने कहा, आरोपपत्र से स्पष्ट है कि दिसंबर 2019 के दंगों और फरवरी 2020 के दंगे के तार आपस में जुड़े थे। दोनों में एक ही तरह की अपराध की प्रवृत्ति नजर आई है, जैसे सड़कों पर जाम लगाना, पुलिस पर हमले करना, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना और पब्लिक व पुलिस के साथ हिंसा करना। उन्होंने कहा कि खालिद ने अपनी जमानत अर्जी पर दलीलों के समय अपने वकील के माध्यम से असंगत सामग्रियों पर ध्यान खींचकर अदालत के ध्यान को बांटने की कोशिश की।
एसपीपी ने कहा, खालिद चाहता है कि उसकी अर्जी पर फैसला एक वेब सीरीज का संदर्भ लेते हुए हो और मौजूदा मामले की तुलना ‘द फैमिली मैन’ या ‘द ट्रायल ऑफ द शिकागो 7’ से की जाए। आपके पास कुछ पुख्ता है नहीं और आप असंगत सामग्री की ओर ध्यान खींचकर अदालत का ध्यान बांटना चाहते हो। आप मीडिया ट्रायल चाहते हो और सुर्खियों में आना चाहते हो।
खालिद ने तीन सितंबर, 2021 को वरिष्ठ वकील त्रिदीप पाइस के माध्यम से कहा था कि उनके खिलाफ आरोपपत्र ‘द फैमिली मैन’ जैसी किसी वेब सीरीज या टीवी समाचार की पटकथा की तरह हैं। उसने पुलिस पर निशाना साधने के लिए हैरी पॉटर के खलनायक पात्र वोल्डमॉर्ट का भी जिक्र किया था। 9 दिसंबर को उसने अदालत में ‘द ट्रायल ऑफ द शिकागो 7’ का जिक्र किया. प्रसाद ने कहा, जिन दंगों में 53 लोगों की जान चली गई हो, उनकी तुलना किसी वेब सीरीज से करना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने खालिद के इन कथित दावों का भी विरोध किया कि जांच एजेंसी और जांच अधिकारी सांप्रदायिक हैं।
पुलिस की ओर से प्रसाद ने कहा, आखिरकार मकसद सरकार को गिराना, संशोधित नागरिकता कानून पारित करने वाली संसद के अधिकारों को कमतर आंकना और इस लोकतंत्र की बुनियाद को ही अस्थिर करना था। उन्होंने कहा, सरकार को घुटनों पर लाने और सीएए की वापसी के लिए दबाव बनाने की मंशा थी। यह बात मैं नहीं कह रहा, यह उस चैट के अंश से साबित होता है जिसमें साफ कहा जा रहा है कि सरकार को उसके घुटनों पर लाना होगा।
प्रसाद ने आरोपपत्र के हवाले से दावा किया कि 2020 के दंगे अचानक से उपजी हिंसा नहीं थी। उन्होंने कहा, हमने आरोपपत्र से दर्शाया है कि 23 प्रदर्शन स्थल बनाये गए। उनकी योजना सोच-समझकर तैयार की गई और मस्जिदों की पास वाली जगहों को चिह्नित किया गया। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनों में महिलाओं का प्रभुत्व नहीं था, बल्कि वे पुरुषों द्वारा संचालित थे और प्रदर्शन स्थलों पर बाहर से महिलाओं को लाया जा रहा था।